संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इजराइल-हमास युद्ध को लेकर पांचवीं बार प्रस्ताव लाने की कोशिश की जा रही है। माल्टा के प्रतिनिधि ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि यह फंसे हुए बच्चों और बंधक बनाए गए लोगों की दुर्दशा पर केंद्रित है। उन्होंने कहा, इसके पारित होने से तत्काल बचाव और पुनर्प्राप्ति प्रयासों और बीमार या घायल बच्चों और उनकी देखभाल करने वालों की चिकित्सा निकासी संभव हो सकेगी। इससे पहले चार प्रस्ताव असफल हो गए थे। देखना होगा कि क्या इस बार आम सहमति बन पाएगी या नहीं।
बुधवार (15 नवंबर) को UNO द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार सुरक्षा परिषद ने हमास और अन्य समूहों द्वारा बंधक बनाए गए सभी बंधकों, विशेषकर बच्चों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई का आह्वान किया और पार्टियों से गाजा में नागरिकों को जीवन रक्षक सेवाओं और मानवीय सहायता से वंचित करने से परहेज करने का आग्रह किया।
सभी पक्ष अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का पालन करें
वर्तमान मसौदे में गाजा पट्टी में वार्ता के माध्यम से नागरिकों को आवश्यक सहायता प्रदान करने और मानवीय आश्रय का प्रावधान है। माल्टा के प्रतिनिधि ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि यह फंसे हुए बच्चों और बंधक बनाए गए लोगों की दुर्दशा पर केंद्रित है। उन्होंने कहा इसके पारित होने से तत्काल बचाव और पुनर्प्राप्ति प्रयासों और बीमार या घायल बच्चों और उनकी देखभाल करने वालों की चिकित्सा निकासी संभव हो सकेगी। प्रस्ताव में यह भी प्रावधान है कि सभी पक्ष अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का पालन करें, जिसके लिए नागरिकों के लिए सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
बच्चों के लिए विशेष सुरक्षा और बंधक बनाने पर प्रतिबंध लगाए जाने की भी मांग
प्रस्ताव में बच्चों के लिए विशेष सुरक्षा और बंधक बनाने पर प्रतिबंध लगाए जाने की भी मांग शामिल है। लेकिन परिषद सदस्य माल्टा द्वारा मंगलवार को प्रस्तावित प्राप्त मसौदे में संघर्ष विराम का कोई उल्लेख नहीं है। इसमें सात अक्टूबर को इजरायल पर हमास के अचानक हमले का भी जिक्र नहीं है, जिसमें 1,200 लोग मारे गए और लगभग 240 अन्य को बंधक बना लिया गया था। न ही यह हमास शासित गाजा में इजरायल के जवाबी हवाई हमलों और जमीनी हमले का हवाला देता है, जिसके बारे में गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि 11,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें से दो-तिहाई महिलाएं और बच्चे हैं।
(Sources: हिन्दुस्थान समाचार, https://press.un.org/en/2023/sc15496.doc.htm)