आर्थिक सलाहकार परिषद की हालिया रिपोर्ट से चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। दरअसल, रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में करीब 43% मुस्लिम आबादी बढ़ी है।
1951 से मुस्लिम आबादी करीब 43 प्रतिशत बढ़ गई
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1951 से हिंदुओं की आबादी में लगभग 8 प्रतिशत की कमी आई है। जबकि इसी दौर में मुस्लिम आबादी करीब 43 प्रतिशत बढ़ गई है। ऐसे में बहुसंख्यकवाद के नेरेटिव पर इस रिपोर्टे ने पानी फेर दिया है। वहीं चुनावी मौसम में इस पर राजनीतिक बहस जारी है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में भी हिंदू हो रहे विलुप्त
दरअसल, भारत में अल्पसंख्यक के उत्पीड़न को लेकर अभी तक जितना नैरेटिव गढ़ा गया वो सब झूठ निकला है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में देखा जा सकता है जहां हिंदू विलुप्त होते जा रहे हैं। यानी अल्पसंख्यक वहां पर विलुप्त हो रहे हैं।
पाकिस्तान में 18 प्रतिशत हिंदू आबादी इस दौर में 1.18 प्रतिशत
पाकिस्तान में 18 प्रतिशत हिंदू आबादी इस दौर में 1.18 प्रतिशत पर सिमट गई। बांग्लादेश की बात करें तो वहां 24 प्रतिशत हिंदू आबादी 8.2 प्रतिशत सिमट कर रह गई है जबकि इसी दौर में मुस्लिम आबादी काफी बढ़ी है।
भारत में अल्पसंख्यकों को लेकर नहीं किया गया कभी भेदभाव
यदि भारत की बात करें तो यहां अल्पसंख्यकों को लेकर कभी भेदभाव नहीं किया गया। इसकी पुष्टि ये आंकड़े भी कर रहे हैं। पीएम की इकोनॉमिक काउंसिल की स्टडी में 1950 में मुस्लिमों की आबादी 9.84 प्रतिशत थी जो 2015 तक 14.9 प्रतिशत हो चुकी है।
प्रियंका गांधी का कहना है कि सवाल महंगाई और बेरोजगारी का है तो बात भी इसी पर होनी चाहिए। यानी वो इस मुद्दे पर बात नहीं करना चाहती। वहीं राहुल गांधी इकोनॉमिक सर्वे की बात करते हैं और जिसकी जितनी आबादी उतना हक का नारा देते हैं।
उधर भाजपा नेता कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं कि ये लोग भारत को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं। भारत के लिए वहीं कुछ नेता जनसंख्या नियंत्रण कानून की आवश्यकता पर जोर देते हैं। सीएए कानून के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान के पीड़ित अल्पसंख्यकों को जब नागरिकता दी जाती है तो वे इसका विरोध करते हैं और कहते हैं कि इसे लागू नहीं होने देंगे।
जनता का बढ़ता घनत्व देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को करता है प्रभावित
वहीं समान नागरिकता संहिता का भी विरोध किया जाता है। ऐसे में मुस्लिम को लेकर विक्टिम कार्ड आखिर क्यों खेला जाता है। आप रिपोर्ट के आंकड़ों में पाएंगे कि जनता का बढ़ता घनत्व देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रभावित करता है।