तीन वर्ष के लगातार अनुसंधान के बाद घोड़ों की आठवीं नस्ल का पता लगा लिया गया है। राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र ने भीमथडी घोड़े को आठवीं नस्ल के रूप में मान्यता दिलाई है। अश्व संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में यह एक और कीर्तिमान है।
छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना ने युद्ध में किया इस्तेमाल
केंद्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ. एससी मेहता ने बताया कि भीमथड़ी घोडा, जिसको डक्कनी घोड़ा भी कहते हैं। इसी घोड़े का 17वीं सदी में छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना ने युद्ध में इस्तेमाल किया और अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की। कालांतर में यह घोड़ा गुमनाम सा हो गया था। पिछले 30-40 वर्षों के अनुसंधान पत्रों को देखें तो यह (भीमथडी), चुमार्थी (हिमाचल) और सिकांग (सिक्किम) घोड़ों के साथ लुप्तप्राय घोड़ों की नस्लों में शामिल हो गया था।
8 को मान्यता प्रदान की गई
संयुक्त राष्ट्र संघ के एफएओ की रिपोर्ट में डक्कनी यानी भीमथडी घोड़ों की कुल संख्या 100 बताई गई है। ऐसी स्थिति में यह कार्य लगभग असंभव था। जब यह पता चला कि आज की तारीख में घोड़ों की यह प्रजाति कुछ घुमक्कड़ जनजाति के पास ही मिल सकती है तो यह कार्य और भी कठिन हो गया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की हाल ही में हुई नस्ल पंजीकरण समिति की ग्यारहवीं बैठक में इसे मान्यता प्रदान की गई। करनाल (हरियाणा) राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो को इस वर्ष 66 आवेदन पत्र विभिन्न नस्लों की मान्यता के लिए प्राप्त हुए, जिनमें से मात्र 8 को मान्यता प्रदान की गई। इन 8 में से एक यह भीमथडी घोड़ा भी है।
तीन सौ वर्षों बाद पुनः गौरव पाने की दिशा में अग्रसर
डॉ. मेहता ने बताया कि इस परियोजना में अनुसंधान के तहत भीमथडी घोड़ों का पता लगाने के लिए क्षत्रपति शिवाजी महाराज के ससुराल परिवार के वंशज श्रीरघुनाथ राजे नाईक निम्बालकर स्वयं आगे आए। अब इस घोड़े की प्रजाति का पता लगने पर करीब तीन सौ वर्षों बाद पुनः अपना गौरव पाने की दिशा में अग्रसर है। उन्होंने बताया कि इन घोड़ों की मौजूदा स्थिति और इनके रंग-रूप एवं वजन के साथ माइटोकॉन्ड्रियल ड़ीएनए को अन्य नस्लों से आणविक स्तर पर जैव विविधता का पता लगाने के लिए एसएनपी मार्कर्स पर अध्ययन किया गया। इस कार्य में ऐग्रिकल्चर डेवलपमेंट ट्रस्ट, बारामती के केंद्र निदेशक का भी सहयोग रहा।
21 जनवरी को पूना में नस्ल का पहला शो
उन्होंने बताया कि इसके बाद भी चुनौतियां कम नहीं है, क्योंकि इन घोड़ों की संख्या अभी 5134 है। इनमें मादा सिर्फ 30 प्रतिशत और बच्चे भी कम हैं। 2019 में हुई पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग 9 प्रतिशत घोड़े कम हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में घुमक्कड़ जनजाति के लोगों से अच्छे घोड़ों का चयन करना और उनका प्रजनन करवाना एक गंभीर चुनौती है। आज के समय में पुनः पारंपरिक तांगा रेस, एन्डुरेन्स रेस, पोलो एवं अन्य प्रतियोगिताओं को इनके संवर्धन के लिए राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इस मान्यता प्राप्ति के साथ ही आल इंडिया भीमथड़ी हॉर्स एसोसिएशन की स्थापना भी रंजीत पवार के नेतृत्व में की गई है। इस नस्ल का पहला शो बारामती, पूना में 21 जनवरी को रखा गया है।