सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश और तमिलनाडु की पूर्व राज्यपाल न्यायमूर्ति फातिमा बीवी का गुरुवार को एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। जस्टिस फातिमा ने 96 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। जस्टिस फातिमा के निधन पर राज्य की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनका निधन हम सभी के लिए पीड़ादायी है। मंत्री वीना ने कहा कि न्यायमूर्ति फातिमा ने उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश और तमिलनाडु की राज्यपाल के रूप में अपनी छाप छोड़ी है। जॉर्ज ने एक बयान में कहा कि वह एक बहादुर महिला थीं, जिनके नाम कई रिकॉर्ड थे। वह एक ऐसी शख्सियत थीं, जिन्होंने अपने जीवन से दिखाया कि इच्छाशक्ति और उद्देश्य की भावना से किसी भी विपरीत परिस्थिति को पार किया जा सकता है।
महिलाओं के लिए आदर्श रहीं
(दिवंगत) न्यायाधीश फातिमा बीबी ने अपने लंबे और शानदार करियर के दौरान देशभर में महिलाओं के लिए एक आदर्श और नजीर के रूप में काम किया है। फातिमा बीवी का नाम ज्यूडिशरी ही नहीं बल्कि देश के इतिहास में भी स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हैं।
राजनीति के क्षेत्र में भी अग्रणी
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में अपनी सेवा देने के बाद उन्होंने तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में नियुक्त होकर राजनीतिक क्षेत्र पर भी अपनी छाप छोड़ी।
केरल में हुई थी प्रारम्भिक शिक्षा बता दें, केरल के पंडालम की रहने बीवी फातिमा ने पथानामथिट्टा के कैथोलिकेट हाईस्कूल में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की थी। बाद में तिरुवनंतपुरम के कॉलेज से बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। उन्होंने गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से बैचलर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की और 14 नवंबर, 1950 में एक वकील के रूप में दाखिला लिया।
सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज
वह किसी भी उच्च न्यायपालिका में नियुक्त होने वाली पहली मुस्लिम महिला न्यायाधीश भी थीं। साथ ही एशिया में एक राष्ट्र के सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश का खिताब भी उन्हीं के नाम है। फातिमा बीबी साल 1989 में सुप्रीम कोर्ट की महिला न्यायाधीश बनी थीं, जो पहली भारतीय महिला थीं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्य भी रहीं
तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने से पहले फातिमा बीबी को तीन अक्तूबर 1993 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (भारत) की सदस्या बनाया गया था। इसके अलावा उन्होंने राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान तमिलनाडु विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में भी कार्य किया।
सुप्रीम कोर्ट में महिला न्यायाधीशों की स्थित पर एक नजर
भारतीय सुप्रीम कोर्ट का एक लंबा और गौरवशाली इतिहास है।1950 में अपनी स्थापना के बाद से, इसने भारत के कानूनी परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, पहले कुछ दशकों तक इसमें एक महत्वपूर्ण घटक – लिंग विविधता – का अभाव था। 1989 सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पहली महिला न्यायाधीश, न्यायमूर्ति के रूप में फातिमा बीवी का स्वागत किया तब से प्रगति हुई है, पिछले कुछ वर्षों में महिला न्यायाधीशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। जून 2023 तक, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने 73 साल के इतिहास में कुल 268 न्यायाधीश देखे हैं उल्लेखनीय बात यह है कि इनमें से केवल 11 न्यायाधीश महिलाएं रही हैं। यह अब तक नियुक्त सभी न्यायाधीशों का मात्र 4%