भारत ने आतंकियों को पनाह देने व उनको सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराकर आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों को खरी खरी सुनाई है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 4 जुलाई को कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन की (SCO) की बैठक में भारत का प्रतिनिधत्व करते हुए आतंकवाद के मुद्दे पर चीन और पाकिस्तान पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर आतंकवाद पर अंकुश नहीं लगाया गया तो यह क्षेत्रीय एवं वैश्विक शांति के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। इस अवसर पर जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण पढ़ा। इसमें उन्होंने याद दिलाया कि आतंकवाद से लड़ाई एससीओ के मूल उद्देश्यों में से एक है।
आतंकवाद को किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एवं अन्य नेताओं की उपस्थिति में उन्होंने कहा, ‘हममें से कई लोगों को ऐसे अनुभव हुए हैं, जो अक्सर हमारी सीमाओं से परे होते हैं। हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि अगर इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो यह क्षेत्रीय व वैश्विक शांति के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। आतंकवाद को किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता।’
एससीओ को अपनी प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटना चाहिए
एस. जयशंकर ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उन देशों को अलग-थलग व बेनकाब करना चाहिए जो आतंकियों को पनाह देते हैं, उन्हें सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराते हैं और आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं। उनका इशारा स्पष्ट रूप से पाकिस्तान और उसके सदाबहार मित्र चीन की ओर था। उन्होंने आगे कहा, सीमा पार आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई की जरूरत है और आतंकवाद के वित्तपोषण एवं आतंकियों की भर्ती से दृढ़ता से निपटा जाना चाहिए। एससीओ को अपनी प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटना चाहिए। इस संबंध में हम दोहरे मापदंड नहीं अपना सकते।” साथ ही कहा कि पिछले वर्ष भारत की अध्यक्षता के दौरान इस विषय पर जारी संयुक्त बयान नई दिल्ली की साझा प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान आवश्यक
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPES) को लेकर चीन पर निशाना साधते हुए एस जयशंकर ने कहा, आर्थिक विकास के लिए मजबूत कनेक्टिविटी की आवश्यकता होती है। यह हमारे समाजों के बीच सहयोग और विश्वास का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है। कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान आवश्यक है। इसी तरह गैर-भेदभावपूर्ण व्यापारिक अधिकार और पारगमन व्यवस्था भी आवश्यक है। एससीओ को इन पहलुओं पर गंभीरता से विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है।
विदेश मंत्री ने साथ ही यह भी कहा, यह शिखर सम्मेलन महामारी के प्रभाव, जारी संघर्षों, बढ़ते तनाव, विश्वास की कमी और दुनियाभर में हॉटस्पाट की बढ़ती संख्या की पृष्ठभूमि में हो रहा है। इन घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों और वैश्विक आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण दबाव डाला है। इस सम्मेलन का उद्देश्य इन घटनाक्रमों के परिणामों को कम करने के लिए साझा आधार तलाशना है।