प्रतिक्रिया | Saturday, February 01, 2025

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10/06/23 | 11:55 am

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पराली के कुशल प्रबंधन के लिए तलाशे जा रहे समाधान, जरूर जानें किसान

पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए पराली जलाने से रोकते हुए इसका समुचित प्रबंधन आज के समय में हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी बन गया है। इस पर केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर समाधान तलाश रही हैं। ऐसे में इनके बारे में किसानों को जरूर जानना चाहिए। दरअसल, इस दिशा में केंद्र द्वारा समय-समय पर राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। बीते वर्ष भी जब यह समस्या गंभीर रूप धारण करने लगी थी तो इसके समाधान के लिए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व दिल्ली को पराली प्रबंधन के लिए केंद्र द्वारा करीब 3 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गई थी।

वहीं, अब अगली कड़ी के रूप में बीते शुक्रवार 9 जून 2023 को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, पंजाब राज्य और पीएयू ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना में 'धान की पराली प्रबंधन और कार्य योजना' पर एक वर्कशॉप का आयोजन किया। इसमें यह आशा व्यक्त की गई है कि अगले वर्ष ‘नो-बर्न कृषि’ आदर्श प्रथा बन जाएगी।

वर्कशॉप का आयोजन

इस वर्कशॉप में भारत सरकार और राज्य कृषि विभाग, केवीके के वरिष्ठ अधिकारी, पीएयू के वैज्ञानिक, केंद्र सरकार में हितधारक, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारें और दिल्ली एनसीआर, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, शिक्षाविद, विभिन्न हितधारक एजेंसियां, सामाजिक समूह और गैर सरकारी संगठन, कृषि मशीनरी निर्माण उद्योग और बायोमास उद्योग संघ और 300 से अधिक किसानों ने भाग लिया। 

पराली जलाने के समाधानों की हुई पहचान

कार्यशाला के दौरान पराली जलाने के समाधानों की पहचान व लक्ष्य को हासिल करने के लिए रणनीतियों की पहचान की गई। इस दौरान कार्यशाला में मुख्य अतिथि पंजाब सरकार में, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अतिरिक्त मुख्य सचिव के.पी. सिन्हा (आईएएस) ने खेती के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “आपके जीवन में एक बार आपको एक डॉक्टर, वकील, पुलिसकर्मी या उपदेशक की आवश्यकता होती है लेकिन हर दिन, दिन में तीन बार आपको एक किसान की जरूरत है।” 

धान के पुआल जलाने की प्रथा को करना होगा खत्म

आगे जोड़ते हुए उन्होंने, धान के पुआल जलाने की प्रथा खत्म करने की इच्छा जताई, साथ ही प्रगति में बाधा डालने वाली बाधाओं की पहचान की। इसके अलावा उन्होंने बेलर क्षमता बढ़ाने, अत्यधिक जलने वाले क्षेत्रों में अधिक मशीनरी लगाने, अनुसूचित जाति के लाभार्थियों का समर्थन करने के लिए सहकारी समितियों को शामिल करने और सफल पहलों की अपनाने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि अगले वर्ष नो-बर्न कृषि आदर्श प्रथा बन जाएगी।

किसानों को मशीनरी खरीदने में मिलेगी सहायता

वहीं कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की संयुक्त सचिव, एस. रुक्मणी ने फसल अवशेष प्रबंधन की सहायता के लिए केन्द्रीय क्षेत्र की योजना के बारे में बताया। उन्होंने कहा, यह योजना किसानों को नामित मशीनरी खरीदने के लिए 50% और सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और पंचायतों को कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) स्थापित करने के लिए 80% की वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इसी के साथ उन्होंने वायु प्रदूषण और सब्सिडी वाली मशीनरी पर जोर दिया। 

पिछले साल से धान के पुआल जलाने में आई 30-40% की कमी

पिछले साल से धान के पुआल जलाने में 30-40% की कमी का खुलासा किया और धान के पुआल को संसाधन के रूप में उपयोग करने और किसानों के लिए नुकसान को कम करने के लिए कार्यशाला के लक्ष्य पर जोर दिया और धान के पुआल प्रबंधन के लिए संयुक्त कार्य योजना पर अपने विचार व्यक्त किए।

जलवायु और मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव किए रेखांकित

वर्कशॉप के दौरान, जलवायु और मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों को रेखांकित किया गया, जिनमें फसल विविधीकरण, डीएसआर विधि, और बासमती किस्मों के साथ-साथ कम अवधि और लंबी भूसे पैदा करने वाली किस्मों को बढ़ावा देने जैसे उपायों की सिफारिश की गई। इसमें गांवों के रणनीतिक मानचित्रण के माध्यम से एक्स-सीटू प्रबंधन, रणनीतिक स्थानों पर ब्रिकेटिंग/पेलेटिंग संयंत्रों की स्थापना, और विभिन्न उद्योगों में ईंधन के रूप में पुआल का उपयोग करने और बायोमास बिजली उत्पादन, संपीड़ित बायोगैस उत्पादन, जैव-इथेनॉल, पैकेजिंग सामग्री आदि के लिए आपूर्ति श्रृंखला विकसित करना शामिल है।

तकनीकों के साथ समाधान

पीएयू द्वारा हैप्पी सीडर और सुपर सीडर जैसी मशीनों के साथ-साथ एक्स-सीटू और इन-सीटू तकनीकों के साथ धान के पुआल प्रबंधन के ज्वलंत मुद्दे से निपटने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा, किसानों को इनपुट लागत कम करते हुए मृदा स्वास्थ्य, फसल उत्पादन और समग्र उपज बढ़ाने के लिए इस लागत प्रभावी, पर्यावरण के अनुकूल और जल-कुशल विधि को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। उल्लेखनीय है कि कार्यशाला के दौरान विद्युत मंत्रालय, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अधिकारियों ने बायोमास और धान के पुआल के उपयोग के लिए पहलों पर प्रकाश डाला, जैसे 'सस्ती परिवहन के लिए सतत विकल्प' (एसएटीएटी) सीबीजी की स्थापना को बढ़ावा देना, कच्चे माल के रूप में बायोमास का उपयोग करने वाली परियोजनाएं, तेल विपणन कंपनियों द्वारा देश में धान के पुआल सहित विभिन्न फीड स्टॉक के आधार पर 2जी इथेनॉल संयंत्र स्थापित किया जाना, विद्युत मंत्रालय द्वारा कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में को-फायरिंग के माध्यम से बिजली उत्पादन के लिए बायोमास उपयोग पर संशोधित नीति जारी किया जाना। जो ताप विद्युत संयंत्रों में कोयले के साथ मुख्य रूप से कृषि-अवशेषों से बने 5-7 प्रतिशत बायोमास पेलेट्स के उपयोग को अनिवार्य करता है, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने धान के पुआल आधारित पैलेटाइजेशन की स्थापना के लिए एकमुश्त वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए हैं।
 
पर्यावरण का होगा बचाव 

संभव है कि इन तमाम समाधानों की मदद से पराली जलाने से पर्यावरण और लोगों को होने वाले नुकसान से निजात मिलेगी। साथ ही इससे मृदा भी सुरक्षित होगी। इससे किसानों को भी काफी फायदा होगा।

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आखरी अपडेट: 1st Feb 2025