जलवायु पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की चौथी द्विवार्षिक अपडेट रिपोर्ट (बीयूआर-4) के अनुसार, भारत जलवायु लचीलेपन की दिशा में अपनी यात्रा में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है और 2019 की तुलना में 2020 में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में 7.93% की कमी दर्ज की गई है। यह कटौती टिकाऊ और कम कार्बन वाले भविष्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है, जो 2021 में पार्टियों के 26वें सम्मेलन (COP26) के दौरान की गई 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने की अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप है। यह जानकारी पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दी। यह उपलब्धि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक प्रगति को सार्थक जलवायु कार्रवाई के साथ जोड़ने की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
दरअसल जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान ने पृथ्वी पर जीवन के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया है। जिससे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए देशों को पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) प्रस्तुत करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसके जवाब में भारत ने 2021 में कॉप 26 के सम्मेलन में 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने का संकल्प लिया। भारत की चौथी द्विवार्षिक अपडेट रिपोर्ट (बीयूआर-4) में 2019 की तुलना में 2020 में जीएचजी उत्सर्जन में 7.93 प्रतिशत की कमी पर प्रकाश डाला गया है।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप21) का 21वां सत्र 2015 में पेरिस में हुआ था, जहां 195 देशों ने पेरिस समझौते को अपनाया था। समझौते का उद्देश्य पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक सीमित करना है। साथ ही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को जल्द से जल्द करने के प्रयासों को आगे बढ़ाना है। यह 4 नवंबर, 2016 को लागू हुआ, जिसके तहत देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) प्रस्तुत करने की आवश्यकता हुई।
प्रगति पर नजर रखने के लिए हर दो साल में भारत यूएनएफसीसीसी को द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (बीयूआर) प्रस्तुत करता है। भारत ने 30 दिसंबर 2024 को यूएनएफसीसीसी को अपनी चौथी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (बीयूआर-4) सौंपी।
भारत ग्लोबल वार्मिंग में न्यूनतम योगदान देने के बावजूद, अपनी बड़ी आबादी और विकासात्मक आवश्यकताओं के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है। देश अपनी अनूठी परिस्थितियों को पूरा करते हुए कम कार्बन उत्सर्जन और जलवायु आत्मनिर्भरता के निर्माण को लेकर प्रतिबद्ध है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार 1850 और 2019 के बीच दुनिया की लगभग 17% आबादी होने के बावजूद बढ़ती वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में भारत की ऐतिहासिक हिस्सेदारी वार्षिक 4% है। 2019 में भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक प्राथमिक ऊर्जा खपत 28.7 गीगाजूल (जीजे) थी, जो विकसित और विकासशील दोनों देशों की तुलना में काफी कम है।