सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अंतरिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। हालांकि जस्टिस दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली वेकेशन बेंच ने कहा कि हेमंत सोरेन ने ट्रायल कोर्ट की ओर से मामले में संज्ञान लेने के तथ्य का खुलासा नहीं किया।
सुनवाई के दौरान आज सुप्रीम कोर्ट ने सोरेन के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि आपको कब पता चला कि ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान ले लिया है। इस पर सिब्बल ने कहा कि चार अप्रैल को संज्ञान लिया गया था जब सोरेन हिरासत में थे। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद सिब्बल ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाबी हलफनामा में सोरेन की अंतरिम जमानत याचिका का विरोध किया था। ईडी ने कहा कि हेमंत सोरेन संपत्तियों के अवैध अधिग्रहण और कब्जे में लिप्त रहे हैं। मनी लॉन्ड्रिंग कानून की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए बयानों से पता चलता है कि रांची के बरियातू में 8.86 एकड़ पर हेमंत सोरेन का कब्जा है और उसका इस्तेमाल हेमंत सोरेन गुप्त रूप से कर रहे थे। ईडी ने कहा था कि चुनाव प्रचार करना न तो संवैधानिक अधिकार है और न मौलिक अधिकार है। ईडी ने आशंका जताई थी कि यदि हेमंत सोरेन को रिहा किया गया तो वे जांच को प्रभावित कर सकते हैं।
सुनवाई के दौरान सोरेन की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि जमीन घोटाले का आरोप लगाया गया है। इसके लिए कुछ लोगों के बयान को आधार बनाया गया है जबकि जमीन से सोरेन का कोई संबंध नहीं है और न ही कभी कोई कब्जा नहीं था। सिब्बल ने झारखंड में मतदान को देखते हुए सोरेन को अंतरिम जमानत देने की मांग की थी।
गौरतलब है कि कोर्ट ने 13 मई को सोरेन की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ईडी को नोटिस जारी किया था। ईडी ने 31 जनवरी को हेमंत सोरेन से पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया था। सोरेन को भूमि घोटाला मामले में गिरफ्तार किया गया था।