प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से सेकुलर सिविल कोड की जरूरत बताई। पीएम मोदी ने कहा कि वे कानून जो देश को धर्म के नाम पर बांटते हैं, उन्हें दूर किया जाना चाहिए। पीएम मोदी ने कहा कि देश में एक सेकुलर सिविल कोड की जरूरत है और गलत कानूनों के लिए आधुनिक समाज में कोई जगह नहीं है। पीएम मोदी ने कहा कि मौजूदा नागरिक संहिता एक कम्युनल नागरिक संहिता है। अब हमें एक धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की आवश्यकता है।
लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने कहा, ‘एक नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों को पूरा करना भारत के 140 करोड़ लोगों का कर्तव्य है और मैं इस पर बहस चाहता हूं, जो कानून सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण हैं, उनके लिए कोई स्थान नहीं है, हमें एक धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की आवश्यकता है।’
यह उम्मीद तब और बँध गई थी, जब पिछले साल जून 23 को भोपाल की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूसीसी की जरूरत पर चर्चा की थी और कहा था कि जल्द ही एक कानून बनाया जा सकता है। तब पार्टी के साथ-साथ सरकार के शीर्ष पदाधिकारियों ने कहा कि इस कानून के लिए बहुत गहन शोध और व्यापक परामर्श की आवश्यकता होगी।
फिर भी पिछले सत्र में झारखंड से भाजपा के पूर्व लोकसभा सांसद सुनील कुमार सिंह द्वारा पेश एक प्राइवेट बिल के तहत ‘पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए उपयुक्त कानून’ को सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन तब लोकसभा ने इस विधेयक पर विचार करने के लिए उतनी दिलचस्पी नहीं दिखाई थी।
भाजपा-शासित कई राज्य सरकारें- उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और गुजरात पहले ही यूसीसी लाने के प्रयास शुरू कर चुकी हैं, असम में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने को लेकर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने दिसपुर में घोषणा की थी कि गुजरात और उत्तराखंड के नक्शेकदम पर हम भी चलेंगे। सीएम सरमा ने कहा था कि सरकार बाल विवाह और बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक विधेयक लाने की प्रक्रिया में है। हालांकि, उन्होंने आश्वासन दिया था कि असम में आदिवासी समुदाय को यूसीसी से छूट दी जाएगी। सीएम सरमा ने कहा, “हम यूसीसी के उत्तराखंड मॉडल को अपनाएंगे। हम उत्तराखंड बिल का इंतजार कर रहे हैं और एक बार यह आएगा तो हम इसका विश्लेषण करेंगे। लेकिन हमारी जरूरतों के हिसाब से इसमें कुछ बदलाव होंगे।”
यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लेकर काफी ज्यादा सियासत देखने को मिली है। इसी साल मार्च में यूसीसी को बीजेपी शासित उत्तराखंड में लागू भी किया गया। हालांकि बीजेपी का मानना रहा है कि ऐसे कई मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है, जिनमें देशभर के आदिवासी समुदायों में विविध वैवाहिक प्रथाएं, विभिन्न समुदायों में विरासत के कानून और कुछ क्षेत्रीय प्रथाएं शामिल हैं।
पीएम मोदी ने लालकिले से कहा, “हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट ने कई बार यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर चर्चा की है। कोर्ट की तरफ से कई बार इससे संबंधित आदेश दिए गए हैं। देश का एक बड़ा वर्ग मानता है कि सिविल कोड सांप्रदायिक है। लेकिन इस बात में सच्चाई भी है कि जिस सिविल कोड को लेकर हम जी रहे हैं, वो एक प्रकार का कम्युनल सिविल कोड है। ये भेदभाव करने वाला सिविल कोड है। आज हम संविधान के 75 वर्ष जब मनाने जा रहे हैं तो इसकी भावना और देश की सुप्रीम कोर्ट भी हमें यही कहती है।”
साफ तौर पर यूसीसी विभिन्न जातियों और समुदायों के साथ ही समाज के विभिन्न वर्गों से संबंधित एक जटिल मुद्दा है। इसके लिए कहीं अधिक व्यापक परामर्श और अधिक गहन शोध की आवश्यकता होगी। देश के आकार और इसकी विविधता को देखते हुए, उस प्रक्रिया को इतनी जल्दी पूरा करना आसान नहीं होगा।
वैसे संघ परिवार का मानना रहा है कि राज्य अपने दम पर यूसीसी को लागू कर सकता है। यहां इस बात का उल्लेख करना उचित रहेगा कि जनजातियों के बीच, सांस्कृतिक प्रथाएं एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती हैं। उत्तराखंड या हिमाचल के आदिवासियों की प्रथाएं छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की तुलना में बहुत अलग हैं। फिर उत्तर-पूर्व में यह बिल्कुल अलग है। हालांकि, यह अच्छी बात है कि देश में एक बहस शुरू हो गयी है। इससे एक समान नागरिक कानून बनाने के लिए नए विचार सामने आएंगे। हालाँकि महिलाओं के अधिकारों पर सामान्य सहमति हो सकती है।
संघ परिवार की ओर से भी सावधानी बरतने की चेतावनी पहले ही दी जा चुकी है। इस महीने की शुरुआत में, आदिवासियों के बीच काम करने वाले आरएसएस-संबद्ध वनवासी कल्याण आश्रम ने उन सुझावों का स्वागत किया कि आदिवासियों को कानून के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।
हालांकि बीजेपी ने जनजातीय समुदायों से यह भी आग्रह किया कि वे अपनी आपत्तियां और आशंकाएं, यदि कोई हों, विधि आयोग के समक्ष व्यक्त करें और सोशल मीडिया की चर्चा से प्रभावित न हों। सरकार एक सामंजस्यपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है, जो महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों को संबोधित करते हुए सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करता है।
जानकार बताते हैं कि इससे पहले दिवंगत भाजपा नेता और पूर्व सांसद सुशील कुमार मोदी ने पुराने संसदीय पैनल में सुझाव दिया था कि अनुच्छेद 371 और अनुसूचित क्षेत्रों के मद्देनजर पूर्वोत्तर सहित आदिवासियों को यूसीसी से बाहर रखा जाना चाहिए। अगर हम प्रधानमंत्री मोदी के विमर्श को समझें तो यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है कि देश में रहने वाले सभी नागरिकों (हर धर्म, जाति, लिंग के लोग) के लिए एक ही कानून होना। अगर किसी राज्य में सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे तमाम विषयों में हर नागरिकों के लिए एक से कानून होंगे। जो संविधान के चौथे भाग में राज्य के नीति निर्देशक तत्व का विस्तृत ब्यौरा है, जिसके अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है।
प्रधानमंत्री के मुताबिक, “संविधान निर्माताओं का जो सपना था, उसे पूरा करना हमारा दायित्व है। मैं मानता हूं कि इस गंभीर विषय पर चर्चा हो, हर कोई अपने विचारों को लेकर आए। धर्म के आधार पर बांटने वाले कानूनों का समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता है। अब समय की मांग है कि देश में एक सेक्युलर सिविल कोड हो। हमने कम्युनल सिविल कोड में 75 साल बिताए हैं, अब हमें सेक्युलर सिविल कोड की ओर जाना होगा। तब जाकर हमें धर्म के आधार पर होने वाले भेदभाव से मुक्ति मिलेगी।”
राजेश कुमार सिंह, सीनियर जर्नलिस्ट (यह लेखक के निजी विचार हैं, इन विचारों का संस्थान से कोई संबंध नहीं है।)