एम्स रायपुर ने सफलतापूर्वक अपना पहला स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट किया। इसे किडनी पेयर्ड ट्रांसप्लांट (केपीटी) के रूप में भी जाना जाता है। इस उपलब्धि के साथ, एम्स रायपुर नए एम्स संस्थानों में से पहला और छत्तीसगढ़ राज्य का पहला सरकारी अस्पताल बन गया है, जिसने इस जटिल और जीवन रक्षक प्रक्रिया को अंजाम दिया है। एम्स रायपुर ने छत्तीसगढ़ में अंग प्रत्यारोपण को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संस्थान ने सफलतापूर्वक गुर्दा प्रत्यारोपण कार्यक्रम विकसित किया है, जिसमें जीवित और मृत दाता दोनों प्रत्यारोपण शामिल हैं। पिछले दो वर्षों में 6 मृत दाताओं ने अपने अंग दान किए हैं।
एम्स रायपुर मृतक दाता अंग दान और मृतक दाता किडनी प्रत्यारोपण का शुभारंभ करने वाले नए एम्स में से प्रथम है। यह मृतक दाता बाल चिकित्सा किडनी प्रत्यारोपण शुरू करने वाला राज्य का पहला एम्स भी है। आज तक, संस्थान ने 95 प्रतिशत की ग्राफ्ट उत्तरजीविता दर और 97 प्रतिशत की रोगी उत्तरजीविता दर के साथ 54 किडनी प्रत्यारोपण किए हैं।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, बिलासपुर के 39 और 41 वर्षीय दो पुरुष ईएसआरडी रोगी तीन वर् से डायलिसिस पर थे। दोनों को किडनी प्रत्यारोपण कराने की सलाह दी गई थी। उनकी संबंधित पत्नियां जीवित दाताओं के रूप में आगे आईं। हालांकि, रक्त समूह असंगति यानी एक जोड़ी में बी+ और ओ+, और दूसरी में ओ+ और बी+- के कारण सीधे दान संभव नहीं था।
इस चुनौती से निपटने के लिए, एम्स रायपुर में प्रत्यारोपण टीम ने एक सफल स्वैप प्रत्यारोपण का समन्वय किया। प्रत्येक दाता ने अपनी किडनी दूसरे प्राप्तकर्ता को दी, जिससे रक्त समूह की संगतता सुनिश्चित हुई और दोनों रोगियों को जीवन रक्षक अंग प्राप्त करने में सहायता मिली।
आपको बता दें कि रोगियों की शल्य चिकित्सा 15 मार्च 2025 को की गई थी और सभी चार व्यक्ति- दाता और प्राप्तकर्ता दोनों- वर्तमान में प्रत्यारोपण आईसीयू में कड़ी निगरानी में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं।
अनुमान है कि इस स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट से ट्रांसप्लांट की संख्या में 15 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इसकी क्षमता को पहचानते हुए, राष्ट्रीय संगठन और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एनओटीटीओ) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्वैप डोनर ट्रांसप्लांटेशन के कार्यान्वयन की सिफारिश की है, क्योंकि इस विकल्प से डोनर की संख्या बढ़ सकती है।
एनओटीटीओ ने देश भर में इन प्रत्यारोपणों को अधिक प्रभावी ढंग से सुविधाजनक बनाने के लिए एक ‘समान एक राष्ट्र एक स्वैप प्रत्यारोपण कार्यक्रम’ शुरू करने का भी निर्णय किया है।
स्वैप प्रत्यारोपण में, किडनी की खराबी से पीड़ित एक रोगी इच्छुक जीवित दाता होने के बावजूद रक्त समूह के अलग होने या एचएलए एंटीबॉडी की उपस्थिति के कारण किडनी प्राप्त नहीं कर सकता। अब इस प्रत्यारोपण के माध्यम से किसी अन्य अन्य असंगत स्थिति के साथ दाताओं का आदान-प्रदान करके प्रत्यारोपण करवा सकता है। इस व्यवस्था के माध्यम से, दोनों प्राप्तकर्ताओं को उनके अनुकूल किडनी मिलती हैं, जिसके परिणामस्वरूप दोनों के लिए सफल प्रत्यारोपण किया जा सकता है।