47 वर्षों में रूस का पहला चंद्रमा मिशन विफल हो गया। इस संबंध में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी 'रोस्कोस्मोस' ने रविवार को कहा कि उसका मानवरहित रोबोट लैंडर कक्षा में अनियंत्रित होने के बाद चंद्रमा से टकरा गया। एजेंसी ने एक बयान में कहा, 'लैंडर एक अप्रत्याशित कक्षा में चला गया और चंद्रमा की सतह से टकराने के परिणामस्वरूप क्षतिग्रस्त हो गया। रूस के लूना-25 अंतरिक्ष यान के क्रैश होने के बाद अब सारी उम्मीदें चंद्रयान-3 से जुड़ी हैं। अभी तक दुनिया की किसी भी स्पेस एजेंसी का अंतरिक्ष यान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं गया है। ऐसे में भारत के चंद्रयान-3 की कामयाबी भारत को अंतरिक्ष में सुपर पावर बना देगी।
लूना-25 से कब हुआ आखिरी सम्पर्क ?
रूस के अंतरिक्ष यान लूना-25 को भारत के चंद्रयान-3 से दो दिन पहले सोमवार को चंद्रमा पर उतरना था लेकिन वह इस मिशन में विफल हो गया। इसे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग करनी थी। लूना-25 के साथ संपर्क '19 अगस्त, 2023' को दोपहर 2:57 बजे ( भारतीय समयानुसार 20 अगस्त, 2023 को सुबह 5.27 बजे) टूट गया। धरती से लूना-25 को गत 11 अगस्त को लॉन्च किया था और महज चार दिनों में रूस ने इसे चांद की कक्षा में पहुंचा दिया था।
11 अगस्त को लॉन्च किया गया था लूना-25
रूस के सुदूर पूर्व में वोस्तोचन कॉस्मोड्रोम से लॉन्चिंग के बाद 800 किलोग्राम वजनी लूना-25 को बुधवार को चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया था। इसके पश्चात् लूना-25 यान को सोमवार को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी लेकिन इससे पहले ही यह दुर्घटनाग्रस्त हो गया। रूस के लूना-25 के चांद से टकराकर क्रैश होने के बाद पूरी दुनिया में अब भारत के चंद्रयान-3 की चर्चा तेज हो गई है। वहीं चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक चांद के सबसे छोटे कक्ष में 25 किलोमीटर की न्यूनतम ऑर्बिट में पहुंच चुका है। इसी के साथ लोगों को यह जानने की जिज्ञासा भी है कि आखिर लूना-25 चांद पर क्यों क्रैश हुआ ?
आखिर क्या हुआ है लूना-25 के साथ ?
लूना-25 चांद पर क्यों क्रैश हुआ, इस बारे में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक तपन मिश्रा ने बताया लूना 25 चांद की सतह से टकराया है या नहीं, इस बारे में फिलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं है। रूस की स्पेस एजेंसी ने केवल आकलन किया है कि संभवतः चांद की सतह से टकराकर वह क्रैश कर गया है। इसकी वजह है कि धरती से डीआर्बिटिंग के लिए भेजा गया कमान प्रभावी नहीं हुआ और लूना-25 अज्ञात ऑर्बिट में कहीं गुम हो गया, जिससे संपर्क नहीं हो पा रहा है। अब चंद्रयान-3 को लेकर भी दबाव बढ़ गया है।
उन्होंने बताया कि वैसे तो अंतरिक्ष मिशन प्रतिद्वंद्विता के लिए नहीं होते और अज्ञात वैज्ञानिक पहलुओं की खोज के असीमित लक्ष्य के साथ लॉन्च किए जाते हैं। चंद्रयान-3 भी रूस अथवा किसी दूसरे देश से प्रतिद्वंदिता के लिए लॉन्च नहीं किया गया है, बल्कि इसका मकसद चांद के उस हिस्से पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है जहां सूरज की रोशनी आज तक नहीं पहुंची है। यहां का वातावरण कैसा है, खनिज कैसे हैं, इस बारे में रिसर्च ही पहली प्राथमिकता है। इसलिए लूना-25 के क्रैश हो जाने के बावजूद चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग को लेकर बहुत अधिक आश्वस्त होना जल्दबाजी होगी।
चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग से दुनियाभर के स्पेस मिशन में आएंगे बदलाव
उन्होंने कहा कि उस हिस्से में लैंडिंग चुनौतीपूर्ण है। चंद्रयान-2 के आंकड़े के आधार पर चंद्रयान-3 मिशन बेहद महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि चांद के उस हिस्से की तस्वीर और सटीक डाटा हमारे पास है। इसके अलावा चंद्रयान-3 पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। इसलिए इसकी सॉफ्ट लैंडिंग पहली प्राथमिकता है। सफलतापूर्वक चंद्रयान-3 अगर लैंड कर जाता है तो यह अंतरिक्ष की दुनिया में भारत का सबसे मजबूत और अचूक कदम होगा। इसके बाद दुनियाभर के अंतरिक्ष मिशन भारत के कदमों से निर्धारित होंगे। उन्होंने कहा कि किसी भी दूसरे ग्रह अथवा उपग्रह पर स्पेसक्राफ्ट भेजा जाता है तो उसे धरती से लॉन्च करना पड़ता है जिसका गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक होता है और दूरी भी अधिक है। वहीं चांद पर अनुकूल परिस्थिति ढूंढ ली जाती है तो वहां से बाकी स्पेस मिशन किए जा सकेंगे। इसके अलावा वहां ईंधन भी उपलब्ध है जो रॉकेट की गति बढ़ाने और कम खर्च में उपलब्ध हो सकेगा। चंद्रयान-3 का सफलतापूर्वक लैंड होना पूरी दुनिया के लिए लाभकारी सिद्ध होने वाला है। इसके बाद पहली बार ऐसा होगा जब भारत चांद का एक-एक आंकड़ा आंखों देखी रखेगा।
23 अगस्त को ही क्यों होगी लैंडिंग
इसके बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए तपन मिश्रा ने कहा कि 23 अगस्त को चांद पर चंद्रयान-3 को उतारने के पीछे भी वजह बहुत खास है। इसमें लैंडर और रोवर दोनों सोलर पैनल से जुड़े हुए हैं और 23 अगस्त को चांद पर सूर्योदय होगा। इसलिए सूरज की रोशनी में दोनों यंत्र बखूबी काम कर पाएंगे। खास बात यह है कि चांद का एक दिन धरती के 14 दिनों के बराबर होता है। इसलिए तकनीकी तौर पर चंद्रयान-3 चंद्रमा के दिन के हिसाब से एक ही दिन काम करेगा लेकिन धरती के दिन के हिसाब से 14 दिन होगा। इसलिए हमें लैंडिंग की जल्दी नहीं है। 23 की जगह 24 अगस्त को भी लैंडिंग की जाएगी तो भी वह अच्छी रणनीति होगी। क्योंकि हम धीरे-धीरे चांद के सतह के करीब होंगे, सतह पर मौजूद आकृतियों के अनुसार अपनी गति और दिशा तय कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग निश्चित तौर पर अंतरिक्ष में भारत का सबसे मजबूत कदम होगा।