समूचे देश में आज (शुक्रवार) महाशिवरात्रि की धूम है। बनारस, प्रयागराज, अयोध्याधाम, चित्रकूट, उज्जैन, हरिद्वार, ऋषिकेश, नासिक, मंडी समेत सभी देवालयों और शिवालयों में आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा है। महाशिवरात्रि भगवान शिव का त्यौहार है। ऐेसे में गंगा और अन्य नदियों के पावन तटों पर स्त्री, पुरुष, वृद्ध और बच्चे पवित्र स्नान कर भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर रहे हैं।
बाबा विश्वनाथ के रंग में रंगी पूरी काशी
पूरी काशी बाबा विश्वनाथ के रंग में रंगी है। समूचे बनारस में पर्व का उल्लास हर ओर छलक रहा है। स्नान-ध्यान पूजा-अर्चना से लेकर भोग-आरती भंग की तरंग व विविध धार्मिक-सांस्कृतिक अनुष्ठान शुरू हो चुके हैं। मैदागिन से बाबा विश्वनाथ की भव्य-दिव्य एवं अनोखी बरात निकलनी है। इसमें देवी-देवता, साधु-संत, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, भूत-पिशाच, सर्प, बिच्छू आदि सभी शामिल होंगे। डेढ़सी पुल पर बरात का पारंपरिक तरीके से भंग व ठंडई से स्वागत करने की तैयारी की गई है।
मध्य प्रदेश में “महादेव” महोत्सव मनाने की तैयारी
वहीं मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने भोजपुर सहित 10 स्थानों पर महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर “महादेव” महोत्सव मनाने की तैयारी की है। इन स्थानों में मंदसौर, टीकमगढ़, महू, ग्राम बिल्हा (पन्ना), ओंकारेश्वर, बासौदा (विदिशा), मुरैना, मऊगंज एवं दमोह शामिल हैं।
इस दिन को कहा जाता है 'महाशिवरात्रि'
इसी प्रकार देश के सभी प्रदेशों में महाशिवरात्रि पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। केवल इतना ही नहीं भारत के साथ नेपाल, मॉरीशस सहित दुनिया के कई अन्य देशों में भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है। हर साल फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। हिन्दू पुराणों के अनुसार इसी दिन सृष्टि के आरंभ में मध्य रात्रि में भगवान शिव ब्रह्मा से रुद्र के रूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिन को महाशिवरात्रि कहा जाता है।
वेद, पुराणों में क्या कहता है शिवरात्रि का प्रसंग ?
शिवरात्रि के प्रसंग को हमारे वेद, पुराणों में बताया गया है कि जब समुद्र मंथन हो रहा था उस समय समुद्र में चौदह रत्न प्राप्त हुए। उन रत्नों में हलाहल भी था। जिसकी गर्मी से सभी देव दानव त्रस्त होने लगे। तब भगवान शिव ने उसका पान किया। उन्होंने लोक कल्याण की भावना से अपने को उत्सर्ग कर दिया। इसलिए उनको महादेव कहा जाता है। जब हलाहल को उन्होंने अपने कंठ के पास रख लिया तो उसकी गर्मी से कंठ नीला हो गया। तभी से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहते हैं। शिव का अर्थ कल्याण होता है। जब संसार में पापियों की संख्या बढ़ जाती है तो शिव उनका संहार कर लोगों की रक्षा करते हैं। इसीलिए उन्हें शिव कहा जाता है।
इस दिन की क्या है मान्यता ?
मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा करते है। महाशिवरात्रि का व्रत रखना सबसे आसान माना जाता है। इसलिये बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी इस दिन व्रत रखते हैं। महाशिवरात्रि के व्रत रखने वालों के लिये अन्न खाना मना होता है। इसलिये फलाहार किया जाता है। राजस्थान में व्रत के समय गाजर, बेर का फलाहार किया जाता है। लोग मंदिरों में भगवान शिव की पूजा करते हैं व उन्हें आक, धतूरा चढ़ाते हैं।
आध्यात्मिक रूप से क्या है इसका महत्व ?
आध्यात्मिक रूप से भी महाशिवरात्रि का बड़ा महत्व है। इस रात धरती के उत्तरी गोलार्ध की स्थिति ऐसी होती है कि इंसान के शरीर में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन प्रकृति इंसान को अपने आध्यात्मिक चरम पर पहुंचने के लिए प्रेरित करती है। गृहस्थ जीवन में रहने वाले लोग महाशिवरात्रि को शिव की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाले लोग इस दिन को शिव की दुश्मनों पर विजय के रूप में देखते हैं।
महाशिवरात्रि का पर्व दिखलाता है ईश्वरीय शक्ति का महत्व
उल्लेखनीय है कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि का पर्व हमारे जीवन में ईश्वरीय शक्ति के महत्व को दर्शाता है। यह दिन हमें भगवान शिव के द्वारा मानव जाति तथा सृष्टि के कल्याण के लिए विषपान जैसे असीम त्याग को प्रदर्शित करता है। यह दिन इस बात की याद दिलाता है कि यदि हम अच्छे कर्म करेंगे और ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखेंगे तो ईश्वर भी हमारी रक्षा अवश्य करेंगे। लोगों का मानना है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव हमारे निकट होते हैं और इस दिन पूजा-अर्चना तथा रात्रि जागरण करने वालों को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। कई लोग इस दिन दान करते हैं तथा गरीबों को खाना खिलाकर भगवान शिवजी से अपनी सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करते है।
(इनपुट-हिंदुस्थान समाचार)