भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने द्वारका जल में अंतर्जलीय अन्वेषण शुरू किया है। द्वारका और बेट द्वारका के तट पर चल रहे पानी के भीतरी अन्वेषण का उद्देश्य पुरातत्वविदों को प्रशिक्षण देने के अलावा जलमग्न पुरातात्विक अवशेषों की खोज, उनका दस्तावेजीकरण और अध्ययन करना है। इसका उद्देश्य तलछट, पुरातात्विक और समुद्री जमा के वैज्ञानिक विश्लेषण के माध्यम से बरामद वस्तुओं की प्राचीनता का पता लगाना भी है।
संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की विभिन्न शाखाओं और क्षेत्रीय कार्यालयों को, जलमग्न पुरातत्व विंग (यूएडब्ल्यू) समेत, पुरातात्विक अनुसंधान और फील्डवर्क के लिए समर्पित निधि आवंटित की जाती है। यूएडब्ल्यू वित्तीय वर्ष के दौरान आवंटित बजट के माध्यम से फील्डवर्क और अनुसंधान सहित विभिन्न गतिविधियाँ भी करता है। वर्तमान फील्डवर्क के लिए आरंभ में 10 लाख रुपये की राशि आवंटित की गई है। यह जानकारी केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने राज्य सभा में एक लिखित उत्तर में दी।
यूएडब्ल्यू जरूरत और आवश्यकता के अनुसार रिमोट सेंसिंग उपकरणों सहित आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके व्यवस्थित पुरातात्विक अन्वेषण और जांच करता है। चल रहे फील्डवर्क में गोताखोरी, खोज और दस्तावेज़ीकरण के लिए आधुनिक तकनीक का भी उपयोग किया जा रहा है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अपर महानिदेशक (पुरातत्व) प्रो. आलोक त्रिपाठी के नेतृत्व में पांच पुरातत्वविदों के दल ने द्वारका के तट पर अभूतपूर्व अंतर्जलीय अन्वेषण शुरू किया है। पुरातत्वविदों के इस दल में एच.के. नायक, निदेशक (उत्खनन और अन्वेषण), डॉ. अपराजिता शर्मा, सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद्, पूनम विंद और राजकुमारी बारबीना भी शामिल हैं। इस दल ने प्रारंभिक अन्वेषण के लिए गोमती क्रीक के पास एक क्षेत्र का चयन किया है।
दरअसल, एएसआई में यह पहली बार है, जब किसी दल में बड़ी संख्या में महिला पुरातत्वविद शामिल की गई हैं तथा सबसे अधिक संख्या में पुरातत्वविदों द्वारा पानी के अंदर अन्वेषण में सक्रिय रूप से भाग लिया जा रहा है।
आपको बता दें, यह अंतर्जलीय अन्वेषण, एएसआई के नवीनीकृत अन्तर्जलीय पुरातत्व स्कंध (यूएडब्ल्यू) के अंतर्गत किया जा रहा है, जिसे हाल ही में द्वारका और बेट द्वारका (गुजरात) में अपतटीय सर्वेक्षण और छानबीन करने के लिए पुनर्जीवित किया गया है। यूएडब्ल्यू 1980 के दशक से अंतर्जलीय अन्वेषण शोध में सबसे आगे रहा है। 2001 से, यह स्कंध बंगाराम द्वीप (लक्षद्वीप), महाबलीपुरम (तमिलनाडु), द्वारका (गुजरात), लोकतक झील (मणिपुर) और एलीफेंटा द्वीप (महाराष्ट्र) जैसी जगहों पर अन्वेषण कर रहा है।
यूएडब्ल्यू के पुरातत्वविदों ने अन्तर्जलीय सांस्कृतिक विरासत के अध्ययन और संरक्षण के लिए भारतीय नौसेना (आईएन) और अन्य सरकारी संगठनों के साथ भी सहयोग किया है।
इससे पहले अन्तर्जलीय पुरातत्व स्कंध ने 2005 से 2007 तक द्वारका में अपतटीय और तटीय उत्खनन किया था। कम ज्वार के दौरान तटीय क्षेत्रों की छानबीन की गई थी, जहां मूर्तियां और पत्थर के लंगर पाए गए थे। उन खोजों के आधार पर, अन्तर्जलीय उत्खनन किया गया।
वर्तमान अन्तर्जलीय अन्वेषण भारत की समृद्ध अन्तर्जलीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के एएसआई के मिशन के तहत एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा सकता है।