आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी प्रणालियों पर आधारित रोगों से संबंधित डेटा और शब्दावली को अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के आईसीडी 11 क्लासिफिकेशन में शामिल किया जाएगा। यानी भारतीय पारंपरिक चिकित्सा रोग कोड जिसे मॉर्बिडिटी कोड्स के रूप में जाना जाएगा, विश्व स्वास्थ्य संगठन, आईसीडी 11 टीएम मॉड्यूल 2 लॉन्च किया जाएगा। यह लॉन्च इवेंट आज 10 जनवरी को नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है। इस दौरान डब्ल्यूएचओ के वरिष्ठ अधिकारी और इसके सदस्य देशों के प्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे।
क्या होगा फायदा ?
इस प्रयास से बीमारियों को परिभाषित करने वाली शब्दावली के कोड के रूप में एएसयू (आयुर्वेद, यूनानी और सिद्ध) चिकित्सा में वैश्विक एकरूपता आएगी। डब्ल्यूएचओ ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बीमारियों को क्लासिफिकेशन करने के लिए इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज (आईसीडी) नामक एक क्लासिफिकेशन श्रृंखला विकसित की है।
स्वास्थ्य देखभाल को लेकर कैसे करेगा कार्य ?
वर्तमान में उपलब्ध बीमारियों पर वैश्विक डेटा मुख्य रूप से आधुनिक बायोमेडिसिन के माध्यम से निदान की जाने वाली स्वास्थ्य देखभाल प्रथाओं पर आधारित है। आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी आदि जैसी आयुष प्रणालियों पर आधारित रोगों से संबंधित डेटा और शब्दावली का वर्गीकरण अभी तक डब्ल्यूएचओ आईसीडी श्रृंखला में शामिल नहीं है।
बताना चाहेंगे इस क्रम में डब्ल्यूएचओ जिनेवा में इंटीग्रेटेड हेल्थ सर्विसेज के निदेशक बीते दिन 9 जनवरी को आयुष मंत्रालय के परिसर में उपस्थित थे। आयुष मंत्रालय के सचिव ने सभी वरिष्ठ अधिकारियों और सदस्यों के साथ आयुष मंत्रालय के प्रयासों और आईसीडी 11 में पारंपरिक चिकित्सा को शामिल करने के महत्व पर विचार-विमर्श किया। डब्ल्यूएचओ के ट्रेडिशनल, कॉम्प्लीमेंट्री और इंटीग्रेटेड मेडिसिन के टेक्नीकल ऑफिसर प्रदीप दुआ ने भी चर्चा में भाग लिया।
आयुष मंत्रालय और WHO के बीच डोनर एग्रीमेंट
अच्छी बात यह है कि आयुष मंत्रालय ने पहले ही राष्ट्रीय आयुष रुग्णता और मानकीकृत इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल (नमस्ते) के माध्यम से आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा के लिए कोड विकसित कर लिया है। आयुष मंत्रालय ने डब्ल्यूएचओ के सहयोग से आईसीडी 11 श्रृंखला के टीएम 2 मॉड्यूल के तहत आयुष- आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी प्रणालियों पर आधारित रोगों से संबंधित डेटा और शब्दावली का एक क्लासिफिकेशन तैयार किया है। आयुष मंत्रालय ने इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ एक डोनर एग्रीमेंट पर भी हस्ताक्षर किए हैं।
भविष्य की रणनीतियों के निर्माण में मिलेगी मदद
यह प्रयास भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली, अनुसंधान, आयुष बीमा कवरेज, अनुसंधान और विकास और नीति-निर्माण प्रणालियों को और मजबूत और विस्तारित करेगा। इसके अलावा, इन कोडों का उपयोग समाज में विभिन्न बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए भविष्य की रणनीतियों के निर्माण में भी किया जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के कई अन्य सदस्य देश भी आईसीडी में पारंपरिक चिकित्सा रोगों की शब्दावली को शामिल करने के लिए एक समान प्रारूप लागू करने के इच्छुक हैं।
इस क्लासिफिकेशन में मलेरिया जैसी संक्रामक बीमारियाँ और पुरानी अनिद्रा जैसी जीवनशैली संबंधी बीमारियाँ शामिल हैं। आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी, वर्टिगो गाइडेंस डिसऑर्डर (मूल नाम), जिसे आमतौर पर तीन पारंपरिक प्रणालियों द्वारा मान्यता प्राप्त है, एक नर्वस सिस्टम डिस्ऑर्डर के रूप में जिसे आयुर्वेद में 'भ्रमहा' सिद्ध के रूप में 'अजल किरक्रिप्पु' और यूनानी में 'सद्र-ओ-द्वार' के रूप में जाना जाता है।
प्रचलित रोगों की होगी अंतर्राष्ट्रीय कोडिंग
आईसीडी-11 के तहत, ऐसी शब्दावली की अंतर्राष्ट्रीय कोडिंग होगी और आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा के प्रचलित रोगों के नाम और डेटा को टीएम 2 मॉड्यूल के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोड में अधिसूचित किया जाएगा।