प्रतिक्रिया | Tuesday, February 25, 2025

  • Twitter
  • Facebook
  • YouTube
  • Instagram

12/02/25 | 2:04 pm

printer

आदर्श हिन्दू विकास का प्रतीक उत्तर प्रदेश का 76वां जिला प्रयागराज कुंभ मेला क्षेत्र

अक्टूबर 2018 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद शहर का नामकरण पुन: प्रयागराज किया तो फर्जी सेक्युलरिज्म की कहानियां सुनाकर देश को उसकी पहचान से दूर करने के लिए लगे ठेकेदारों ने नई कहानियां बनानी/बतानी शुरू कर दीं थीं। अकबर की महानता के किस्से भी खूब आए और यह भी बताया जाने लगा कि कैसे योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने मुस्लिम पहचान मिटाना शुरू कर दिया है। उसी फर्जी सेक्युलर जमात ने शहर की पहचान खत्म करने के साथ ही अतिक्रमण हटाने के नाम पर लोगों के घरों-दुकानों को तोड़कर उनको नुकसान पहुंचाने का आरोप भी लगा दिया था। 2019 का कुंभ विश्व में कई तरह के कीर्तिमान बनाने के साथ संपन्न हो चुका है। 6 वर्ष और कब बीत गए, पता ही नहीं चला और पुन: प्रयागराज का कुंभ आ गया। अब योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ मेला क्षेत्र को उत्तर प्रदेश का 76वां जिला घोषित कर दिया। महाकुंभ मेला क्षेत्र के नाम से जाना जाने वाला यह 76वां जिला प्रशासनिक सुविधा के लिए बनाया गया एक जिला भर नहीं है उत्तर प्रदेश का यह 76वां जिला आदर्श हिन्दू विकास के एक प्रतीक के तौर पर देखा जाना चाहिए और इसे सम्पूर्ण भारत में हिन्दू विकास का आधार बनाया जा सकता है।

प्रयाग शहर, जिसे बीच के कालखंड में इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था उसके बारे में धर्मवीर भारती ने गुनाहों का देवता में लिखा था कि, “अगर पुराने जमाने की नगर देवता की और ग्राम देवता की कल्पनाएं आज भी मान्य होतीं तो मैं कहता कि इलाहाबाद का नगर देवता जरूर कोई रोमैण्टिक कलाकार है। ऐसा लगता है कि इस शहर की बनावट, गठन, जिन्दगी और रहन-सहन में कोई बंधे-बंधाए नियम नहीं, कहीं कोई कसाव नहीं, हर जगह एक स्वच्छंद खुलाव, एक बिखरी हुई सी अनियमितता। बनारस की गलियों से भी पतली गलियां और लखनऊ की सड़कों से भी चौड़ी सड़कें। यार्कशायर और ब्राइटन के उपनगरों का मुकाबला करने वाले सिविल लाइन्स और दलदलों की गन्दगी को मात देने वाले मुहल्ले। मौसम में भी कोई सम नहीं, कोई सन्तुलन नहीं। सुबहें मलयजी, दोपहरें अंगारी, तो शामें रेशमी ! धरती ऐसी कि सहारा के रेगिस्तान की तरह बालू भी मिले, मालवा की तरह हरे-भरे खेत भी मिलें और ऊसर की परती की भी कमी नहीं। सचमुच लगता है कि प्रयाग का नगर देवता स्वर्ग-कुंजों से निर्वासित कोई मनमौजी कलाकार है जिसके सृजन में हर रंग के डोरे हैं।”

2017 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने और योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद इलाहाबाद को उसके मूल नाम प्रयागराज से ही प्रतिष्ठित करने की प्रक्रिया में 2019 के कुम्भ से पहले धर्मवीर भारती शहर में आ गए होते तो शायद अपना ही लिखा पढ़कर सोचते कि किस शहर के लिए लिखा था। गुनाहों की देवता में धर्मवीर भारती की ग्राम देवता या नगर देवता की बनाई कृति तो इलाहाबाद शहर नहीं ही रह गया था। बरसों से नई सड़कें नहीं बनीं थीं। बरसों से शहर को लगातार जाम में रखने वाले स्थानों पर न तो उड़ानपुल बने और न ही जरूरी जगहों पर पैदल यात्री पथ। शहर का हाल धीरे-धीरे ऐसा होता जा रहा था कि 2 दशक पहले शहर छोड़े लोगों की स्मृतियां और अहसास यहां आने पर कसैले अनुभव में बदल गया था। लगा कि वो मनमौजी कलाकार, ग्राम देवता या नगर देवता एकदम से इस शहर के लोगों से नाराज हो गया था।

दुनिया के जाने-माने साहित्यकार, लेखक और देश को कई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, बड़े-बड़े अधिकारी देने के दम्भ में डूबे इलाहाबाद को अहसास ही नहीं रहा कि कब देश के दूसरे महानगरों की ही तरह तनाव में फंसा शहर होने लगा। इसकी वजह यही थी कि शहर को लेकर किसी ने कोई योजना ही नहीं बनाई थी। प्रतिवर्ष इसी शहर के एक कोने में गंगा की रेती पर विश्व का सबसे व्यवस्थित और कई तरह के आदर्श के साथ बसने वाले शहर भी “इलाहाबाद” को धर्मवीर भारती की कल्पना के आसपास भी नहीं रख सका था। अब उसी 76वें जिले की लगभग डेढ़ महीने की व्यवस्था के लिए जो कुछ हो रहा है वह आदर्श हिन्दू विकास का प्रतीक बनता दिख रहा है। 2019 में रिकॉर्ड 11 महीने में तैयार अत्याधुनिक हवाई अड्डा आज 6 एयरोब्रिज की सुविधा वाला उत्तर प्रदेश का अकेला हवाई अड्डा बन गया है। विश्व के हर कोने से आने वाले हिन्दुओं ने प्रयागराज के बमरौली में इस हवाई अड्डे को यह प्रतिष्ठा दे दी है। 2019 से 2024 के कुंभ तक शहर की सड़कें, चौराहे अपने पुराने स्वरूप में आ चुके हैं या कहें कि उससे भी बेहतर हो चुके हैं। पहले नए शहर से पुराने शहर जाने में प्रयागवासियों को जाम में ऐसा रुकना पड़ता था जैसे शहर की सांस धीमी चलने लगी हो।

अब शहर स्वस्थ खूबसूरत हो गया है लेकिन सड़कें, उड़ान पुल, रेलवे स्टेशन, बस अड्डे और हवाई अड्डे का विकास उस मूल आदर्श विकास की हिन्दू अवधारणा के इर्द गिर्द बसे प्रतीक हैं। असल आदर्श हिन्दू विकास की पहचान गंगा किनारे बसने वाले उत्तर प्रदेश के 76वें जिले महाकुंभ मेला क्षेत्र में होती है। 2024 के कुंभ में संगम से रसूलाबाद घाट तक मेला क्षेत्र बस गया है। 2019 के कुंभ में दारागंज मोहल्ले के किनारे-किनारे से संगम तक पहुंचने वाला प्रयागराज की नदी किनारे की सड़क मुम्बई के मरीन ड्राइव का छोटा स्वरूप बनकर लोगों को लुभा रही थी तो इस बार रसूलाबाद से संगम तक की सड़क तैयार हो रही हैं। देश के किसी और शहर में इतनी लंबी सड़क शायद ही होगी। मुम्बई में या किसी और शहर में जहां समुद्र हैं उसे ही अब प्रयागराज की सड़कों को मुकाबले में रखा जा सकता है।

दुनिया का सबसे बड़ा मेला कुम्भ देखने जब विश्व उमड़ता है तो उसे प्रयागराज एक विश्वस्तरीय आधुनिक शहर के तौर पर दिखता है जो विकास के किसी भी पैमाने पर शीर्ष कतार में खड़ा दिखता है और संगम की रेती पर बने कुम्भ क्षेत्र में हो रहे दिव्य कुम्भ, भव्य कुम्भ में हर ओर हिन्दू धर्म ध्वजा शीर्ष पर पूरी भव्यता के साथ फहरा रही है। यह विशुद्ध रूप से हिन्दू, सनातन को मानने वालों को समागम है। इस समागम से बारंबार पूछे जाने वाले एक प्रश्न का उत्तर किसी को भी आसानी से मिल सकता है कि हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना में दूसरे मतावलम्बियों का क्या स्थान होगा। इस कठिन से लगने वाले प्रश्व का उत्तर भी इसी संगम की रेत पर लगे दिव्य कुम्भ, भव्य कुम्भ में बिना पूछे मिल जा रहा है। संगम की रेती पर लगने वाले माघ मेले और कुम्भ का आधार हिन्दू धर्म को मानने वालों के एक महीने तक घर-परिवार छोड़कर तम्बुओं में रहते, तीन पहर गंगा स्नान करते श्रीचरणों में मोक्ष की परिकल्पना के साथ प्रयागराज के कुम्भ क्षेत्र में कल्पवास करने आते हैं और उसी के इर्द-गिर्द विश्व भर में हिन्दू धर्म की ध्वजा फहराने वाले साधु संत अखाड़े इसी महीने भर के दौरान हिन्दू संस्कार, संस्कृति के उत्थान पर विमर्श के लिए जुटते हैं लेकिन कितने लोगों को पता होगा कि इसी दौरान दुनिया भर से अलग-अलग मत-पंथ के लोग अपना प्रचार करने इस धरती पर जुटते हैं और बाइबल,कुरान से लेकर हर पंथ की सामग्री बांटते मिल जाएंगे।

दिल्ली, मुम्बई में हर सुख सुविधा के साथ जीवन जीते हिन्दुओं को असहिष्णु बताने वाले बुद्धिजीवियों को प्रयागराज के कुम्भ में जरूर आना चाहिए। यहां आकर उन्हें शायद समझ आ सके कि हिन्दू को सेक्युलरिज्म का पाठ पढ़ाने की कोशिश करते कितनी बड़ी गलती उनसे होती है। जानबूझकर गलती करने वालों को तो शायद ही कुछ फर्क पड़ेगा, लेकिन अनजाने में हिन्दू को धर्मान्ध, असहिष्णु बताने वालों को शायद आत्मग्लानि हो जाए। हिन्दू धर्म के इस इतने बड़े मेले में आजतक कभी किसी दूसरे मत का प्रचार करने वालों के साथ कभी, किसी तरह का दुर्व्यवहार नहीं हुआ। इसी कुम्भ को दिव्य, भव्य बनाने के लिए केंद्र की मोदी और योगी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। दुनिया भर से आए लोगों को विकास के साथ भारतीय संस्कृति का अद्भुत दर्शन हो रहा है।

आधुनिक शहरों के बसने और यातायात की व्यवस्था को लेकर भी उत्तर प्रदेश का 76वां कुंभ मेला क्षेत्र आदर्श प्रस्तुत करता है। प्रतिवर्ष लगने वाले माघमेले में प्राचीन काल से जिस तरह से कल्पवासियों और माघ मेला क्षेत्र में आने के लिए शहर बसाया जाता है, उसी तर्ज पर आधुनिक शहरों में चंडीगढ़ और नोएडा के बसाने की बात कही जा सकती है। पूरे मेला क्षेत्र में एक स्थान पर जाने के लिए कई तरफ से चकर्ड प्लेट पर बने रास्तों से पहुंचा जा सकता है। एक स्थान पर पहुंचने के लिए काई रास्ते होते हैं। रास्तों के साथ ही कल्पवासियों, आश्रमों और अखाड़ों के साथ रामलीला, कृष्णलीला, प्रवचन, प्रदर्शनी के लिए चयनित स्थान भी ऐसे होते हैं कि, गांव-देहात से आए, कम पढ़े-लिखे लोगों तक को वहां पहुंचने में कभी कोई परेशानी न हो। फिल्मों में भले कुंभ में बिछड़े भाइयों के बिछड़ने और मिलने को दिखाया जाता है, लेकिन सच यही है कि, कुम्भ में बिछड़ गए लोग थोड़ी ही देर में आसानी से मिल जाते हैं और अपने कल्पवास वाले स्थान पर पहुंचने में उन्हें शायद ही कभी मुश्किल होती हो।

हां, बाहर से आए लोगों को एक-दूसरे से बिछड़ने पर खोजने की आवश्यकता पड़ती है। कमाल की बात यह भी है कि, इस मेले में खो जाने पर सब मिल भी जाते हैं। कल्पवासी अपने पंडा/पुरोहित के ही यहां रहते हैं और इन पंडों/पुरोहितों को खोजने में अधिक उपक्रम नहीं करता। नोएडा, चंडीगढ़ और नये बने शहरों में सेक्टर होते हैं तो इन सभी पंडों के झंडे ही इनका पता होते हैं। पूरा मेला क्षेत्र अन्न क्षेत्र माना जाता है। अन्न क्षेत्र का महत्व ऐसे समझा जा सकता है कि पूरे अन्न क्षेत्र में कोई भूखा नहीं सोता है। वैसे, मेला क्षेत्र में कुंभ मेला 2019 के दौरान सवा लाख करोड़ से अधिक का कारोबार हुआ था। मेला क्षेत्र अब हर तरह के खाने-पीने से लेकर हर तरह के सामान की दुकान होती है, लेकिन अगर आपकी जेब में एक भी पैसा नहीं है तो भी मेला क्षेत्र में आपको न तो रहने की दिक्कत होगी और न ही खाने की। इसीलिए गंगा की रेती पर प्रयागराज में प्रतिवर्ष बसने वाले पूरे मेला क्षेत्र को अन्न क्षेत्र कहा जाता है। हर कुछ दूरी पर सुबह की चाय और जलपान से लेकर खाने में खिचड़ी और पूड़ी सब्जी का भंडारा लगा हुआ आसानी से मिल जाता है।

उत्तर प्रदेश के 76वें जिले प्रयागराज के कुंभ मेला क्षेत्र को आदर्श हिन्दू विकास का प्रतीक मैं इसीलिए कह रहा हूं। नरेंद्र मोदी सरकार कोविड के समय से देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दे रही है लेकिन मेला क्षेत्र में किसी सरकार के भरोसे किसी को भोजन मिलेगा ऐसा नहीं है। हिन्दू समाज ही अपने सबसे बड़े आयोजन में हर किसी की भूख की चिंता करता है। यही वजह है कि, अन्न क्षेत्र में कोई भी भूखा नहीं रहता है।

आदर्श हिन्दू विकास की स्थापना का एक और बड़ा उदाहरण मेला क्षेत्र में मिलता है। मुम्बई के बारे में कहा जाता है कि, मुम्बई शहर कभी सोता नहीं है। दिल्ली, मुम्बई सहित देश के बड़े शहरों में सारी रात चहल पहल रहती है, लेकिन इतनी चहल पहल के बावजूद अपराध के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं, कम होने की कोई राह भी नहीं दिख रही है। पुलिस-प्रशासन आधुनिकतम तकनीक के साथ अपराध रोकने का प्रयास करता रहता है, लेकिन अपराध घटने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। अब आदर्श हिन्दू विकास के प्रतीक शहर मेला क्षेत्र की बात कर लेते हैं। मेला क्षेत्र में भी सारी रात चहल पहल रहती है।

सूर्योदय से पूर्व ही कल्पवासी गंगा/संगम स्नान शुरू कर देते हैं और दिन भर कथा-प्रवचन के बाद सारी रात मेला क्षेत्र में किसी न किसी पंडाल में रामलीला/कृष्णलीला या कोई और कार्यक्रम चलता ही रहता है। देश के दूर-दराज के गांवों से आए परिवार सुबह से लेकर रात तक गंगा की रेत पर बसे इस अस्थाई शहर को जी लेना चाहते हैं लेकिन न्यूनतम ऐसे मामले आते हैं जब कहीं से किसी अपराध के मामले सामने आते हैं। मेला क्षेत्र में पुलिस-प्रशासन का जबरदस्त बंदोबस्त होता है, लेकिन उसकी भूमिका मेले में आई भीड़ी प्रबंधन, सुगम स्नान-ध्यान की व्यवस्था के लिए ही होती है।

आदर्श हिन्दू विकास का एक और प्रमाण मेला क्षेत्र में मिलता है। मेला क्षेत्र में कल्पवास के लिए आने वाला हर कल्पवासी अपने घर-परिवार की पूरी व्यवस्था अपने परिवार की दूसरी पीढ़ी को सौंपकर आता है। अपनी विरासत को दूसरी पीढ़ी को स्थानांतरित करना सामान्य नहीं होता है, लेकिन कल्पवास के लिए पूरे एक महीने अपने घर/खेत/जानवर/संपत्ति/कारोबार से दूर रहने वाले कल्पवासी को उस सबको सलीके से संभालने के लिए सारी व्यवस्था अपने बाद की पीढ़ी को देना ही पड़ता है।

कल्पवास के 12 वर्ष पूर्ण होने पर शय्यादान देकर कल्पवास संपन्न माना जाता है। इन 12 वर्षों में प्रतिवर्ष एक महीने के लिए माघ महीने में प्रयागराज में आकर कल्पवास करने से घर/खेत/जानवर/संपत्ति/कारोबार का मोह स्वत:स्फूर्त तरीके से कम होता जाता है। इसका कोई शोध या अध्ययन नहीं हुआ है, लेकिन मैं पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूं कि, कल्पवास के 12 वर्ष पूर्ण करने वाले परिवार में संपत्ति/विरासत को लेकर किसी तरह का विवाद नहीं होता होगा या ना के बराबर होता होगा।

अब मैं आदर्श हिन्दू विकास के एक ऐसे प्रमाण की बात करने जा रहा हूं, जो इस पूरे आयोजन की नींव में ही है। इस पूरे आयोजन की नींव में मेला दिखता है, लेकिन उसका मूल छिपा है ज्ञान को साझा करने में। प्रयाग में प्रतिवर्ष लगने वाले मेले में मूल रूप से दो तरह से ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। पहला तो स्पष्ट तौर पर दिखता है कि, शंकराचार्य, अखाड़े, साधु-संन्यासी, संत-महात्मा, हिन्दू संस्कृति से जुड़े आचार्य यहां जुटते हैं और धर्म-समाज के सामने आ रही चुनौतियों के समाधान पर विमर्श करते हैं, लेकिन दूसरा स्पष्ट तौर पर नहीं दिखता है। जो नहीं दिखता है, वह पहले से कम महत्वपूर्ण नहीं है। वह है, कल्पवास करने आए लोगों का अपने जीवन-व्यवहार में अर्जित ज्ञान को दूसरे कल्पवासी के साथ साझा करना।

घर-परिवार से लेकर समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली समस्या का समाधान एक महीने के कल्पवास में हर कल्पवासी को किसी दूसरे कल्पवासी के साथ गंगा नहाते, प्रवचन सुनते, रामलीला देखते अवश्य ध्यान में आ जाता है। आवश्यक नहीं है कि, समस्या बताकर ही उसका समाधान पूछा या बताया जाए। बिना समस्या और समाधान बताए ही ज्ञान साझा हो जाता है।

मान्यता है कि, सृष्टि की रचना पूर्ण होने के बाद ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर पहला यज्ञ प्रयाग की भूमि पर ही किया था। भगवान राम अपने भ्राता लक्ष्मण और देवी सीता के साथ महर्षि भारद्वाज के आश्रम में आए थे। विश्व के प्रथम गुरुकुल के तौर पर महर्षि भारद्वाज के आश्रम की प्रतिष्ठा है। ऋषि भारद्वाज के साथ ऋषि दुर्वासा और ऋषि पन्ना की ज्ञानस्थली के तौर पर भी प्रयाग को पहचाना जाता है और यही वजह है कि, आज भी ज्ञान की भूमि के तौर पर प्रयागराज की प्रतिष्ठा है।

प्रतिवर्ष लगने वाला माघमेला और 12 वर्ष पर लगने वाला कुम्भ मेला उसी ज्ञान प्राप्ति, ज्ञान शोधन के प्रति हमें तैयार करता है। इसीलिए मैं कहता हूं कि, प्रयागवासियों को कुंभ में गंगा पूजन करते ज्ञान प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए, यही उनका मूल है, यही उनकी प्रतिष्ठा का आधार है। यही सम्पूर्ण विश्व से माघ महीने में प्रयाग खिंचे चले आने की वजह है और इसीलिए मैं कह रहा हूं कि, उत्तर प्रदेश का 76वां जिला प्रयागराज कुंभ मेला क्षेत्र आदर्श हिन्दू विकास का प्रतीक है।

 

Senior Journalist, Influencer & Media Educator, Editor-HVTV @MediaHarshVT

आगंतुकों: 18687650
आखरी अपडेट: 25th Feb 2025