आज भारत गर्व के साथ अपनी भाषा और संस्कृति के तत्वों के साथ विश्व के सामने खड़ा हो रहा है । प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अमृतकाल में पंच प्रण का आह्वान किया था | इसमें दो प्रमुख प्रण हैं- गुलामी के हर अंश से मुक्ति पाना है , विरासत पर गर्व करना । इन संकल्पों को भारत में पुनर्जागरण के बोध के तौर पर देखा जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि विश्व इतिहास में पुनर्जागरण को यूरोप से सबसे पहले जोड़ कर देखा जाता है। यूरोप में इसकी शुरुआत इटली से हुई , जिसके तहत अपने अतीत को पुनः प्राप्त करने के उदेश्य से शुरू हुआ यह प्रयास यूरोप को आधुनिक बनाकर ही दम लेता है।
ठीक उसी प्रकार भारत भी आज वैसे ही दौर से गुजर रहा है। आज भारत धीरे-धीरे अपने औपनिवेशिक तत्वों को त्याग रहा है। वहीं भारत अपने सांस्कृतिक तत्वों के साथ दुनिया को नई दिशा दे रहा है।
सबसे पहले तो भारत के भाषाओं को नई पहचान मिल रही है। भारतीय प्रधानमंत्री जी -20 और अन्य वैश्विक मंचों पर हिंदी में अपनी बात रख रहे हैं। विदेशों में भी हिंदी , संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं को पढ़ाया जा रहा हैं। इसके अलावा भारतीय भाषाओं में मेडिकल और अन्य तकनीकी पढ़ाई को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। वहीं उर्दू शायरी ,संगम साहित्य , चोल स्थानीय सभा की ओर पूरा विश्व आकृष्ट हो रहा है।
जबकि भारतीय धर्म दर्शन के तत्त्वों से भी पूरा विश्व प्रभावित हो रहा है।हिन्दू धर्म की सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना हो या ईस्लाम का अमन चैन का संदेश हो, बौद्ध धर्म का अहिंसा का सिद्धांत हो या सिख धर्म का सेवा का संकल्प हो। इन सभी तत्वों के साथ भारत उपभोक्तावाद , हिंसा ,जलवायु परिवर्तन, जैसे विषयों पर विश्व को दिशा दे रहा हैं।
इसके अलावा खानपान में भी कढ़ी चावल, इडली सांभर का डंका पूरे विश्व में बज रहा है। साथ ही जीवन शैली में भी योग, आयुर्वेद को महत्वपूर्ण स्थान मिल रहा है। कोई भी समाज जो अपनी विरासत पर गर्व नहीं करता है ,उसमें आगे बढ़ने का आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होता है।
अगर हम मौलिक विज्ञान या अन्य क्षेत्रों में संतोषजनक विकास नहीं कर पाए हैं तो इसका एक बड़ा कारण औपनिवेशिक मानसिकता से हम बाहर निकल नहीं पाए।साथ ही भारतीय संस्कृति के तत्वों और भारतीय भाषाओं को शिक्षा और प्रशासन में उस तरह से शामिल नहीं किया है। यह अच्छी बात है कि आज के दौर में भारत अपनी विरासत को स्वीकार कर रहा है। फिलहाल भारत अपनी विरासत को साथ लेकर अमृत काल में कैसे विश्वगुरू की भूमिका निभाता है, यह देखना रोचक होगा।