भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि अमेरिका अपनी वैश्विक प्रतिबद्धताओं को लेकर काफी सतर्क हो गया है और उसके संसाधनों पर दबाव है। उन्होंने कहा कि इस परिदृश्य को अमेरिका के वर्तमान प्रशासन के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर भी देखना महत्वपूर्ण है। एस जयशंकर 3 से 7 नवंबर तक ऑस्ट्रेलिया की पांच दिवसीय यात्रा पर हैं।
एस जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया के केनबरा में ‘रायसीना डाउन अंडर’ (Raisina Down Under) कार्यक्रम में कहा कि वैश्विक कार्यस्थल की तैयारी भारत के लिए शीर्ष तीन प्राथमिकताओं में से एक होगी और शिक्षा, गतिशीलता और प्रौद्योगिकी जैसे मुद्दों को देशों द्वारा मिलकर संबोधित करने की आवश्यकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए जयशंकर ने कहा कि कुछ हद तक यह स्वाभाविक है कि लोग उम्मीदवारों, उनके विचारों और प्राथमिकताओं के बारे में अलग-अलग राय रखेंगे।
फैक्ट यह है कि संभवतः ओबामा के बाद से अमेरिका अपनी वैश्विक प्रतिबद्धताओं के प्रति अधिक सतर्क हो गया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प इस संबंध में अधिक स्पष्ट और अर्थपूर्ण हो सकते हैं, लेकिन वास्तविकता तो यह है कि आखिरकार यह राष्ट्रपति बाइडेन ही थे, जिन्होंने अफगानिस्तान से वापसी की थी और यह राष्ट्रपति ओबामा ही थे, जिन्होंने कहा था कि वह भविष्य के किसी भी संघर्ष में अमेरिकी सैनिकों को भेजने के बारे में बहुत सतर्क रहेंगे।
उन्होंने कहा, “वर्तमान प्रशासन की विचारधारा के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर भी देखना महत्वपूर्ण है और यदि कोई राष्ट्रीय स्तर पर देखे तो इसमें कारक हैं, यह संसाधनों का मुद्दा है, अमेरिका में संसाधनों पर दबाव है। हम सभी को निष्कर्ष निकालना है। एस जयशंकर ने कहा कि हमें अपने पसंदीदा परिणाम या अपेक्षा को पेश करने के बजाय उनका विश्लेषण करना चाहिए। एक अन्य प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि दैनिक जीवन में गहन प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों की दुनिया को चलाने के लिए एक निश्चित स्तर के मानव संसाधन की आवश्यकता होगी।
विदेश मंत्री ने कहा कि भारतीय विदेश नीति के लिए, मैं निश्चित रूप से कहूंगा कि ग्लोबल वर्कप्लेस की तैयारी हमारी शीर्ष तीन प्राथमिकताओं में से एक होगी, और वैश्विक कार्यस्थल की तैयारी करना आसान नहीं है, आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि हम नहीं जानते कि वैश्विक कार्यस्थल कैसा दिखने वाला है….यदि आप थोड़ा पीछे जाएं, यदि आप हमारे दैनिक जीवन में गहन प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों की दुनिया को देखते हैं, तो इसे चलाने के लिए एक निश्चित मानव संसाधन की आवश्यकता होगी और दुनिया की वास्तविकता यह है कि मानव संसाधन बहुत असमान हैं इसलिए मुझे नहीं लगता कि इसे वास्तव में इस रूप में देखा जाना चाहिए कि कौन किस देश को क्या निर्यात कर रहा है। हमें संसाधनों को एक तरह से एक सामान्य पूल के रूप में देखना होगा और कहना होगा, ठीक है, हम इन संसाधनों को इष्टतम रूप से कैसे तैयार कर सकते हैं ताकि वे दुनिया के लिए उपलब्ध हों।
उन्होंने कहा कि आप प्रौद्योगिकी-संचालित विश्व चाहते हैं, तो आपके लिए बेहतर होगा कि आप शिक्षा-संचालित विश्व बनाएं, और यदि आप शिक्षा-संचालित विश्व चाहते हैं, तो यह राष्ट्रीय स्तर पर नहीं किया जा सकता। लोग राष्ट्रीय हो सकते हैं, लेकिन कौशल तैयारी इतनी जटिल है कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर नहीं किया जा सकता। जो लोग न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया आ रहे हैं – निकट भविष्य में ऐसा समय आएगा जब वे न्यूजीलैंड या ऑस्ट्रेलिया में नहीं रुकेंगे। इसकी बहुत संभावना है कि वे आएंगे, अपनी डिग्री लेंगे और आगे बढ़ जाएंगे लेकिन हम सिर्फ यह नहीं चाहते कि वे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आएं, बल्कि हम चाहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी भारत आएं।
विदेश मंत्री जयशंकर ने सुझाव दिया कि छात्रों को इस तरह से तैयार किया जाना चाहिए कि उनके पास वैश्विक स्तर पर संसाधन उपलब्ध हों।
उल्लेखनीय है, रायसीना डाउन अंडर के दूसरे संस्करण का आयोजन ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) और ऑस्ट्रेलियन स्ट्रेटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट (ASPI) द्वारा भारत के विदेश मंत्रालय और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मामले एवं व्यापार विभाग के साथ साझेदारी में किया गया है।
(इनपुट-एएनआई)