बिहार सरकार ने जाति सर्वेक्षण के आंकड़े प्रकाशित कर दिया है,जिस पर याचिकाकर्ता ने उठाए सवाल हैं। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में जाति जनगणना को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई होनी है। याचिकाकर्ता ने सोमवार को जारी बिहार सरकार के जाति सर्वेक्षण को चुनौती देते हुए दावा किया है कि यह निजता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है।
दरअसल, पहले बिहार सरकार की ओर से सर्वे से जुड़ा आंकड़ा प्रकाशित नहीं करने की बात की गई थी। इसके बाद इसे प्रकाशित कर दिया गया। इसे लेकर अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है।
बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने बीते सोमवार को जातिगत आधारित गणना के आंकड़े जारी किए थे। लोकसभा चुनाव से पहले जारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 फीसदी है।
बिहार की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से थोड़ा अधिक
बिहार के विकास आयुक्त विवेक सिंह द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, बिहार की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक है। इसमें ईबीसी (36 फीसदी) सबसे बड़े सामाजिक वर्ग के रूप में उभरा है, जबकि ओबीसी (27.13 प्रतिशत) है। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि ओबीसी समूह में शामिल यादव समुदाय जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़ा सुमदाय है, जो प्रदेश की कुल आबादी का 14.27 प्रतिशत है।