इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) की हिस्सेदारी कुल बिक्री में वित्त वर्ष 2030 तक बढ़कर 30 से 35 प्रतिशत हो सकती है, जो कि 2024 में 7.4 प्रतिशत और 2019 में एक प्रतिशत से भी कम थी। यह जानकारी एक रिपोर्ट में दी गई। भारत में ईवी को तेजी से अपनाया जा रहा है। दोपहिया और तिपहिया वाहन सेगमेंट इसमें सबसे आगे है।
एसबीआई कैपिटल मार्केट की रिपोर्ट में बताया गया कि जीवाश्म ईंधनों से चलने वाले वाहनों की हिस्सेदारी आने वाले वर्षों में भी कुल वाहनों की बिक्री में अधिक रहेगी, लेकिन ईवी की हिस्सेदारी में इजाफा होगा।
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि वाहनों की कम संख्या होने के कारण भारत के पास तेजी से वृद्धि का एक अनोखा अवसर है। ईवी कई लोगों की पहली कार हो सकती है। यह कुछ ऐसा ही होगा, जैसे भारत में 4जी के लिए 3जी को छोड़ दिया गया। इस वजह से कुल बिक्री में ईवी की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2030 तक 30 से 35 प्रतिशत हो सकती है।
बैटरी और इलेक्ट्रॉनिक ड्राइव यूनिट, किसी भी ईवी का मुख्य आधार होते हैं और इनकी हिस्सेदारी कुल लागत में करीब 50 प्रतिशत की होती है।
रिपोर्ट में बताया गया कि सरकार की ओर से ईवी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाने और लागत को कम करने के लिए एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (एसीसी) के लिए पीएलआई स्कीम लाई गई है। ओईएम अपनी बैटरी की 75 प्रतिशत जरूरतों को आउटसोर्स करते हैं, लेकिन बैकवर्ड इंटीग्रेशन के कारण वित्त वर्ष 30 तक यह घटक 50 प्रतिशत हो जाएगी।
वर्ष 2030 तक 100 गीगावाट की ईवी बैटरी क्षमता प्राप्त करने के लिए लगभग 500-600 अरब रुपये का पूंजीगत व्यय होने का अनुमान है। इस दौरान चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए 200 अरब रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी।
रिपोर्ट में बताया गया कि भारत का ईवी इंसेंटिव काफी अच्छा है। पीएम ई-ड्राइव विशिष्ट वाहन वर्गों को बढ़ावा देता है और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार को भी सपोर्ट करता है।
भारत में ईवी को तेजी से अपनाया जा रहा है। दोपहिया और तिपहिया वाहन सेगमेंट इसमें सबसे आगे है।
रिपोर्ट के अनुसार, निजी कारें एक अनोखा ईवी सेगमेंट हैं, जहां प्रदर्शन, डिजाइन, आराम और सुरक्षा अकसर लागत से अधिक महत्वपूर्ण होती है।
(इनपुट-आईएएनएस)