वर्तमान में बांस की खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ रहा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और रोजगार उत्पन्न करने में बांस की खेती का अहम योगदान है। बांस की खेती के महत्व के कारण ही इसे हरा सोना कहा जाता है। बांस, घास परिवार का पौधा है जो तेजी से बढ़ता है। यह भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में बड़ी भूमिका अदा करता है। बांस की खेती कहीं भी की जा सकती है। यह विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में विकसित हो सकता है। बांस की फसल करीब 40 साल तक बांस देती रहती है। बांस को लेकर कहा जाता है कि यह अद्वितीय विशेषताओं वाला एक अविश्वसनीय पौधा है।
पहली बात तो यह कि भारत में बांस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। भारत में इसका उपयोग सदियों से विभिन्न तरीकों से किया जाता रहा है। बांस में भारत की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख योगदानकर्ता बनने की क्षमता है। भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांस उत्पादक देश है। ध्यातव्य है कि भारत में बांस के कई प्रकार पाए जाते हैं जैसे -बंबूसा बांस, बम्बूसा टुल्डा,मेलोकाना बैसीफेरा आदि। इसके अलावा बांस की खेती के लिए पानी की आवश्यकता भी होती है। जबकि बांस की सिंचाई के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे -ड्रिप सिंचाई, बाढ़ सिंचाई, वर्षा जल सिंचाई आदि ।
आज हम जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना कर रहे हैं। वहीं बांस की खेती पर्यावरण के अनुकूल होती है। बांस को सदाबहार वनों के साथ-साथ शुष्क क्षेत्र में भी उगाया जा सकता है। बांस की खेती बड़े पैमाने पर जल और मृदा प्रबंधन में भी सहायक होती है। इसकी जड़ें पृथ्वी को मजबूती से पकड़ती हैं जिससे मिट्टी बह जाने से बच जाती है। बांस की पत्ती के मिट्टी में गिरने से प्राकृतिक खाद का निर्माण भी होता है, जिससे अन्य फसलों के उत्पादन में वृद्धि होती है। बांस की खेती ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में मदद करती है। आपको बता दें कि बांस दूसरे पौधों की तुलना में 33 प्रतिशत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करता है।
दूसरी ओर बांस की खेती किसानों के आर्थिक लाभ का भी बड़ा माध्यम है। बांस की खेती किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बना रही है। इस खेती में किसानों को लागत कम आती है। इसमें एक लंबे समय तक निरंतर आमदनी होती है। साथ ही इसमें रखरखाव का खर्च भी कम होता है। किसान बांस की कटाई और बिक्री आसानी से कर सकते हैं। इसे हर साल दोबारा लगाने की ज़रूरत नहीं होती है। बांस की बाजार में मांग होने की कारण यह किसानों के लिए सरल आय का स्रोत है।
इसके अलावा बांस की खेती शिल्पकारों और उद्योगों के लिए बहुत उपयोगी है। बांस से निर्मित फर्नीचर, चटाई, और हस्तशिल्प की अन्य वस्तुओं की बाजार में बहुत मांग हैं। इस कारण बाजार में बांस की मांग बनी रहती है। कागज बनाने में भी इसका उपयोग होता है। ध्यातव्य है कि प्लास्टिक का विकल्प होने के कारण भी बांस की मांग ज्यादा होती है। इसके अलावा इसका वास्तुकला में भी उपयोग बढ़ रहा है। बांस का आयुर्वेद चिकित्सा और औषधि के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। भूकंप संभावित क्षेत्र में इसका उपयोग निर्माण कार्य में भी होता है। बांस की बढ़ती वैश्विक मांग उद्यमियों को बहुत लाभ दे रही है।
अंत में कहा जा सकता है कि बांस की खेती किसानों का आर्थिक लाभ सुनिश्चित करने के साथ उन्हे आत्मनिर्भर बनाने में सहायक है। आज वक्त की मांग है कि बांस की खेती को लेकर जागरूकता को बढ़ावा दिया जाए। इससे जहां एक तरफ किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है। वहीं पर्यावरण को भी समृद्ध किया जा सकता है।
दीपक दुबे