बांग्लादेश बलों के स्टाफ़ के बीच मुक्ति युद्ध (Liberation War) की भावना को जीवित रखने के लिए ग्रुप कैप्टन तनवीर मार्ज़न के नेतृत्व में बांग्लादेश वायु सेना के 20 अधिकारियों और कर्मियों ने बांग्लादेश वायु सेना के स्थापना दिवस समारोह के भाग के रूप में मंगलवार, 31 अक्टूबर को दीमापुर का दौरा किया। ‘किलो फ्लाइट’ (Kilo Flight) से ऐतिहासिक संबंध रखने वाली डोर्नियर और एमआई 17-वी5 (Dornier and MI 17-V5) स्क्वाड्रन के अधिकारियों और कर्मियों ने बीएएफ के कर्मियों के साथ बातचीत की। भारत में हर साल 16 दिसम्बर का दिन विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
कब हुआ बांग्लादेश वायु सेना का गठन?
बांग्लादेश वायु सेना 28 सितंबर 1971 को नागालैंड के दीमापुर में एक चेतक, एक सशस्त्र ओटर और एक डकोटा, 09 अधिकारियों और 57 कर्मियों के साथ अस्तित्व में आई थी। इसी दिन भारतीय वायु सेना ने उसके तीन पायलटों, स्क्वाड्रन लीडर सुल्तान अहमद, फ्लाइट लेफ्टिनेंट बदरुल आलम, जो पाकिस्तान वायु सेना से अलग हो गए थे और एक नागरिक पायलट, कैप्टन शहाबुद्दीन अहमद को दीमापुर में ‘किलो फ्लाइट’ में प्रशिक्षण देना शुरू किया था। यह बांग्लादेश की पहली वायु सेना इकाई बनी। 16 दिसंबर 1971 के बाद बांग्लादेश के जन्म के साथ ही भारत ने गोलियों से छलनी, लेकिन उड़ान भरने में सक्षम ‘किलो फ़्लाइट’ विमान ढाका में बांग्लादेश को सौंप दिए थे।
बांग्लादेश वायु सेना को मुक्ति युद्ध के स्थानों का दौरा करने में गहरी रुचि
दरअसल बांग्लादेश वायु सेना ने हमेशा उन महत्वपूर्ण स्थानों का दौरा करने में गहरी रुचि दिखाई है जो 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान काफी प्रासंगिक रहें। यह यात्रा दोनों देशों की वायु सेनाओं के बीच गहरे संबंधों और सद्भाव को दर्शाती है और बांग्लादेश की मुक्ति में भारतीय वायुसेना की भूमिका को मान्यता देती है।
भारत बांग्लादेश सीमा के पास भारतीय सैन्य गौरव का गान करने वाला एक भव्य स्मारक बनने जा रहा हैबता दें कि बांग्लादेश भारतीय सैनिकों को समर्पित अपने पहले युद्ध स्मारक की तैयारी में जुट चुका है। यह स्मारकीय भाव भारतीय सशस्त्र बलों के प्रति गहरा आभार व्यक्त करता है, जिनके अटूट प्रयासों ने 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस युद्ध स्मारक की आधारशिला मार्च 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना द्वारा रखी गई थी। भारत-बांग्लादेश सीमा के पास आशूगंज में चार एकड़ के विशाल विस्तार पर स्थित स्मारक स्थल ऐतिहासिक महत्व रखता है।
16 दिसम्बर-विजय दिवस
ज्ञात हो कि तत्कालीन पूर्वी 1971 के युद्ध में भारत की एक बड़ी भूमिका रही थी, उस युद्ध में भारतीय फौज ने शौर्य दिखाया था। 3 से 16 दिसम्बर 1971 के बीच हुए उस युद्ध में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय कमांडरों के आगे समर्पण किया था। इस तरह पकिस्तान का पूर्वी हिस्सा उससे कट गया और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। तभी से भारत में हर साल 16 दिसम्बर का दिन विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है।