भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कहा कि संस्कृत अलौकिक भाषा है और यह हमारी आध्यात्मिकता की खोज एवं परमात्मा से जुड़ने के प्रयासों में एक पवित्र सेतु के रूप में कार्य करती है।
तिरुपति में राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने संस्कृत को झंझावतों में मानव सभ्यता के लिए एक सांस्कृतिक आधार के रूप में वर्णित किया। उन्होंने कहा, “आज के ऊहापोह भरे दौर में, संस्कृत एक अद्वितीय शांति प्रदान करती है। वह आज के संसार से जुड़ने के लिए हमें बौद्धिकता, आध्यात्मिक शांति, और स्वयं के साथ एक गहरा संबंध बनाने के लिए प्रेरित करती है।”
दीक्षांत समारोह के पूर्व धनखड़ ने पवित्र तिरुमाला मंदिर में दर्शन किये। अपने अनुभव के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “तिरुपति में ही व्यक्ति दिव्यता, आध्यात्मिकता और उदात्तता के सबसे निकट आता है। मंदिर में दर्शन के दौरान मुझे यह अनुभव हुआ। मैंने खुद को धन्य महसूस किया और सभी के लिए आनंद की प्रार्थना की।”
इस अवसर पर राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एन. गोपालस्वामी, आईएएस (सेवानिवृत्त), राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जीएसआर कृष्ण मूर्ति, भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) तिरुपति के निदेशक प्रोफेसर शांतनु भट्टाचार्य, संकाय, विश्वविद्यालय कर्मी और छात्र तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।