बाकू में चल रहे COP29 जलवायु सम्मेलन में एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है। जलवायु वित्त सहायता पर नये मसौदा प्रस्ताव को सभी देशों ने खारिज कर दिया है। गौरतलब है कि यह योजना विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने और उसके प्रभावों से निपटने में मदद के लिए बनाई गई है लेकिन फंडिंग को लेकर हुए मतभेद के कारण बातचीत रुक गई है।
विकासशील देशों ने 1.3 ट्रिलियन डॉलर की जलवायु वित्त सहायता की मांग की
विकासशील देशों का कहना है कि उन्हें 2025 से हर साल कम से कम 1.3 ट्रिलियन डाॅलर की जरूरत है ताकि जलवायु चुनौतियों का सामना कर सकें। यह राशि 2009 में वादा किए गए 100 बिलियन डॉलर से 13 गुना अधिक है।
वहीं, यूरोपीय संघ जैसे विकसित देश 200-300 बिलियन डॉलर सालाना देने का प्रस्ताव कर रहे हैं। साथ ही, वे चाहते हैं कि चीन और खाड़ी देशों जैसे अमीर विकासशील देश भी योगदान दें।
वहीं G77 समूह (130 से अधिक देशों का प्रतिनिधित्व) और अफ्रीकी समूह जैसे विकासशील देशों का कहना है कि विकसित देश ऐतिहासिक प्रदूषण के लिए अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। उनका जोर है कि अधिकतर फंडिंग विकसित देशों की सार्वजनिक धन से होनी चाहिए न कि निजी कंपनियों से, जो मुनाफे को प्राथमिकता देती हैं। अफ्रीकी समूह के अध्यक्ष अली मोहम्मद ने कहा इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य फंडिंग का निर्धारित करना है, लेकिन मसौदे में कोई ठोस आंकड़े नहीं हैं। कोलंबिया की पर्यावरण मंत्री सुजाना मुहम्मद ने कहा, “समस्या पैसा नहीं बल्कि राजनीति की है।”
विकसित देश कई स्रोतों, जैसे निजी निवेश से धन जुटाने पर जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि अब वैश्विक आर्थिक स्थिति बदल गई है और चीन व खाड़ी देशों जैसे अमीर विकासशील देशों को भी योगदान देना चाहिए। पनामा के वार्ताकार जुआन कार्लोस ने विकसित देशों की आलोचना करते हुए कहा कि 1.3 ट्रिलियन डॉलर को अतिरंजित कहना उस समय पाखंड है जब जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर $7 ट्रिलियन खर्च किए गए हों।
COP29 ने वादा किया है कि गुरुवार रात तक नया मसौदा जारी किया जाएगा जिसमें स्पष्ट आंकड़े होंगे। लेकिन विश्वास की कमी और गहराते मतभेद के कारण वार्ता टूटने का खतरा मंडरा रहा है।
दुनिया के सबसे गरीब देशों के लिए यह सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे बढ़ते जलवायु आपदाओं का सामना कर रहे हैं। विकासशील देशों का कहना है कि वे COP29 से बिना ठोस और पर्याप्त वित्तीय प्रस्ताव के नहीं लौटेंगे।