इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) कई वर्षों से कलाकर्मियों, संस्कृतिकर्मियों, रंगकर्मियों और साहित्यकारों के सम्मान में ‘संस्कृति संवाद श्रृंखला’ का आयोजन करता आ रहा है। इसी कड़ी में आईजीएनसीए के 18वें ‘संस्कृति संवाद श्रृंखला’ का आयोजन किया गया। यह आयोजन प्रसिद्ध नाटककार, निर्देशक और सांस्कृतिक प्रशासक ‘पद्मश्री’ दया प्रकाश सिन्हा के सम्मान में किया गया। इस दौरान उन पर केन्द्रित पुस्तक ‘दया प्रकाश सिन्हाः नाट्य-सृष्टि एवं दृष्टि’ का लोकार्पण भी किया गया।
भारतीय हिन्दी रंगमंच में सन् 1950 के बाद घटित ‘रंग आन्दोलन’ में दया प्रकाश सिन्हा ने अपनी विश्वसनीय उपस्थिति दर्ज कराई और अपने समृद्ध लेखन व निर्देशन के जरिये भारतीय हिन्दी रंगमंच को संजीवनी और ऊर्जा देने का काम किया। यह आयोजन पांच सत्रों में विभाजित था, जिनमें कला, संस्कृति, रंगमंच और साहित्य की प्रसिद्ध शख्सियतों ने साहित्य एवं रंगमंच में दया प्रकाश सिन्हा के योगदान पर विस्तार से चर्चा की। इसके साथ ही, उन पर केन्द्रित पुस्तक ‘दया प्रकाश सिन्हाः नाट्य-सृष्टि एवं दृष्टि’ का लोकार्पण भी किया गया।
इस अवसर पर दया प्रकाश सिन्हा ने रंगमंच की अपनी सात दशकों की यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने कहा, मनुष्य जन्म लेता है कुछ विशेष प्रवृत्तियों के साथ, शायद मेरा जन्म हुआ था नाटक के लिए। मैं बचपन से ही रंगमंच के प्रति आकर्षित था। ये कैसे हुआ, क्यों हुआ, मैं नहीं जानता। उन्होंने यह भी कहा कि नाटक साधारण नहीं होता, यह लोगों को जागृत करता है। नाटक में विचार तत्त्व होते हैं। लोग कहते हैं कि आज टेलीविजन का जमाना है, लेकिन थियोटर में जो जीवंत प्रतिक्रिया मिलती है, उसका मुकाबला नहीं हो सकता। रेडियो, टीवी के मुकाबले रंगमंच बहुत बड़ा होता है। इसमें जीवंत आदान-प्रदान होता है, इसलिए मैं समझता हूं कि टेक्नॉलजी चाहे जितनी उन्नत हो जाए, थियेटर जिंदा रहेगा।
इस आयोजन में मुख्य अतिथि सांस्कृतिक विदुषी एवं विश्वविख्यात नृत्य गुरु ‘पद्मविभूषण’ डॉ. सोनल मानसिंह थीं। डॉ. सोनल मानसिंह ने कहा कि दया प्रकाश सिन्हा केवल कला रसिक नहीं हैं, बल्कि कलाकार रसिक भी हैं। उनमें संस्कृति से गहराई से जुड़े लोगों की तरह गर्मजोशी और संवेदनशीलता है, जो एक नौकरशाह के लिए दुर्लभ गुण है। दया प्रकाश सिन्हा शाश्वत स्वतंत्रता के प्रतीक हैं और आनंद फैलाते रहते हैं।
समारोह के समापन सत्र में ‘दया प्रकाश सिन्हाः नाट्य-सृष्टि एवं दृष्टि’ का लोकार्पण किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता आईजीएनसीए के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने की। रामबहादुर राय ने कहा कि यह पुस्तक दया प्रकाश जी को जानने के लिए बहुत उपयोगी है। जिन्होंने दया प्रकाश जी के साथ काम किया है, और जो नई पीढ़ी के लोग हैं, उनके लिए भी। यह अद्भुत पुस्तक है। इसमें छोटे-छोटे लेखों के माध्यम से बहुत लोगों ने एक-एक नाटक पर या दया प्रकाश जी के व्यक्तित्व पर लिखा है। उन्होंने यह भी कहा, दया प्रकाश जी का व्यक्तित्व मात्र रंगकर्मी या सांस्कृतिक प्रशासक का नहीं है, उनकी एक विशेषता यह भी है कि वह अपने विचारों के बहुत पक्के हैं। उन्होंने अपने जीवन के किसी भी मोड़ पर अपने विचारों में बदलाव नहीं किया। वो हर बात पर सहमत नहीं होते, लेकिन असहमति के बावजूद, साथ-साथ काम किया जा सकता है, यह हमने दया प्रकाश जी से सीखा है।