देश का तिरंगा जब शान से लहराता है तो गर्व की अनुभूति होती है, जो भारतीय होने का एहसास दिलाता है। उसी तिरंगे झंडे के लिए 22 जुलाई का दिन ऐतिहासिक है। यह इतिहास राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ा है। भारत की आजादी के इतिहास में इस तारीख का खास महत्व है।
22 जुलाई को पहली बार तिरंगे को अंगीकार किया गया
दरअसल 22 जुलाई 1947 को ही दिल्ली के कांस्टिट्यूशनल हॉल में संविधान सभा के सदस्यों की बैठक में तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अंगीकार किया गया था। इस बैठक में आजाद भारत के लिए एक झंडे का प्रस्ताव रखा गया था। इस प्रस्ताव पर गहन चर्चा हुई और फैसला लिया गया कि केसरिया, सफेद और हरे रंग वाले झंडे को ही कुछ बदलावों के साथ आजाद भारत का झंडा बनाया जाए।
तिरंगे झंडे में रंगों का महत्व
भारत के वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज को बनाने का श्रेय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिंगली वेंकैया को जाता है। वेंकैया के बनाए ध्वज में लाल और हरे रंग की पट्टियां थीं, जो भारत के दो प्रमुख धर्मों का प्रतिनिधित्व करती थीं। 1921 में पिंगली जब इसे लेकर गांधी जी के पास गए, तो उन्होंने ध्वज में एक सफेद रंग और चरखे को भी लगाने की सलाह दी। सफेद रंग भारत के बाकी धर्मों और चरखा स्वदेशी आंदोलन और आत्मनिर्भर होने का प्रतिनिधित्व करता था।
1923 में पहली बार इस तिरंगे का हुआ था प्रयोग
1923 में नागपुर में एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के दौरान हजारों लोगों ने इस ध्वज को अपने हाथों में थामा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान इस ध्वज का इस्तेमाल किया। हालांकि भारत के नागरिकों को राष्ट्रीय पर्व के अलावा किसी भी दिन अपने घर और दुकानों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने की छूट नहीं थी। 2002 में इंडियन फ्लैग कोड में बदलाव किए गए। अब हर भारतीय नागरिक किसी भी दिन अपने घर, दुकान, फैक्टरी और ऑफिस में सम्मान के साथ राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकता है। आजादी के 75 साल पूरे होने पर पूरे देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया गया, जिसके उपलक्ष्य में देश में हर घर तिरंगा अभियान मनाया गया। इस दौरान सभी ने घर, दफ्तर, वाहन ऊंची इमारत हर जगह तिरंगा लहराकर देश के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।