प्रतिक्रिया | Wednesday, April 02, 2025

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आध्यात्मिक चेतना की जागृति और आस्था के महाकुंभ के बाद ‘गंगापुत्र’ का अगला लक्ष्य

मैंने जीवन में कभी प्लान नहीं किया था कि मैं कुंभ में गंगा स्नान करने जाऊंगा। इसके पीछे की वजह थी भीड़ और अव्यवस्थाओं का डर और कुछ पूर्वाग्रह। लेकिन इस बार बिना किसी प्लान के सबसे बड़े आध्यात्मिक आयोजन महाकुंभ में पहुंच ही गया। मैंने वहां जाने, ठहरने के लिए अपनी तरफ से कोई प्लान नहीं किया। लेकिन फिर भी मैं वहां बहुत ही सुविधाजनक तरीके से पहुंचा और ठहरा। पहुंचने तक मेरी संतुष्टि का भाव सिर्फ इतना सा था मेलाओं को लेकर मेरे खौफ से इतर, उम्मीद से बेहतर ठहरने की व्यवस्था है। बिना किसी असुविधा के स्नान की व्यवस्था भी है। कुल मिलाकर ये संतुष्टि थी कि बिना धक्के खाए करोड़ों लोगों की भीड़ वाले महाकुंभ को भी आराम से कर लिया जाएगा।

दूसरे दिन मैंने अलसुबह त्रिवेणी स्नान किए। तब तक भी मैं हर रोज होने वाले आम आदमी के आम अनुभवों से ही ग्रसित था। मसलन पानी बहुत ठंडा है, जल्दी से डुबकी लगा ली जाए, सूर्य को अर्घ दे कर प्रणाम कर लिया। बस अब तो जन्मों जन्म के लिए पुण्य कमा ही लिए। 2-4 मनोकामनाओं के पूरी होने के लिए भी लगे हाथ प्रार्थना कर ली जाए। 2-4 फोटो तो जरूर खिंचा लिए जायें और स्नान करके निकल कर उनको भेज दिये जाएं जिनके साथ मैं अपनी खुशी या उपलब्धि शेयर कर सकता हूं।

लेकिन तीसरा दिन आते-आते अपने आप अंदर से आवाज आई कि अभी कुंभ नहीं देखा इतना समय यहां बिताने के बाद भी। ये जो आस्था का सैलाब उमड़ा है इसका व्यवस्था के प्रति विश्वास और आध्यात्मिक चेतना की असल वजह क्या हैं? ये समझना ही मेरे लिये कुंभ की सफल यात्रा का उद्देश्य हो गया। ये समझना ही देश के जनमत को समझने जैसा होगा क्योंकि इतनी अलग बोली-भाषा, पूजा पद्धति, पहनावे, संस्कृति के लोग किसी एक स्थान पर एक भाव से एकत्रित होते हुए मिलना दुर्लभ है। इसलिए अभी तक जो तुमने किया है उस सबसे बहुत अद्भुत और आनंददायक है यहां कुछ और भी है जिसे अनुभव करने का बड़ा अवसर है। गाड़ी छोड़ो, गाइड छोड़ो, मिल रही हर मदद और सुविधा को छोड़ो निकल पड़ो अकेले, बिना किसी जानकारी के, और मैं निकल पड़ा पैदल। पता ही नहीं चला काली सड़क सेक्टर 2 से चलते चलते-चलते कब पीपों के पुल होते हुए गंगा पार कर गया और पहुँच गया सेक्टर 20। जैसे ही यहां पहुंचा अपने आप तमाम सवालों के जवाब ढूंढने की उत्सुकता खत्म होने और बिना कुछ बोले, बिना कुछ पूछे जो कुछ दिख रहा है उसे चुपचाप देखते हुए चलते रहने की अंदर से आवाज आयी।

मोदी है तो मुमकिन है

जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ रहा था आस्था के इस संगम में देश के प्रधानमंत्री के प्रति एक गजब का विश्वास देखने को मिल रहा था। मैंने कई लोगों से बात की उनमें से कोई राजस्थान के दौसा से आया हुआ था तो कोई उत्तर भारत के अरुणाचल से तो कोई कश्मीर से था तो कोई बंगाल से। इन सभी लोगों से एक कॉमन सवाल मेरा यह था क्या आप लोग 144 साल वाले कथित दुर्लभ संयोग के चलते आए हैं? तो ज्यादातर लोगों का जो कॉमन जवाब था वो देश के प्रधानमंत्री की आस्था और समरसता के प्रति प्रतिबद्धता को लेकर अटूट विश्वास ज़ाहिर कर रहा था। दौसा से आयीं फूलदेवी का कहना था, ‘हमें नहीं पता कि वाकई कोई 144 साल बाद दुर्लभ संयोग बना है या नहीं लेकिन हमारे देश के प्रधानमंत्री ने जब 2019 में अर्धकुंभ आयोजन के दौरान यहां सफाईकर्मियों के पैर धोकर सम्मान किया तब हम वो दृश्य टीवी पर देख रहे थे। तभी हमने तय कर लिया था अगले कुंभ में हम सपरिवार जाएंगे। वहां बड़े-छोटे, ऊंच-नीच का का कोई भेदभाव नहीं हो सकता। शायद इसी विश्वास के चलते महाकुंभ में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। ईवेंट मैनेजमेंट पर विश्वास रखने वाले लोगों को भी महाकुंभ में उमड़ी स्वप्रेरित इस भीड़ को देख कर हैरत हुई है कि आखिर ये कैसे संभव हुआ। लेकिन वहाँ पहुंचे लोगों से बात करके ये अहसास हुआ कि वाकई ‘मोदी है तो मुमकिन है.’ यहां उमड़ी भीड़ किसी देश के प्रधानमंत्री के प्रति अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति का विश्वास जाहिर कर रही थी। इस विश्वास के पीछे कहीं न कहीं प्रधानमंत्री मोदी का आध्यात्मिक पक्ष भी है।

ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास

दरअसल पीएम मोदी खुद कर्म के साथ-साथ ईश्वर पर भी अटूट विश्वास रखते हैं। उनकी आस्था की स्पष्टता इसी से जाहिर होती है कि उन्होंने कुंभ के निर्विघ्न, सफल आयोजन के लिए भगवान सोमनाथ से मन्नत मांगी थी और कुंभ के संपन्न होते ही प्रधानमंत्री सबसे पहले भगवान सोमनाथ के दर्शन करने पहुंचे। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, “प्रयागराज में एकता का महाकुंभ, करोड़ों देशवासियों के प्रयास से संपन्न हुआ। मैंने एक सेवक की भांति अंतर्मन में संकल्प लिया था कि महाकुंभ के उपरांत द्वादश ज्योतिर्लिंग में से प्रथम ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ का पूजन-अर्चन करूंगा। आज सोमनाथ दादा की कृपा से वह संकल्प पूरा हुआ है। मैंने सभी देशवासियों की ओर से एकता के महाकुंभ की सफल सिद्धि को श्री सोमनाथ भगवान के चरणों में समर्पित किया। इस दौरान मैंने हर देशवासी के स्वास्थ्य एवं समृद्धि की कामना भी की।”

प्रधानमंत्री का यह ट्वीट दर्शाता है कि वह कितने ईश्वरवादी हैं। कहीं न कहीं यही वजह है कि देश का आम आदमी मोदी से जुड़ाव महसूस करता है कि देश का प्रधानमंत्री भी उन्हीं मूल्यों को लेकर आगे बढ़ रहा है जिन मूल्यों को इस देश का अधिसंख्यक अपना जीवन आधार मानता है।

आध्यात्मिक चेतना की जागृति

कुंभ में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ बीते कुछ वर्षों में देश में बढ़ती आध्यात्मिक चेतना का भी जीता जागता उदाहरण है। इसके पीछे कहीं न कहीं मौजूदा सरकार के तीर्थ स्थलों के विकास को लेकर लिये गये फैसले और तमाम धार्मिक स्थलों के पुनरुद्धार को लेकर दृढ़ता के साथ आगे बढ़ना है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी की लगातार हो रहीं तीर्थ यात्राएं भी आमजान में आध्यात्मिक चेतना जागृत कर रही है।

आध्यात्मिक टूरिज्म के ‘ब्रांड एंबेसडर’

बीते कुछ महीने के दौरान ही प्रधानमंत्री की धार्मिक यात्राओं पर गौर करें तो बढ़ते स्प्रिचुअल टूरिज्म के ‘ब्रांड एंबेसडर’ के तौर पर उनकी छवि नजर आती है।

‘अंगी तीर्थ’ समुद्र तट पर पवित्र स्नान

20 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री मोदी ने रामेश्वरम में ‘अंगी तीर्थ’ समुद्र तट पर पवित्र स्नान किया था। समुद्र में डुबकी लगाने के बाद भगवान रामनाथस्वामी मंदिर में पूजा की।

द्वारका में स्नान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 फरवरी 2024 को गुजरात के द्वारका में समुद्र में गहरे पानी के अंदर, उस स्थान पर प्रार्थना की थी जहां जलमग्न द्वारका नगरी है। इतना ही नहीं वह अपने साथ भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करने के लिए समुद्र के अंदर मोर पंख लेकर गए थे।

वाराणसी दशाश्वमेध घाट पर पूजा

पीएम मोदी ने मई 2024 में लोकसभा चुनाव के लिए तीसरी बार नामांकन दाखिल करने से पहले वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती की थी। इतना ही नहीं महाकुंभ के आयोजन से पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी ने 13 दिसंबर 2024 को संगम तट पर गंगा की आरती की थी। साथ ही पूजा भी की थी और इस महाआयोजन के सकुशल संपन्न होने की मंगलकामना की थी।

कुल मिलाकर पीएम मोदी की महाकुंभ के सफल आयोजन की ‘मन्नत’ भले ही पूरी हो गई है लेकिन उनके आस्थावान होने के चलते देश में जागृत हो रही आध्यात्मिक चेतना के बड़े परिणाम अभी से आना शुरू हो गए हैं।

मां गंगा के मायके में मोदी

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तरकाशी जिले स्थित मां गंगा के शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा में पूजा अर्चना की। मुखबा माँ गंगा का मायका कहा जाता है। उत्तराखंड दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि देवभूमि आध्यात्मिक ऊर्जा का स्त्रोत है।मैंने काशी में कहा था कि मां गंगा ने बुलाया है लेकिन अब मुझे लगता है कि मां गंगा ने मुझे अब गोद ले लिया है।

देवभूमि में दूर होगी आर्थिक सुस्ती

दरअसल पिछले सवा तीन साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराखंड में यह 13वां दौरा है। पीएम मोदी का यह दौरा उत्तराखंड में पर्यटन को नई दिशा दे रहा है। प्रधानमंत्री ने आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिए उत्तराखण्ड में 12 महीने पर्यटन पर जोर दिया। इसके अलावा पीएम मोदी ने अपील की कि कॉर्पोरेट मीटिंग और डेस्टिनेशन वेडिंग देवभूमि में करें। प्रधानमंत्री मोदी की इस अपील से उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को बूस्ट मिलना तय है। तमाम तरह के व्यावसायिक अवसरों के साथ ही नौकरी की भी संभावनाएं बढ़ेंगी।

दूसरी तरफ एक बार फिर देवभूमि अपने सांस्कृतिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व को हासिल करते हुए दुनिया में एक बड़े आध्यात्मिक केंद्र के तौर पर स्थापित होने की तरफ बढ़ चला है। मोदी की इस यात्रा के बाद माना जा रहा है कि योगा कैपिटल का गौरव हासिल कर चुकी देवभूमि अब दुनिया को धर्म का नया पाठ भी पढ़ाएगी।

लेखक- अमित शर्मा

(मीडिया जगत में लगभग डेढ़ दशक का अनुभव है। राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय, राजनीतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक मुद्दों पर पकड़ है।

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आखरी अपडेट: 2nd Apr 2025