नीति आयोग ने आज शुक्रवार को देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की ताकत को बढ़ाने के लिए एक नई रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में वित्तीय सहायता, कौशल विकास, नवाचार और बाजार तक पहुंच जैसे क्षेत्रों में सुधार का खाका पेश किया गया है। यह रिपोर्ट ‘Enhancing SMEs Competitiveness in India’ शीर्षक से जारी की गई है, जिसे नीति आयोग ने Institute of Competitiveness के साथ मिलकर तैयार किया है।
इस रिपोर्ट में फर्म-स्तर के डेटा और पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के आधार पर MSME क्षेत्र की चुनौतियों और संभावनाओं का गहराई से विश्लेषण किया गया है। यह रिपोर्ट चार मुख्य सेक्टरों-टेक्सटाइल और परिधान, रसायन उत्पाद, ऑटोमोबाइल और फूड प्रोसेसिंग पर केंद्रित है और उनके सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों और अवसरों को उजागर करती है।
वहीं रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 से 2024 के बीच शेड्यूल्ड बैंकों से औपचारिक कर्ज पाने वाली माइक्रो और स्मॉल कंपनियों की हिस्सेदारी 14% से बढ़कर 20% हो गई है। मीडियम एंटरप्राइजेज की हिस्सेदारी भी 4% से बढ़कर 9% हो गई है। हालांकि, फिर भी MSME सेक्टर में बहुत बड़ा क्रेडिट गैप बना हुआ है। वित्त वर्ष 2020-21 में केवल 19% MSMEs की कर्ज जरूरत औपचारिक रूप से पूरी हो सकी, जबकि 80 लाख करोड़ रुपये की मांग अब भी अधूरी है।
सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिए ऋण गारंटी निधि ट्रस्ट (सीजीटीएमएसई) का विस्तार तो हुआ है, लेकिन यह अभी भी कई सीमाओं से घिरा है। रिपोर्ट सुझाव देती है कि CGTMSE को और मजबूत बनाने, संस्थागत सहयोग बढ़ाने और टारगेटेड सेवाएं देने की जरूरत है ताकि सभी MSMEs को कर्ज मिल सके। इसके साथ ही, MSME सेक्टर में कौशल की कमी भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। बड़ी संख्या में कर्मचारी तकनीकी या व्यावसायिक प्रशिक्षण के बिना काम कर रहे हैं, जिससे उत्पादकता और विस्तार की क्षमता प्रभावित होती है। इसके साथ ही, बहुत से MSMEs R&D, गुणवत्ता सुधार और नवाचार में पर्याप्त निवेश नहीं करते, जिससे वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाते हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बिजली की अनियमित आपूर्ति, कमजोर इंटरनेट कनेक्टिविटी और उच्च लागत के कारण बहुत से MSMEs आधुनिक तकनीकें अपनाने में असमर्थ हैं। राज्य सरकारों की योजनाओं के बावजूद कई उद्यम इनसे अनजान हैं या उनका लाभ नहीं उठा पाते। क्लस्टर स्तर पर रिपोर्ट कहती है कि MSMEs को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए पुरानी तकनीकों को उन्नत करना, मार्केटिंग और ब्रांडिंग क्षमताओं को सुधारना बहुत जरूरी है। नीति आयोग ने यह भी माना कि कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय नीतियां प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पातीं क्योंकि MSMEs को इनके बारे में जानकारी नहीं होती। इसलिए बेहतर प्रभाव के लिए राज्य स्तर पर मजबूत नीतिगत डिजाइन, निरंतर निगरानी, डेटा इंटीग्रेशन और नीति-निर्माण में हितधारकों की भागीदारी जरूरी है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के MSMEs यदि तकनीकी सहायता, डिजिटल मार्केटिंग, लॉजिस्टिक्स साझेदारी और सीधे बाजार से जुड़ाव जैसे उपायों को अपनाते हैं, तो यह क्षेत्र देश की समावेशी और सतत आर्थिक वृद्धि का मुख्य इंजन बन सकता है। खासकर पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत के क्षेत्रों में इसकी बहुत बड़ी संभावनाएं हैं। रिपोर्ट यह सिफारिश भी करती है कि राज्यों में मजबूत, लचीली और क्लस्टर-आधारित नीति बनाई जाए जो नवाचार को बढ़ावा दे, प्रतिस्पर्धा बढ़ाए और MSME सेक्टर को देश की आर्थिक तरक्की में अग्रणी भूमिका निभाने में सक्षम बनाए।-(IANS)