प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजीविका मिशन को राष्ट्रीय मिशन बनाकर ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने का ऐसा मंत्र दिया है जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। दरअसल, सरकार के प्रयासों से अवसरों का सृजन करने और गरीबी दूर करने की दिशा में दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय आजीविका मिशन शुरू किया गया। आज यही पहल करोड़ों ग्रामीण परिवारों की समृद्धि का स्रोत बन गई है।
कब और कैसे हुई मिशन की शुरुआत ?
राष्ट्रीय आजीविका मिशन ने नारी शक्ति को एक नई पहचान और दिशा देने का कार्य किया है। इसके साथ ही छोटे-छोटे समूहों के माध्यम से प्रशिक्षित, प्रेरित, मार्गदर्शित हुई महिलाएं स्वावलंबन की नई राह पर आगे बढ़ रही हैं। 2011 में शुरू किए गए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों को लक्ष्य समूह बनाकर दायरे में रखा गया था। लेकिन ये योजना उस समय उतनी असरदार साबित नहीं हुई।
2014 में योजना ने लिया सही आकार
इसके बाद जब साल 2014 में पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी तो योजना का आकलन किया गया। तब जाकर सरकार ने इस योजना को सही आकार दिया और इसका दायरा बढ़ा दिया। इस क्रम में सबसे पहले योजना का नाम बदलकर दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन यानी डीएवाई-एनआरएलएम किया गया।
ये मिशन समाज में ला रहा क्रांतिकारी परिवर्तन
वहीं सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना 2011 के डेटाबेस के अनुसार कम से कम एक तरह के अभाव वाले सभी परिवारों को मिशन के लक्ष्य समूह में शामिल कर लिया गया। इससे महिला स्वयं सहायता समूहों की संख्या तेजी से बढ़ी। तब से अपने नाम और लक्ष्य को चरितार्थ कर रहा यह मिशन समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रहा है। आर्थिक प्रगति के कारण महिलाएं और उनका परिवार गरीबी से बाहर आने लगा है, उनके जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार हो रहा है। मिशन की आधारशिला समुदाय आधारित है और ग्रामीण महिलाएं इसके मूल में हैं।
पिछले नौ वर्षों में स्वयं सहायता समूह हुए सशक्त
मिशन ने महिला सशक्तिकरण के लिए एक बड़ा मंच प्रदान किया है। इसकी 2011 से 2014 तक की प्रगति को देखें तो पांच लाख स्वयं सहायता समूह बने थे और सिर्फ 50-52 लाख परिवारों को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा गया था। लेकिन 2014 के बाद से इसमें क्रांतिकारी परिवर्तन आया। पिछले नौ वर्षों में स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने में केंद्र सरकार ने हर प्रकार से मदद की है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि साल 2024 तक करीब 10 करोड़ महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ दिया जाएगा।
नौ मई 2023 तक मिशन से जुड़ने वाले सदस्यों की संख्या
प्रधानमंत्री के इस योजना के प्रति विजन और लक्ष्य है कि हर ग्रामीण परिवार से कम से कम एक महिला इस अभियान से जुड़े। इसके लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह पहल कर रहे हैं। जिसके कारण नौ मई 2023 तक सदस्यों की संख्या 9.09 करोड़ को पार कर गई। बैंक लिंकेज 6.57 लाख करोड़ हो गया, एनपीए 1.85 प्रतिशत है। लखपति दीदी की संख्या 1.24 करोड़ हो गई तथा यह आंकड़ा प्रत्येक दिन तेजी से बढ़ रहा है।
घर बैठी महिलाएं भी खुद को बना रही स्वावलंबी
उल्लेखनीय है कि बेरोजगार का दंश झेलते हुए गृहिणी बनकर घर में बैठी महिलाएं अब एक तरफ जहां खुद को स्वावलंबी बना रही हैं। वहीं लोगों को भी रोजगार उपलब्ध करा रही हैं। कृषि एवं गैर कृषि क्षेत्र में स्वयं सहायता समूह बनाकर मधुमक्खी पालन, बकरी पालन, गो-पालन के साथ साथ दीदी की रसोई का संचालन कर रहीं हैं, जो काफी लाभप्रद साबित हो रहा है। अचार, सत्तू, पापड़, अगरबत्ती, नीरा, मूर्ति कला, ग्रामीण कला सहित अन्य माध्यमों से खुद आर्थिक रूप से सबल हो रही है।
रोजगार खोजने वाली नहीं, रोजगार देने वाली बन रही महिलाएं
महज इतना ही नहीं, स्वावलंबन की राह पर चलकर ये महिलाएं रोजगार के अवसर भी पैदा कर रही हैं। इस संबंध में केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने आजीविका के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाया है। बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाएं आजीविका से जुड़कर रोजगार खोजने वाली नहीं, रोजगार देने वाली बन रही है। ग्रामीण महिलाओं ने अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दिया है। अब जीविका से जुड़ी प्रत्येक दीदी की आय एक लाख करने के लक्ष्य पर कार्य किया जा रहा है। महिलाओं को प्रशिक्षण, बैंक ऋण, बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में लगातार कार्य किए जा रहे हैं।
सामाजिक संरचना को भी मिल रही मजबूती
उन्होंने कहा कि जीविका से जुड़ी महिलाएं न सिर्फ अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव कर रही हैं बल्कि, इन्होंने सामाजिक संरचना को भी मजबूत करने में बड़ी पहल की है। स्वयं सहायता समूह से जो परिवर्तन प्रत्येक क्षेत्र में आ रहा है। उससे एक बेहतर समाज और सशक्त राष्ट्र बनाने में देश सफल होगा। अपने परिवार को बेहतर जीवन देने के साथ-साथ, देश के विकास को आगे बढ़ाने में जुटी करोड़ों महिलाएं आज स्वयं के साथ-साथ राष्ट्र के विकास की वाहक बन गई हैं।