प्रतिक्रिया | Sunday, November 17, 2024

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पीएम मोदी पहुंचे कारगिल वार मेमोरियल, देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले रणबांकुरों को श्रद्धांजलि दी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज शुक्रवार को लद्दाख पहुंचे। इस दौरान पीएम मोदी ने कारगिल विजय दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में युद्ध में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले देश के रणबांकुरों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने वर्चुअली शिनकुन ला सुरंग परियोजना का पहला विस्फोट भी किया।

बताना चाहेंगे इस परियोजना में 4.1 किलोमीटर लंबी ट्विन-ट्यूब सुरंग शामिल है जिसका निर्माण निमू-पदुम-दारचा रोड पर करीब 15,800 फुट की ऊंचाई पर होगा। इससे लेह को हर मौसम में कनेक्टिविटी मिलेगी। यह विश्व की सर्वाधिक ऊंची सुरंग होगी। यह न सिर्फ सशस्त्र बलों व उपकरणों की शीघ्र आवाजाही सुनिश्चित करेगी बल्कि लद्दाख में आर्थिक-सामाजिक विकास को भी बढ़ावा देगी। 

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लद्दाख दौरे के कार्यक्रम को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने एक्स हैंडल पर जानकारी साझा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री आज सुबह 9:20 पर कारगिल वार मेमोरियल लद्दाख में होंगे।

भारतीय सेना ने 26 जुलाई 1999 को कारगिल विजय प्राप्त की

उल्लेखनीय है कि भारतीय सेना ने कारगिल की लड़ाई में पाकिस्तान के छक्के छुड़ाते हुए 26 जुलाई 1999 को विजय प्राप्त की थी। यह युद्ध करीब दो माह लड़ा गया। प्रारम्भ में इसे पाकिस्तान की घुसपैठ माना गया, लेकिन नियंत्रण रेखा में खोज अभियान के बाद पाकिस्तान की नियोजित रणनीति का खुलासा हुआ। भारतीय सेना को अहसास हुआ कि हमले की योजना बड़े पैमाने पर की गई है। 

कारगिल युद्ध पाकिस्तान के गलत इरादों का सुबूत

इसके बाद भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन विजय’ का आगाज करते हुए सैनिकों को कारगिल क्षेत्र मे भेजा। इस युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों के अटूट दृढ़ संकल्प और अदम्य भावना को प्रदर्शन हुआ। कारगिल युद्ध पाकिस्तान के गलत इरादों का सुबूत है। 

भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाते हुए अपने शौर्य और सामर्थ्य का अहसास पूरी दुनिया को कराया

भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान को सबक सिखाते हुए भारत के शौर्य और सामर्थ्य का अहसास पूरी दुनिया को कराया। वहीं पाकिस्तान के साथ हमदर्दी दिखाने वाली महाशक्तियों को भी दो-टूक लहजे में ऐसा करारा जवाब दिया कि बोलती बंद हो गई। इस युद्ध में भारत ने भी अपने कई वीर योद्धाओं को खोया और उनका सर्वोच्च बलिदान देश के लिए एक मिसाल बन गया।

‘कारगिल युद्ध’ 1999 की लड़ाई

‘कारगिल युद्ध’ 26 जुलाई 1999 की वही लड़ाई थी, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने अपना धोखेबाज चरित्र दिखाते हुए द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर भारत के विरुद्ध साजिश व विश्वासघात से कब्जा करने की कोशिश की थी। उस दौरान भारतीय सेना ने अपनी मातृभूमि में घुस आए घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने को एक बड़ा अभियान चलाया, जिसमें भारतीय सेना के 527 रणबांकुरों ने अपने बलिदान से मातृभूमि को दुश्मनों के नापाक कदमों से मुक्त किया। इनमें से 52 रणबांकुरे हिमाचल के सपूत थे। कैप्टन विक्रम बतरा को अदम्य साहस और पराक्रम के लिए मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

घायल होकर भी लड़ते रहे थे सेना के 1363 जांबाज, ऐसे लिखी अपनी शौर्य गाथा

सेना के 1363 जांबाजों ने घायल होकर भी न केवल लड़ाई लड़ी बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाने में अपना योगदान दिया। कारगिल की यह लड़ाई दुनिया के इतिहास में सबसे ऊंचे क्षेत्र में लड़ी गई लड़ाई थी। बात 1999 की है, जब पाकिस्तानी सेना घुसपैठिया बन भारतीय क्षेत्र में घुसी व कारगिल की ऊंची-ऊंची चोटियों पर कब्जा जमा लिया। यह अपने आप में पूरे विश्व में अनूठा युद्ध था जब एक और घुसपैठिए सैनिक 15 हजार फीट ऊंची पहाड़ियों की चोटी पर कब्जा जमाकर बैठे थे, जिससे वे श्रीनगर-द्रास-कारगिल राष्ट्रीय राजमार्ग पर यातायात व सेना की रसद को आसानी से निशाना बना रहे थे।

वहीं दूसरी ओर आनन-फानन में पहुंची भारतीय सेना नीचे सपाट मैदानों में थी या यूं कहें भारतीय सेना पाकिस्तानी घुसपैठियों के लिए बहुत ही आसान टारगेट थी। भारतीय सेना के पास न तो घुसपैठियों की ताकत व संख्या की सही जानकारी थी, न ही ऐसे अभियानों में प्रयुक्त किए जाने वाली विशेष ड्रैस व दूसरे उपकरण थे। साथ ही इस अभियान में अधिकतर हमले माइनस तापमान वाली रातों में किए जाते थे, लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों में भी भारतीय सेना ने अपनी शौर्य गाथा लिखी। इसी शोर्य गाथा को देश आज याद कर रहा है और ‘कारगिल विजय दिवस’ मना रहा है। 

सर्वोच्च बलिदान करने वाले सैनिकों की स्मृति में स्थापित किया था ‘कारगिल युद्ध स्मारक’ 

इस युद्ध में मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान करने वालों की स्मृति में कारगिल युद्ध स्मारक की स्थापना की गई है। यह द्रास में है। खास बात यह है कि इस स्मारक में पाकिस्तान की सेना के बंकर भी हैं। देश के सबसे ठंडे इलाके में स्थापित इस स्मारक पर जाना किसी के लिए भी शानदार अनुभव हो सकता है। द्रास वह इलाका है, जहां सर्दियों में तापमान-35 डिग्री सेल्सियस हो जाता है और कभी-कभी तो इससे भी कम।

500 से ज्यादा भारतीय सैनिकों को समर्पित है यह स्मारक 

यह स्मारक युद्ध में वीरगति को प्राप्त 500 से ज्यादा भारतीय सैनिकों को समर्पित है। यहां ऊंची पर्वतीय चोटियों की पृष्ठभूमि में मुख्य श्रद्धांजलि स्थल पर हमेशा चलते रहने वाली तेज हवा से ऊंचा लहराता तिरंगा और साथ में 24 घंटे प्रज्ज्वलित रहने वाली अमर ज्योति की लौ शहीद सैनिकों के सम्मान में जीवंत दृश्य सृजित करते हैं। स्मारक के बायीं तरफ करगिल समर में वीरगति को प्राप्त सैनिकों के नाम और अन्य विवरण वाले शिलालेख हैं। स्मारक के विजय पथ के दोनों तरफ उन नायकों की आवक्ष प्रतिमाएं हैं, जिन्होंने दुश्मन सैनिकों को अपनी भूमि से खदेड़ने के लिए पराक्रम दिखाया।

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आखरी अपडेट: 17th Nov 2024