प्रतिक्रिया | Sunday, September 07, 2025

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भारत ने 2024-25 में 180.15 लाख टन मिलेट का उत्पादन किया, राजस्थान सबसे आगे, महाराष्ट्र दूसरे व कर्नाटक तीसरे स्थान पर

भारत वर्तमान में दुनिया में मिलेट (श्री अन्न) का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन में 38.4% का योगदान देता है (एफएओ, 2023)। न्यूनतम लागत में मोटे अनाज की खेती और जलवायु परिवर्तनों को झेलने की क्षमता ने इसे किसानों के लिए एक स्थायी विकल्प और देश की खाद्य टोकरी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया है। जुलाई 2025 तक, भारत ने 2024-25 में कुल 180.15 लाख टन मोटे अनाज का उत्पादन हासिल कर लिया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 4.43 लाख टन अधिक है। यह निरंतर वृद्धि विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों में मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के देश के केंद्रित प्रयासों को दर्शाती है। राजस्थान ने 2024-25 में सबसे अधिक मिलेट उत्पादन किया। इसके बाद महाराष्ट्र दूसरे और कर्नाटक तीसरे स्थान पर रहा।

क्या है श्री अन्न ?

दरअसल, श्री अन्न के नाम से प्रसिद्ध मोटा अनाज, छोटे दानों वाले अनाजों का एक समूह है जो अपने असाधारण पोषण और अनुकूलनशीलता के लिए जाना जाता है। भारत के अनुरोध पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने खाद्य और पोषण सुरक्षा में मोटे अनाज के महत्व को स्वीकार करते हुए, वर्ष 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट घोषित किया। मोटा अनाज प्रोटीन, विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है और प्राकृतिक रूप से ग्लूटेन मुक्त होता है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जो इसे मधुमेह और सीलिएक रोग से पीड़ित लोगों के लिए उपयुक्त बनाता है। इसके पोषण गुण इसे गेहूं और चावल से बेहतर बनाते हैं, जिससे इसे “पौष्टिक अनाज” कहा जाता है।

सरकार ने मिलेट को बढ़ावा देने के लिए बजटीय और नीतिगत ढांचे को लगातार मजबूत किया

भारत सरकार मिलेट (श्री अन्न) को बढ़ावा देने के लिए बजटीय और नीतिगत ढांचे को लगातार मजबूत किया है। ये आवंटन खेती से लेकर प्रसंस्करण, निर्यात और अनुसंधान तक, पूरी मूल्य श्रृंखला में फैले हुए हैं। जो इस प्रकार हैं-

1 –खेती के लिए सहायता

मोटे अनाज की खेती को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं पोषण मिशन (एनएफएसएनएण) के माध्यम से सहायता प्रदान की जाती है, जिसे पहले राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के नाम से जाना जाता था।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन – पोषक अनाज

मिलेट के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत पोषक अनाजों पर एक उप-मिशन चला रहा है, जिसमें ज्वार, बाजरा, रागी/मंडुआ और कुटकी, कोदो, झंगोरा, कांगनी, चीना जैसे छोटे मिलेट शामिल हैं। यह पहल 28 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू और कश्मीर और लद्दाख को कवर करती है।

भारत सरकार राज्यों को अपनी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (पीएम आरकेवीवाई) का उपयोग करने की भी अनुमति देती है। राज्य स्तरीय स्वीकृति समिति की मंजूरी से राज्य इस योजना के अंतर्गत श्री अन्न के नाम से जाने जाने वाले मोटे अनाज और मिलेट्स को बढ़ावा दे सकते हैं। इस समिति की अध्यक्षता राज्य के मुख्य सचिव द्वारा की जाएगी।

पोषक अनाज उप-मिशन के अंतर्गत, किसानों को उनके संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के माध्यम से सहायता प्राप्त होती है। इस सहायता में उन्नत कृषि पद्धतियों, ऊंची उपज देने वाली किस्मों और संकर बीजों के उत्पादन एवं वितरण और आधुनिक कृषि मशीनरी और संसाधन संरक्षण उपकरणों के उपयोग को प्रदर्शित करने के लिए क्लस्टर प्रदर्शन शामिल हैं। किसानों को कुशल जल-उपयोग उपकरण, पौध संरक्षण उपाय, मृदा स्वास्थ्य इनपुट और विभिन्न फसल प्रणालियों पर प्रशिक्षण के साथ भी सहायता प्रदान की जाती है।

इस मिशन के लिए व्यापक आवंटन कृषिओन्नति योजना का हिस्सा है, जिसका वित्तीय परिव्यय 2025-26 के लिए ₹8,000 करोड़ है। किसानों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (पीएम आरकेवीवाई) के माध्यम से भी सहायता मिलती है, जो फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करती है और जिसका बजट 2025-26 के लिए ₹8,500 करोड़ है।

2- प्रसंस्करण और वैल्यू चेन समर्थन

क) प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना (पीएम एफएमई)

प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना (पीएम-एफएमई) सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को लक्षित सहायता प्रदान करती है, जिनमें मोटे अनाज पर आधारित उत्पादों से संबंधित इकाइयां भी शामिल हैं। इस योजना के लिए 2025-26 के लिए ₹2,000 करोड़ का आवंटन किया गया है।

ख) मोटे अनाज पर आधारित उत्पादों के लिए उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन (पीएलआईएसएमबीपी)

  • मोटे अनाज पर आधारित उत्पादों के लिए उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन योजना (पीएलआईएसएमबीपी) निम्नलिखित को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की गई थी
  • ब्रांडेड रेडी टू ईट (आरटीई) और रेडी टू कुक (आरटीसी) उत्पादों में मोटे अनाज का उपयोग।
  • घरेलू और निर्यात दोनों बाजारों के लिए मोटे अनाज पर आधारित खाद्य पदार्थों के विनिर्माण को समर्थन देकर उनके मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहित करना।
  • अनाज की उत्पादन मांग को बढ़ाकर मोटे अनाज के उत्पादकों को खाद्य प्रसंस्करणकर्ताओं से जोड़ना।

योजना के घटक

बिक्री वृद्धि से जुड़ा प्रोत्साहन: प्रतिभागियों को आधार वर्ष की तुलना में पात्र मोटे अनाज-आधारित उत्पादों की बिक्री में कम से कम 10% की वार्षिक वृद्धि हासिल करनी होगी। पात्र उत्पादों में भार या आयतन के हिसाब से कम से कम 15% मोटा अनाज होना चाहिए और उपभोक्ता पैक में ब्रांडेड होना चाहिए। योजक, तेल या स्वाद को छोड़कर, केवल घरेलू स्तर पर उत्पादित मोटा अनाज ही स्वीकार किया जाएगा।

इस योजना का परिव्यय ₹800 करोड़ है, जो खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (पीएलआईएसएफपीआई) के बड़े कोष से निकाला गया है। इसमें से ₹793.27 करोड़ की राशि 29 कंपनियों को सहायता प्रदान करने के लिए स्वीकृत की गई है, जिनमें 8 बड़ी और 21 लघु एवं मध्यम आकार की इकाइयां शामिल हैं। इसका उद्देश्य मिलेट प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा देना और घरेलू तथा वैश्विक दोनों बाजारों में उनकी उपस्थिति बढ़ाना है।

3. निर्यात संवर्धन और विपणन

मोटे अनाज के लिए निर्यात संवर्धन का नेतृत्व वाणिज्य विभाग के अंतर्गत कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) द्वारा किया जाता है। एपीडा को विदेशों में भारतीय मोटे अनाज के लिए बाजार विकसित करने का विशिष्ट दायित्व प्राप्त है। पिछले 11 वर्षों में प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का निर्यात 5 अरब डॉलर से बढ़कर 11 अरब डॉलर हो गया है। प्राधिकरण को 2025-26 में ₹80 करोड़ आवंटित किए गए हैं।

गौरतलब हो, सरकार वैश्विक बाजारों में भारतीय मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए स्टार्ट-अप्स, शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों, भारतीय मिशनों, प्रसंस्करणकर्ताओं, खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। भारतीय मोटे अनाज की वैश्विक उपस्थिति को बढ़ावा देने के लिए एक निर्यात संवर्धन मंच (ईपीएफ) की स्थापना की गई है। यह हितधारकों को जोड़ने और लक्षित पहुंच के माध्यम से निर्यात को बढ़ावा देने का काम करता है। एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल भी विकसित किया गया है। यह विभिन्न प्रकार के बाजरे, उनके स्वास्थ्य लाभों, उत्पादन प्रवृत्तियों और निर्यात आँकड़ों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। इस पोर्टल में व्यापार को बढ़ावा देने और खरीदारों को आपूर्तिकर्ताओं से जोड़ने के लिए पंजीकृत मिलेट निर्यातकों की एक निर्देशिका भी उपलब्ध है।

4. अनुसंधान एवं विकास

कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डीएआरई) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) मोटे अनाज की उन्नत किस्मों के विकास पर निरंतर कार्य कर रहे हैं।

हैदराबाद स्थित आईसीएआर-भारतीय श्री अन्न अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अंतर्गत भारत में मोटे अनाज के अनुसंधान के लिए नोडल एजेंसी है। इंटरनेशनल मिलेट ईयर 2023 के दौरान मोटे अनाज पर वैश्विक उत्कृष्टता केंद्र के रूप में मान्यता प्राप्त, यह संस्थान मोटे अनाज की खेती और जागरूकता में सुधार के प्रयासों का नेतृत्व करता है।

आईआईएमआर उच्च उपज वाले मोटे अनाज के बीज विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करता है और छोटे एवं सीमांत किसानों को उन्नत कृषि विधियों, मूल्य संवर्धन और स्वास्थ्य लाभों पर व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करता है। यह किसानों की आय बढ़ाने और बाजरा की खेती का विस्तार करने के लिए मिलेट-आधारित किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के गठन का समर्थन करता है।

ज्ञान साझेदार के रूप में, आईआईएमआर ओडिशा, कर्नाटक, झारखंड, तमिलनाडु, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ आदि में राज्य मिशनों और कृषि विभागों के साथ सहयोग करता है। इन साझेदारियों का उद्देश्य मिलेट को जलवायु-लचीली फसलों के रूप में बढ़ावा देना और उनके पोषण मूल्य के बारे में सार्वजनिक जागरूकता पैदा करना है।

5. सार्वजनिक वितरण और खरीद

गौरतलब हो, मोटे अनाज को भी सार्वजनिक खरीद प्रणाली में एकीकृत किया गया है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएम-जीकेएवाई) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, मिलेट सहित मोटे अनाज की खरीद और वितरण का प्रावधान करते हैं। यदि कोई राज्य ऐसा अनुरोध करता है, तो सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गेहूं या चावल की समान मात्रा के स्थान पर मोटा अनाज और मिलेट भी उपलब्ध कराया जा सकता है। हालांकि, आपूर्ति किए जाने वाले चावल, गेहूं और मोटे अनाज की कुल मात्रा प्रत्येक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के लिए निर्धारित अधिकतम सीमा के भीतर होनी चाहिए। वहीं, परिणाम बजट 2025-26 में पीएम-जीकेएवाई के लिए कुल ₹2,03,000 करोड़ का आवंटन दर्शाया गया है।

उल्लेखनीय है, देश में सभी प्रकार के मिलेट में बाजरा का उत्पादन सबसे अधिक हुआ। कुल मिलेट उत्पादन में इसका योगदान सबसे अधिक था, इसके बाद ज्वार, रागी और छोटे बाजरे का स्थान रहा। आपको बता दें, 2024-25 में, भारत ने कुल 89,164.96 टन मिलेट का निर्यात किया। इन निर्यातों का कुल मूल्य 37 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।

आइये आपको बताते हैं, दैनिक आहार में मिलेट को बढ़ावा देने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों क्या प्रयास कर रहें हैं-

आंध्र प्रदेश

आईफएडी (कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष) और आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थानीय कृषि एजेंसियों के सहयोग से बार-बार होने वाले सूखे की समस्या पर ध्यान केंद्रित करने के लिए समर्थित, जिससे कृषि की उत्पादकता प्रभावित होती है।

स्थापित किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से, यह परियोजना फॉक्सटेल, लिटिल, बार्नयार्ड, कोदो, ब्राउन टॉप बाजरा आदि जैसी छोटी मिलेट किस्मों को बढ़ावा दे रही है। नवाचारों में फॉक्सटेल और ब्राउन टॉप मिलेट का उपयोग करके मिलेट-आधारित व्यंजनों जैसे रोटी, बिस्कुट, पायसम (खीर), चिक्की, लड्डू, जंटिकालू आदि का विकास शामिल है।

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ सरकार ने मिलेट की खेती का केंद्र बनने के लिए 2021 में इस मिशन की शुरुआत की। कोदो, कुटकी और रागी की उत्पादकता में सुधार के लिए ICAR-IIMR के साथ समझौता ज्ञापन पर जोर। जनजातीय समावेशन, विकेन्द्रीकृत प्रसंस्करण और एफपीओ विकास पर ज़ोर।

हरियाणा

भावांतर भरपाई योजना हरियाणा सरकार की एक मूल्य क्षतिपूर्ति योजना है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और औसत बाजार मूल्य के बीच के अंतर को ‘भावांतर’ मूल्य कहा जाता है। केवल ‘मेरी फ़सल, मेरा ब्यौरा’ पोर्टल पर पंजीकृत किसान ही लाभ के पात्र हैं। इसे शुरू में बाज़ार मूल्य में गिरावट के दौरान बागवानी किसानों का समर्थन करने के लिए शुरू किया गया था। यह योजना न्यूनतम लाभ सुनिश्चित करके किसानों के वित्तीय जोखिम को कम करने में मदद करती है। इसका उद्देश्य राज्य भर में फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना भी है।

2021 के खरीफ मौसम से, बाजरा को इस योजना में शामिल किया गया। हरियाणा देश का पहला राज्य बन गया जिसने भावांतर भुगतान योजना (बीबीवाई) के माध्यम से बाजरे की फसल को मूल्य संरक्षण प्रदान किया। यदि निजी खरीदार कम कीमत की पेशकश करते हैं, तो सरकार किसान को ₹600 प्रति क्विंटल तक का मुआवज़ा देती है। वहीं, भुगतान औसत उपज और फसल रिकॉर्ड के सत्यापन के बाद किया जाता है।

ओडिशा मिलेट मिशन

ओडिशा सरकार ने 2017 में ओडिशा मिलेट बाजरा मिशन शुरू किया था। इसे आदिवासी क्षेत्रों में मिलेट, विशेष रूप से रागी को पुनर्जीवित करने के लिए एक विशेष पहल के रूप में शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम का उद्देश्य वैल्यू चेन के सभी चरणों पर ध्यान केंद्रित करते हुए मिलेट को खेतों और घरों तक वापस लाना है। इसमें मिलेट की खेती, प्रसंस्करण, उपभोग, विपणन और सरकारी खाद्य योजनाओं से उसे जोड़ना शामिल है। प्रमुख विशेषताओं में किसानों को सशर्त नकद हस्तांतरण, आंगनवाड़ी केंद्रों में रागी लड्डू को शामिल करना, जिससे प्रीस्कूल बच्चों को लाभ मिलेगा, तथा लाखों लोगों को सेवा प्रदान करने वाले मिलेट शक्ति कैफे शामिल हैं।

फरवरी 2025 तक, ओडिशा के दो जिलों – मलकानगिरी और नुआपाड़ा में मिलेट आधारित उत्पादों को एक ज़िला एक उत्पाद (ओडीओपी) के रूप में चिन्हित किया गया है। इसके अतिरिक्त, मिलेट प्रसंस्करण पर केंद्रित इनक्यूबेशन केंद्रों को भी मंजूरी दी गई है। अब तक, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन (पीएमएफएमई) योजना के तहत देश भर में 17 बाजरा आधारित इनक्यूबेशन केंद्रों को मंजूरी दी जा चुकी है।

इसी योजना के तहत, ओडिशा में मिलेट आधारित प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करने के लिए 21 उद्यमियों को ₹1.44 करोड़ के ऋण स्वीकृत किए गए हैं। देश भर में, ऐसे 3300 से अधिक उद्यमियों को कुल ₹173.24 करोड़ के ऋण स्वीकृत किए गए हैं।

नागालैंड

वहीं, एनएफएसएम के अंतर्गत पोषक अनाज-राज्य की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन पहलों में फॉक्सटेल मिलेट को औपचारिक रूप से शामिल किया गया।
गतिविधियों में बीज वितरण, एकीकृत पोषक तत्व एवं कीट प्रबंधन और प्रशिक्षण शामिल थे।

मिलेट का मुख्यधारा का ढांचा

मिलेट का मुख्यधारा का ढांचा वैल्यू चेन के छह प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है। इनमें उत्पादन, भंडारण और परिवहन, प्रसंस्करण, पैकेजिंग और ब्रांडिंग, वितरण और उपभोग शामिल हैं। उत्पादन के दौरान, किसानों को बेहतर कृषि पद्धतियों का प्रशिक्षण देने का प्रयास किया जाता है। बीज, उपकरण, सिंचाई और कृषि अनुसंधान के लिए भी सहायता प्रदान की जाती है। भंडारण और परिवहन के लिए, भंडारण सुविधाओं में सुधार, कटाई के बाद के प्रबंधन का प्रबंधन और उपज की आवाजाही के दौरान होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कार्य किया जा रहा है।

प्रसंस्करण में कटाई, सफाई, ग्रेडिंग और नई तकनीकों का प्रसार शामिल है। छोटे मिलेट के प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। पैकेजिंग और ब्रांडिंग में, पोषण लेबलिंग, जैविक प्रमाणीकरण और ब्रांड निर्माण के लिए सहायता प्रदान की जाती है। एफपीओ और किसान समूहों को बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करने के लिए मार्गदर्शन दिया जाता है।

वितरण प्रयासों में किसान समूहों को एक साथ आने, बाजार खोजने और खरीदारों से जुड़ने में मदद करना शामिल है। निर्यात समर्थन भी इसी क्षेत्र का एक हिस्सा है। खपत बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान शुरू किए गए हैं। छोटे व्यवसायों और मोबाइल कियोस्क को स्थानीय बाजारों में बाजरा-आधारित उत्पाद बेचने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

ये गतिविधियां पांच मज़बूत आधारों पर टिकी हैं। ये हैं संस्थागत समर्थन, वित्तीय पहुंच, साझेदारी, एक सहायक नीतिगत माहौल और लैंगिक समावेश।

इसके अलावा, जागरूकता बढ़ाने के लिए, दिल्ली के दिल्ली हाट में एक मिलेट एक्सपीरियंस सेंटर स्थापित किया गया है। सरकारी कार्यालयों को भी अपनी बैठकों, कार्यक्रमों और कैंटीनों में बाजरा-आधारित नाश्ते और भोजन शामिल करने की सलाह दी गई है।

दरअसल, मिलेट या श्री अन्न, एक स्वस्थ, अधिक लचीले और टिकाऊ भविष्य का वादा करता है। अपने समृद्ध पोषण संबंधी गुणों और जलवायु-अनुकूल गुणों के साथ, ये आज भारतीय कृषि के सामने आने वाली कई चुनौतियों का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करते हैं। केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, अनुसंधान संगठनों, किसान संगठनों और निजी क्षेत्र के सामूहिक प्रयासों से बाजरे को खेतों, बाज़ारों और आहार में उसका उचित स्थान दिलाने में मदद मिल रही है।

 

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आखरी अपडेट: 7th Sep 2025