प्राचीन भारत में निर्यात की दिशा में कुशल कारीगर अपने-अपने तरीके से योगदान दे रहे थे, लेकिन लंबे समय तक उनके कार्यबल की उपेक्षा की गई। गुलामी के कालखंड में उनके काम को महत्वहीन समझा गया। यही कुशल कारीगर आज 'आत्मनिर्भर भारत' की सच्ची भावना का प्रतीक बन चुके हैं। यही कारण है कि भारत सरकार ऐसे लोगों को नए भारत का 'विश्वकर्मा' मानती है।
कौशल भारत मिशन और कौशल रोजगार केंद्र के माध्यम से करोड़ों युवाओं को कौशल प्रदान करने और रोजगार के अवसर पैदा करने करने और लक्षित दृष्टिकोण की आवश्यकता को देखते हुए विश्वकर्मा योजना को शुरू किया गया है। भारतीय लोकाचार में भगवान विश्वकर्मा की उच्च स्थिति और अपने हाथों से औजारों से काम करने वालों के लिए सम्मान की एक समृद्ध परंपरा है।
कब शुरू होगी 'विश्वकर्मा योजना' ?
पीएम नरेंद्र मोदी ने 77 वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में आने वाले दिनों में 'विश्वकर्मा योजना' शुरू करने की घोषणा की हैं। इस पर प्रधानमंत्री ने कहा है कि, “आने वाले दिनों में, हम विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर एक योजना शुरू करेंगे, जिससे पारंपरिक शिल्प कौशल में कुशल व्यक्तियों, विशेष रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय को लाभ होगा।'
क्या हैं विश्वकर्मा योजना ?
कौशल जैसे क्षेत्र में हम जितना विशिष्ट होंगे, जितनी लक्षित अप्रोच रखेंगे, उतने ही बेहतर परिणाम मिलेंगे। विश्वकर्मा योजना, इसी सोच का नतीजा है। बढ़ई, लोहार, मूर्तिकार, राजमिस्त्री और कई अन्य कारीगरों के कई वर्ग जो समाज का अभिन्न अंग हैं, वे बदलते समय के साथ अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खुद को ढाल रहे हैं। प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रभाव के बावजूद ये कार्य प्रासंगिक बने हुए हैं। विश्वकर्मा योजना ऐसे बिखरे हुए कारीगरों के लिए बनाई गई हैं।
विश्वकर्मा योजना का मुख्य फोकस
नए भारत के निर्माण के गांव के हर वर्ग को उसके विकास के लिए सशक्त बनाना भारत की विकास यात्रा के लिए अत्यंत आवश्यक है। देश के विश्वकर्माओं की जरूरतों के अनुसार अपनी कौशल बुनियादी ढांचे प्रणाली को फिर से तैयार करने की आवश्यकता है। आज के विश्वकर्मा कल के उद्यमी बन सकते हैं। कारीगर और शिल्पकारों को तब मजबूत किया जा सकता है जब वे मूल्य श्रृंखला का हिस्सा बन जाएं। विश्वकर्मा योजना का फोकस इन्हीं पर है। विश्वकर्मा योजना का उद्देश्य कारीगरों और छोटे व्यवसायों से जुड़े लोगों की मदद करना है।
कितनी लगेगी लागत ?
बुनकरों, सुनारों, लोहारों, लॉन्ड्री वर्कर, नाई और ऐसे परिवारों को अधिकतम लाभ प्रदान करने के लिए इस योजना पर 13 से 15 हजार करोड़ रुपये की लागत लगेगी।
देश के प्रत्येक विश्वकर्मा को मिलेगा समग्र संस्थागत समर्थन
बुनकरों, सुनारों, लोहारों, लॉन्ड्री वर्कर, नाई इन विश्वकर्माओं को कल का बड़ा उद्यमी के लिए उनके बिजनेस मॉडल में स्थायित्व जरूरी है। विश्वकर्मा को आसानी से लोन मिले, उनका कौशल बढ़े, उन्हें हर तरह का टेक्निकल सपोर्ट मिले, ये सब सुनिश्चित किया जाएगा। डिजिटल सशक्तिकरण, ब्रांड प्रमोशन और उत्पादों के बाजार तक पहुंच बनाने की व्यवस्था भी की जाएगी। ग्राहकों की जरूरतों का भी ध्यान रखा जा रहा है क्योंकि सरकार न केवल स्थानीय बाजार पर बल्कि वैश्विक बाजार पर भी नजर रख रही है।
कारीगरों और शिल्पकारों को तब मजबूत किया जा सकता है जब वे मूल्य श्रृंखला का हिस्सा बन जाते हैं।
उनमें से कई एमएसएमई क्षेत्र के लिए आपूर्तिकर्ता और उत्पादक बन सकते हैं। स्टार्टअप बेहतर तकनीक, डिजाइन, पैकेजिंग और वित्तपोषण में मदद करने के अलावा ई-कॉमर्स मॉडल के माध्यम से शिल्प उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार भी बना सकते हैं। उपकरणों और प्रौद्योगिकी की मदद से उन्हें अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जा सकता है, उद्योग इन लोगों को अपनी जरूरतों के साथ जोड़कर उत्पादन बढ़ा सकते हैं जहां कौशल और गुणवत्ता प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है। विश्वकर्मा के माध्यम से निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी को और मजबूत किया जाएगा ताकि निजी क्षेत्र की नवाचार शक्ति और व्यावसायिक कौशल को अधिकतम किया जा सके।
किसे होगा फायदा ?
विश्वकर्मा योजना का लाभ समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को होगा। बढ़ई, मूर्तिकार, लोहार, राजमिस्त्री और ऐसे अन्य काम करने वाले कारीगरों को अपना काम करने और अपने हुनर के विकास में यह योजना मददगार होगी। इन कारीगरों को अपने उत्पाद के लिए व्यापक बाजार उपलब्ध कराने के भी प्रावधान इस योजना में किए गए हैं।
सरकार कर रही समयबद्ध मिशन मोड में काम
सरकार देश के दूरदराज इलाकों में लोगों तक इसे पहुंचाने की कोशिश कर रही है और उनमें से कई लोगों को पहली बार सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। इनमें से अधिकांश कारीगर दलित, आदिवासी, पिछड़े समुदायों से हैं या महिलाएं हैं।