भारत का लोकतांत्रिक ढांचा अपनी जीवंत चुनावी प्रक्रिया के आधार पर फल-फूल रहा है । स्वतंत्रता के बाद से अब तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के 400 से अधिक चुनावों ने निष्पक्षता और पारदर्शिता के प्रति भारत के चुनाव आयोग की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है। हालांकि, अलग-अलग और बार-बार होने वाले चुनावों की प्रकृति ने एक अधिक कुशल प्रणाली की आवश्यकता पर चर्चाओं को जन्म दिया है। इससे “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की अवधारणा में रुचि फिर से जग गई है।
17 दिसंबर को 129वां संविधान संशोधन विधेयक
ऐसे में लोकसभा में 17 दिसंबर को 129वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया। इसमें प्रस्ताव किया गया है कि एक अवधि के बाद सभी राज्यों की वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल छोटा कर एक साथ चुनाव कराए जाएं। केन्द्र और राज्यों में चुनाव के थोड़े समय बाद ही नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव कराए जाएं। बहुमत न मिलने और अल्पमत की स्थिति में दोबारा चुनाव कराए जाने पर कार्यकाल केवल बाकी बचे समय के लिए हो।
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” विधेयक का उद्देश्य
विधेयक के उद्देश्य में कहा गया है कि विभिन्न कारणों से तथा निर्वाचन महंगे और समय लेने वाले हो गए हैं, इसलिए, एक साथ निर्वाचन करवाने की अत्यंत आवश्यकता है। देश के मतदान की प्रक्रिया वाले कई हिस्सों में आदर्श आचार संहिता के लागू होने के चलते संपूर्ण विकास कार्यक्रमों पर रोक लगा देता है, सामान्य जनजीवन में व्यवधान पैदा करता है, सेवाओं के क्रियान्वयन को प्रभावित करता है और निर्वाचन ड्यूटी के लिए लंबी अवधियों हेतु जनशक्ति की तैनाती से उनके मूल क्रियाकलापों में संलग्न होने को भी कम करता है।
विधेयक एक नए अनुच्छेद 82क (लोकसभा और सभी विधानसभाओं के एक साथ निर्वाचन) को अंतःस्थापित करने तथा अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), अनुच्छेद 172 (राज्यों के विधान मंडलों की अवधि) तथा अनुच्छेद 327 (विधान मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति) का संशोधन करने का प्रस्ताव करता है।
लोकसभा में पेश किए गए विधेयक से जुड़े प्रावधान इस प्रकार हैं
संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 संविधान के तीन अनुच्छेदों में संशोधन करके एक नया अनुच्छेद, अनुच्छेद 82ए जोड़ने का प्रस्ताव करता है। इसमें प्रावधान है कि राष्ट्रपति साधारण निर्वाचन के बाद लोकसभा की पहली तारीख की पहली बैठक को अधिसूचना जारी कर इस उपबंध को लागू करेंगे और अधिसूचना की यह तारीख ही नियत तारीख कहलाएगी।
विधेयक में यह भी व्यवस्था की गई है कि अगले अनुच्छेद 83 और अनुच्छेद 172 में किसी बात के होते हुए भी नियत तारीख के पश्चात और लोकसभा की पूर्ण अवधि की समाप्ति के पूर्व होने वाले किसी भी साधारण निर्वाचन में गठित सभी विधान सभाएं लोकसभा की पूर्ण अवधि की समाप्ति पर समाप्त हो जाएगी। अगर लोकसभा के साथ किसी विधानसभा का निर्वाचन नहीं कराया जा सकता है तो वह राष्ट्रपति को इसके लिए सिफारिश करेगा कि वह उसके लिए अलग से निर्वाचन कराने की अनुमति दे। विधानसभा की तारीख भी उसी दिन खत्म मानी जाएगी, जिस दिन लोकसभा की पूर्ण अवधि समाप्त होगी।
विधेयक में प्रावधान है कि संविधान के अनुच्छेद 172 में कुछ खंड जोड़े जाएंगे। इसके तहत यह व्यवस्था होगी कि अगर बीच में विधानसभा भंग हुई तो बचे हुए समय के लिए ही राज्य में चुनाव कराकर सरकार का गठन हो। विधेयक में अनुच्छेद 327 में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन शब्दों के पश्चात एक साथ निर्वाचन कराना शब्द अंत:स्थापित किए जाएंगे। इस तरह यह विधेयक 2034 से पहले नहीं लागू हो पाएगा।
पहले एक साथ होते थे सभी चुनाव
एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा भारत में नयी नहीं है। संविधान को अंगीकार किए जाने के बाद 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के पहले आम चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित किए गए थे। यह परंपरा इसके बाद 1957, 1962 और 1967 के तीन आम चुनावों के लिए भी जारी रही।
हालांकि, कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण 1968 और 1969 में एक साथ चुनाव कराने में बाधा आई थी। चौथी लोकसभा भी 1970 में समय से पहले भंग कर दी गई थी, फिर 1971 में नए चुनाव हुए। पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने पांच वर्षों का अपना कार्यकाल पूरा किया। जबकि, आपातकाल की घोषणा के कारण पांचवी लोकसभा का कार्यकाल अनुच्छेद 352 के तहत 1977 तक बढ़ा दिया गया था। इसके बाद कुछ ही, केवल आठवीं, दसवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं लोकसभाएं अपना पांच वर्षों का पूर्ण कार्यकाल पूरा कर सकीं। जबकि छठी, सातवीं, नौवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं सहित अन्य लोकसभाओं को समय से पहले भंग कर दिया गया।
पिछले कुछ वर्षों में राज्य विधानसभाओं को भी इसी तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ा है। विधानसभाओं को समय से पहले भंग किया जाना और कार्यकाल विस्तार बार-बार आने वाली चुनौतियां बन गए हैं। इन घटनाक्रमों ने एक साथ चुनाव के चक्र को अत्यंत बाधित किया, जिसके कारण देश भर में चुनावी कार्यक्रमों में बदलाव का मौजूदा स्वरूप सामने आया है।
एक साथ चुनाव कराने के संबंध में उच्च स्तरीय समिति
एक देश, एक चुनाव के लिए भारत सरकार ने 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव कराने पर उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। इसका प्राथमिक उद्देश्य यह पता लगाना था कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना कितना उचित होगा। समिति ने इस मुद्दे पर व्यापक स्तर पर सार्वजनिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं मांगीं और इस प्रस्तावित चुनावी सुधार से जुड़े संभावित लाभों और इसकी चुनौतियों का विश्लेषण करने के लिए विशेषज्ञों से परामर्श किया। यह रिपोर्ट समिति के निष्कर्षों, संवैधानिक संशोधनों के लिए इसकी सिफारिशों और शासन, संसाधनों तथा जन-मानस पर एक साथ चुनाव के अपेक्षित प्रभाव का विस्तृत अवलोकन प्रस्तुत करती है।