भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने आज बुधवार से तीन दिवसीय बैठक शुरुआत की है जिसमें आर्थिक विकास को बढ़ावा और महंगाई को नियंत्रित करने पर चर्चा होगी। इस बैठक में मुख्य फोकस रेपो रेट पर होगा जो पिछले नौ बैठकों से 6.5% पर बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार भी इसमें बदलाव की संभावना न के बराबर है, क्योंकि आरबीआई का मुख्य लक्ष्य महंगाई को कम करना है।
वित्तीय वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 5.4% की दर से बढ़ी लेकिन महंगाई चिंता का विषय बनी हुई है। अक्टूबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) 6.21% रहा जो आरबीआई के 4.8% के लक्ष्य से काफी ज्यादा है। हालांकि, मार्च 2025 तक खाद्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट की उम्मीद है, लेकिन 4% के स्थिर लक्ष्य तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर महंगाई को काबू में नहीं किया गया, तो यह कई क्षेत्रों में कीमतें बढ़ा सकती है।
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज ने कहा है कि आरबीआई अपने विकास और महंगाई के अनुमान में बदलाव कर सकता है, लेकिन अभी रेपो रेट में कटौती की संभावना नहीं है। आरबीआई वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और मुद्रा विनिमय (फॉरेक्स) के प्रभाव को लेकर सतर्क है, क्योंकि दरों में जल्दबाजी से कटौती करने पर आयातित महंगाई और तरलता प्रबंधन की लागत बढ़ सकती है।
बजाज ब्रोकिंग रिसर्च के मुताबिक आरबीआई ऐसा संतुलन बनाना चाहता है जिससे महंगाई पर काबू पाया जा सके लेकिन आर्थिक विकास भी बाधित न हो। माना जा रहा है कि आरबीआई “न्यूट्रल” नीति अपना सकता है यानी ब्याज दरों में कोई बदलाव की संभावना नहीं है।
यह वित्तवर्ष 2024-25 की पांचवीं MPC बैठक है। पिछली बैठक में आरबीआई ने रेपो रेट 6.5% पर स्थिर रखा था और अपनी नीति को “न्यूट्रल” घोषित किया था। इस बार भी आरबीआई के इसी रुख को जारी रखने की संभावना है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने आज बुधवार से तीन दिवसीय बैठक शुरुआत की है जिसमें आर्थिक विकास को बढ़ावा और महंगाई को नियंत्रित करने पर चर्चा होगी। इस बैठक में मुख्य फोकस रेपो रेट पर होगा जो पिछले नौ बैठकों से 6.5% पर बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार भी इसमें बदलाव की संभावना न के बराबर है, क्योंकि आरबीआई का मुख्य लक्ष्य महंगाई को कम करना है।
वित्तीय वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 5.4% की दर से बढ़ी लेकिन महंगाई चिंता का विषय बनी हुई है। अक्टूबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) 6.21% रहा जो आरबीआई के 4.8% के लक्ष्य से काफी ज्यादा है। हालांकि, मार्च 2025 तक खाद्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट की उम्मीद है, लेकिन 4% के स्थिर लक्ष्य तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर महंगाई को काबू में नहीं किया गया, तो यह कई क्षेत्रों में कीमतें बढ़ा सकती है।
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज ने कहा है कि आरबीआई अपने विकास और महंगाई के अनुमान में बदलाव कर सकता है, लेकिन अभी रेपो रेट में कटौती की संभावना नहीं है। आरबीआई वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और मुद्रा विनिमय (फॉरेक्स) के प्रभाव को लेकर सतर्क है, क्योंकि दरों में जल्दबाजी से कटौती करने पर आयातित महंगाई और तरलता प्रबंधन की लागत बढ़ सकती है।
बजाज ब्रोकिंग रिसर्च के मुताबिक आरबीआई ऐसा संतुलन बनाना चाहता है जिससे महंगाई पर काबू पाया जा सके लेकिन आर्थिक विकास भी बाधित न हो। माना जा रहा है कि आरबीआई “न्यूट्रल” नीति अपना सकता है यानी ब्याज दरों में कोई बदलाव की संभावना नहीं है।
यह वित्तवर्ष 2024-25 की पांचवीं MPC बैठक है। पिछली बैठक में आरबीआई ने रेपो रेट 6.5% पर स्थिर रखा था और अपनी नीति को “न्यूट्रल” घोषित किया था। इस बार भी आरबीआई के इसी रुख को जारी रखने की संभावना है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने आज बुधवार से तीन दिवसीय बैठक शुरुआत की है जिसमें आर्थिक विकास को बढ़ावा और महंगाई को नियंत्रित करने पर चर्चा होगी। इस बैठक में मुख्य फोकस रेपो रेट पर होगा जो पिछले नौ बैठकों से 6.5% पर बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार भी इसमें बदलाव की संभावना न के बराबर है, क्योंकि आरबीआई का मुख्य लक्ष्य महंगाई को कम करना है।
वित्तीय वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 5.4% की दर से बढ़ी लेकिन महंगाई चिंता का विषय बनी हुई है। अक्टूबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) 6.21% रहा जो आरबीआई के 4.8% के लक्ष्य से काफी ज्यादा है। हालांकि, मार्च 2025 तक खाद्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट की उम्मीद है, लेकिन 4% के स्थिर लक्ष्य तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर महंगाई को काबू में नहीं किया गया, तो यह कई क्षेत्रों में कीमतें बढ़ा सकती है।
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज ने कहा है कि आरबीआई अपने विकास और महंगाई के अनुमान में बदलाव कर सकता है, लेकिन अभी रेपो रेट में कटौती की संभावना नहीं है। आरबीआई वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और मुद्रा विनिमय (फॉरेक्स) के प्रभाव को लेकर सतर्क है, क्योंकि दरों में जल्दबाजी से कटौती करने पर आयातित महंगाई और तरलता प्रबंधन की लागत बढ़ सकती है।
बजाज ब्रोकिंग रिसर्च के मुताबिक आरबीआई ऐसा संतुलन बनाना चाहता है जिससे महंगाई पर काबू पाया जा सके लेकिन आर्थिक विकास भी बाधित न हो। माना जा रहा है कि आरबीआई “न्यूट्रल” नीति अपना सकता है यानी ब्याज दरों में कोई बदलाव की संभावना नहीं है।
यह वित्तवर्ष 2024-25 की पांचवीं MPC बैठक है। पिछली बैठक में आरबीआई ने रेपो रेट 6.5% पर स्थिर रखा था और अपनी नीति को “न्यूट्रल” घोषित किया था। इस बार भी आरबीआई के इसी रुख को जारी रखने की संभावना है।