प्रतिक्रिया | Thursday, January 16, 2025

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केंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने रविवार को पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के फुलिया में भारतीय हथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान के नए परिसर का उद्घाटन किया। नया आईआईएचटी परिसर पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और सिक्किम के छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करेगा। नए परिसर का निर्माण अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके 5.38 एकड़ भूमि पर 75.95 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है। आईआईएचटी, फुलिया में प्रथम वर्ष में प्रवेश के लिए सीटों की संख्या मौजूदा 33 से बढ़ाकर 66 की गई। इस उद्घाटन समारोह के दौरान सभी 6 केंद्रीय आईआईएचटी के लिए एकीकृत वेबसाइट का शुभारंभ किया गया। कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री द्वारा “जैक्वार्ड बुनाई के लिए कंप्यूटर-सहायता प्राप्त फीगर्ड ग्राफ डिजाइनिंग” नामक पुस्तक का विमोचन किया गया।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अपने उद्घाटन भाषण में हथकरघा बुनकरों के ‘विकास और प्रगति’ के लिए वस्त्र मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने विश्व स्तरीय अवसंरचना वाले इस संस्थान को पश्चिम बंगाल को समर्पित किया और इस संस्थान में पहले वर्ष के लिए सीटों की संख्या मौजूदा 33 से बढ़ाकर 66 करने की घोषणा की।

हथकरघा बुनकरों के बच्चों को इस संस्थान में अध्ययन करने और पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और सिक्किम के हथकरघा उद्योग की सेवा करने का अवसर मिलेगा। आईआईएचटी फुलिया कच्चे माल के रूप में फ्लैक्स और लिनन का उपयोग करके और कोलकाता स्थित एनआईएफटी से डिजाइन से संबंधित जानकारी का उपयोग करके वस्‍त्र मूल्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण योगदान देगा।

केंद्रीय मंत्री ने पश्चिम बंगाल की हथकरघा बुनाई की विरासत पर भी प्रकाश डाला और कहा कि औद्योगिक क्रांति से पहले मैनचेस्टर में उत्पादित कपड़े की तुलना में हमारे हथकरघा उत्पादों की मांग अधिक थी। बंगाल के हाथ से बुने वस्‍त्रों की बारीकी ऐसी थी कि एक साड़ी को एक छोटी सी अंगूठी के अंदर से गुजारा जा सकता था।

इस अवसर पर उन्होंने बताया कि वस्त्र मंत्रालय वर्ष 2030 तक 300 बिलियन डॉलर के बाजार आकार तक पहुंचने और वस्त्र मूल्य श्रृंखला में 6 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।

गिरिराज सिंह ने कहा कि यह आईआईएचटी भवन सिर्फ एक भवन नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा प्‍लेटफॉर्म है, जहां से हथकरघा बुनकरों के बच्चे अपने सपने पूरे कर सकते हैं। छात्रों को उच्च कौशल प्रदान करके हथकरघा शिल्प को टिकाऊ बनाया जाएगा और इससे हथकरघा क्षेत्र को वैश्विक पहचान मिलेगी। सादगी, परंपरा और प्रौद्योगिकी का संगम ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने की दिशा में एक संयुक्त कदम है।

 

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आखरी अपडेट: 16th Jan 2025