भारत के पहले पैरा ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता मुरलीकांत राजाराम पेटकर को उनकी जीवनभर की उपलब्धियों के लिए खेल मंत्रालय ने अर्जुन पुरस्कार देने की घोषणा की है। यह सम्मान उन्हें 1972 में जर्मनी के हीडलबर्ग में हुए पैरालंपिक खेलों में ऐतिहासिक जीत के 52 साल बाद मिल रहा है।
भारतीय सेना की इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई) कोर में सैनिक रहे पेटकर 1965 में श्रीनगर में एक सेना कैंप पर हुए हमले में गंभीर रूप से घायल हो गए थे जिससे वह लकवाग्रस्त हो गए। इसके बावजूद उन्होंने 1972 के पैरालंपिक खेलों में पुरुषों की 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में स्वर्ण पदक जीता और तीन विश्व रिकॉर्ड बनाए। इसके साथ ही वह पैरालंपिक में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के पहले खिलाड़ी भी बने।
मुरलीकांत पेटकर को 2018 में पद्म श्री से भी किया गया था सम्मानित
हालांकि उनकी उपलब्धियां ऐतिहासिक थीं, लेकिन उस समय पैरा खेलों को अधिक मान्यता नहीं मिली और पेटकर को दशकों तक बड़े सम्मान से वंचित रहना पड़ा। 2018 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया। अब, 80 वर्ष की आयु में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें 17 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति भवन में अर्जुन पुरस्कार प्रदान करेंगी।
पेटकर एक समय देश के शीर्ष मुक्केबाज बनने की इच्छा रखते थे और अपनी चोट से पहले जापान में आयोजित मिलिट्री गेम्स में बॉक्सिंग में स्वर्ण पदक जीत चुके थे। चोट के बाद भी उन्होंने अपने खेल कौशल का परिचय दिया। 1968 के पैरालंपिक खेलों में उन्होंने पैरा टेबल टेनिस में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 1972 के खेलों में तैराकी के साथ भाला फेंक, प्रिसिशन भाला फेंक और स्लैलम जैसे कई खेलों में शानदार प्रदर्शन किया।
सेवानिवृत्ति के बाद पेटकर टेल्को से सेवानिवृत्त होकर पुणे में रह रहे हैं। उनके बेटे अर्जुन मुरलीकांत पेटकर भारतीय सेना में कार्यरत हैं। पेटकर की प्रेरणादायक यात्रा, जिसमें उन्होंने विभिन्न कठिनाइयों को पार करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता हासिल की जो आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।