प्रतिक्रिया | Friday, November 22, 2024

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शकरकंद में होते हैं कई पोषक तत्व, वैज्ञानिक खेती करके इस तरह कमाएं मुनाफा

 

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां मुख्यता परंपरागत फसलों की खेती प्रचलित रही है। वर्तमान की बदलती जलवायु से उत्पन्न चुनौतियों के दौर में कृषकों का कम लागत में ज्यादा लाभ देने वाली फसलों की ओर रुझान बढ़ा है। ऐसे ही एक लाभकारी फसल शकरकंद (स्वीट पोटैटो) है जिसकी खेती कर किसान कम समय में बढ़िया मुनाफा ले रहे हैं। प्राचीन काल से ही शकरकंद दुनियाभर के लोगों के प्रमुख भोजन का हिस्सा रहा है। यह एक सदाबहार बेल है जिसके फलों के छिलके का रंग अलग-अलग, जैसे की जामुनी, भूरा, सफेद होता है और इसका गुद्दा पीला, संतरी, सफेद और जामुनी होता है।

शकरकंद में होते हैं कई पोषक तत्व

शकरकंद में डायटरी फाइबर, मिनरल्स और विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बीटा- कैरोटीन, विटामिन बी2, सी और ई तथा बीटा-कैरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। शकरकंद के सेवन से कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग, न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग, इत्यादि गंभीर विकारो से बचा जा सकता है। शकरकंद की औषधीय गुणो एवं स्वाद के कारण युवा एवं वृद्ध वर्ग में इसकी लोकप्रियता काफी बढ़ गयी है और एक सुपर फूड की तरह इसका सेवन किया जा रहा है । आज शहरी एवं ग्रामीण बाजारों में शकरकंद एवं इससे निर्मित उत्पाद ( शिशु आहार, आटा, वेफर्स, नमकीन, अल्कोहल, प्राकृतिक रंग, इत्यादि) की साल भर अच्छी मांग बनी रहती है जिससे किसानों को इसकी खेती से बढ़िया लाभ मिल रहा है।

भारत में शकरकंद की खेती

भारत के सभी राज्यों में शकरकंद की खेती की जाती है जिनमे से ओड़ीशा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और केरल अग्रणी है। शकरकंद एक कंद है जिसकी खेती हेतु बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है और इस मिट्टी का pH मान 5.8 से 6.8 के बीच होना चाहिए। पौधों की वृद्धि के लिए 25 से 34 डिग्री तक का तापमान सबसे बेहतर रहता है। इसकी खेती वैसे तो साल भर ली जा सकती है परंतु वर्षा ऋतु में की गयी खेती मे सबसे ज्यादा पैदावार मिलती है। खरीफ मे इसकी बुआई जुलाई से अगस्त और रबी मे अक्टूबर से दिसंबर के बीच की जाती है। शकरकंद के पौधों की रोपाई नर्सरी में तैयार की गई कटिंग के रूप में की जाती है। एक एकड़ खेती के लिए 250 से 340 किलो बेल (28000-32000 संख्या बेल) की जरूरत होती है. इसके लिए बेल की शीर्ष और मध्य भाग की ही कटिंग रोपाई के लिए उपयोग में ली जाती है. इसकी जड़ों की कटिंग के दौरान हरेक कटिंग में 4 से 5 गांठ होनी चाहिए. शकरकंद की तैयार की गई कटिंग को उपचारित करने के लिए मोनोक्रोटोफॉस या सल्फ्यूरिक एसिड की उचित मात्रा के घोल में डुबोकर रखना चाहिए. खेत की मेड़ पर रोपाई के दौरान प्रत्येक कटिंग के बीच लगभग 60 x 20 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। रोपाई करने के 90-110 दिन बाद शकरकंद की फसल तैयार हो जाती है। अच्छी खेती के लिए वैज्ञानिकों द्वारा विकसित उत्तम किस्मों का ही चुनाव करना चाहिए। 

 कुछ प्रसिद्ध किस्मों के बारे में जानते है:

1) भू कृष्णा: यह एक बायो फोर्टिफाइड किस्म है जिसे केंद्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है । इस शकरकंद मे एंथोसायनिन प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है और इसके सेवन से कर्क रोग, मधुमेह, हृदय रोग, न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग जैसी गंभीर विकारों से बचा जा सकता है। इस प्रजाति के फलों का गूदा बैंगनी रंग का होता है यह प्रजाति लावन साहिशु (saline tolerant) है और इसकी उपज 18 प्रति हेक्टेयर तक रहती है।

2) भू सोना: यह भी केंद्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित एक बायो फोर्टिफाइड किस्म है। इस शकरकंद मे बीटा कैरोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिस कारण इसके गूदे का रंग गोल्डन नारंगी रंग होता है। यह शकरकंद शिशु आहार के रूप काफी उपयोग में लिया जाता। इस प्रजाति की औसत पैदावार 19-20 टन प्रति हेक्टेयर तक रहती है ।

3) श्री भद्रा: यह प्रजाति 90-105 दिनों में तैयार हो जाती है और निमेटोड प्रबंधन में ट्रेप क्रॉप की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रजाति में अच्छी मात्रा में केरोटीन पाया जाता है और इसका गुदा सफेद रंग का होता है। इस प्रजाति की औसत उपज 18-19 टन प्रति हेक्टेयर की रहती है।

अगर आप भी शकरकंद की व्यावसायिक खेती या गृह वाटिका में लगने हेतु इच्छुक हैं तो घर बैठे ही ऑनलाइन शॉपिंग के माध्यम से उन्नत किस्मों की बेल राष्ट्रीय बीज निगम (भारत सरकार का उपक्रम) से मंगवा सकते हैं। बीज ऑनलाइन ऑर्डर करने हेतु आप राष्ट्रीय बीज निगम की वेबसाइट www.indiaseeds.com, ओएनडीसी -मायस्टोर के ऐप या नीचे दिए क्यूआर कोड का प्रयोग कर सकते हैं।

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आखरी अपडेट: 22nd Nov 2024