विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने आज रविवार को बताया कि भारतीय न्याय संहिता, भारतीय सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम नामक तीन नए आपराधिक कानून 1 जुलाई, 2024 से लागू हो जाएंगे। मेघवाल ने कहा कि आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में बदलाव हो रहे हैं। उचित परामर्श प्रक्रिया और भारतीय विधि आयोग की रिपोर्टों को ध्यान में रखते हुए तीनों कानूनों में बदलाव किया गया है।
मेघवाल ने कहा ये तीनों कानून 1 जुलाई से भारतीय न्याय संहिता, भारतीय सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के नाम से लागू होंगे। उन्होंने कहा कि इन तीनों नए कानूनों के लिए प्रशिक्षण सुविधाएं सभी राज्यों में प्रदान की जा रही हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआरडी) इसके लिए प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा, “हमारी न्यायिक अकादमियाँ, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय भी इसके लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत अपराध की प्रकृति के आधार पर सामान्य आपराधिक कानूनों के तहत पुलिस हिरासत की अवधि 15 दिन से बढ़ाकर 90 दिन कर दी गई है।
भारतीय न्याय संहिता में होंगे 358 धाराएं
भारतीय न्याय संहिता में आईपीसी में 511 धाराओं के बजाय 358 धाराएं होंगी विधेयक में कुल 20 नए अपराध जोड़े गए हैं और उनमें से 33 के लिए कारावास की सजा बढ़ा दी गई है। 83 अपराधों में जुर्माने की राशि बढ़ाई गई है तथा 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा की शुरुआत की गई है। छह अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का दंड पेश किया गया है तथा विधेयक से 19 धाराओं को निरस्त या हटाया गया है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में सीआरपीसी की 484 धाराओं के बजाय अब 531 धाराएं होंगी। विधेयक में कुल 177 प्रावधानों में बदलाव किया गया है तथा इसमें नौ नई धाराओं के साथ-साथ 39 नई उपधाराएं जोड़ी गई हैं। मसौदा अधिनियम में 44 नए प्रावधान और स्पष्टीकरण जोड़े गए हैं। 35 धाराओं में समयसीमा जोड़ी गई है तथा 35 स्थानों पर ऑडियो-वीडियो प्रावधान जोड़ा गया है। कुल 14 धाराओं को निरस्त कर विधेयक से हटाया गया है।
वहीं भारतीय साक्ष्य अधिनियम में मूल 167 प्रावधानों के बजाय कुल 170 प्रावधान होंगे तथा कुल 24 प्रावधानों में बदलाव किया गया है। विधेयक में दो नए प्रावधान और छह उप-प्रावधान जोड़े गए हैं तथा छह प्रावधानों को निरस्त या हटा दिया गया है।
भारत में हाल ही में किए गए आपराधिक न्याय सुधार प्राथमिकताओं में महत्वपूर्ण बदलाव किये गए हैं। जिसमें महिलाओं, बच्चों और राष्ट्र के विरुद्ध अपराधों को सबसे आगे रखा गया है। यह औपनिवेशिक युग के कानूनों के बिल्कुल विपरीत है, जहाँ राजद्रोह और राजकोष अपराध जैसी चिंताएं आम नागरिकों की ज़रूरतों से ज़्यादा महत्वपूर्ण थी।