हर साल 20 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मनाया जाने वाला विश्व सामाजिक न्याय दिवस, समाज के भीतर और उनके बीच एकजुटता, सद्भाव और अवसर की समानता को बढ़ावा देते हुए गरीबी, बहिष्कार और बेरोजगारी को दूर करने की कार्रवाई के लिए एक वैश्विक आह्वान के रूप में कार्य करता है। भारत ने 2009 से विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाया है। विश्व सामाजिक न्याय दिवस की भावना के अनुरूप, भारत के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने विधायी सुधारों, जमीनी स्तर पर सशक्तिकरण और वैश्विक साझेदारी के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक अंतर को पाटने के प्रयासों को तेज कर दिया है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) द्वारा 26 नवंबर, 2007 को 62 वें सत्र के दौरान स्थापित, विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2009 में 63वें सत्र के बाद से हर साल 20 फरवरी को मनाया जाता है। यह दिन इस बात पर भी बल देता है कि शांति, सुरक्षा और सभी मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं के सम्मान के बिना सामाजिक न्याय प्राप्त नहीं किया जा सकता है। विश्व सामाजिक न्याय दिवस दिन विकास और मानव सम्मान को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र के व्यापक मिशन के साथ जुड़ा हुआ है ।
भारत में सामाजिक न्याय का विकास
भारत ने 2009 से विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाया है। भारत में सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण का विकास ऐतिहासिक संघर्षों, संवैधानिक आदेशों और नीतिगत विकासों से प्रभावित एक क्रमिक लेकिन प्रगतिशील प्रक्रिया रही है। सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण की भावना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और संविधान द्वारा सभी नागरिकों, विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए समानता, सम्मान और न्याय सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण में गहराई से निहित है।
भारत का संविधान विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण के लिए एक मजबूत आधार तैयार करता है जिसका उद्देश्य सामाजिक असमानताओं को समाप्त करना और वंचित समूहों के कल्याण को बढ़ावा देना है।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर प्रमुख संवैधानिक प्रावधान
प्रस्तावना– प्रस्तावना सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करती है, स्थिति और अवसर की समानता की गारंटी देती है, और व्यक्तिगत गरिमा और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए भाईचारे को बढ़ावा देती है । यह भेदभाव से मुक्त न्यायपूर्ण और समावेशी समाज की नींव रखती है ।
मौलिक अधिकार (भाग III)– अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और जबरन मजदूरी पर रोक लगाता है , जिससे ऐसी प्रथाएँ कानून द्वारा दंडनीय हो जाती हैं। अनुच्छेद 24 खतरनाक व्यवसायों में बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाता है , जिससे बच्चों के सुरक्षा और शिक्षा के अधिकारों की रक्षा होती है। ये अधिकार कमजोर समूहों को शोषण से बचाते हैं।
राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (भाग IV)-अनुच्छेद 37 में कहा गया है कि डीपीएसपी, हालांकि कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं, लेकिन शासन के लिए आवश्यक हैं। अनुच्छेद 38 राज्य को सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने का निर्देश देता है। अनुच्छेद 39 समान आजीविका, उचित मजदूरी और शोषण से सुरक्षा सुनिश्चित करता है । अनुच्छेद 39ए वंचितों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता की गारंटी देता है । अनुच्छेद 46 भेदभाव को रोकने के लिए एससी, एसटी और कमजोर वर्गों के लिए विशेष शैक्षिक और आर्थिक प्रोत्साहन को अनिवार्य बनाता है ।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय
आपको बता दें कि 1985-86 में कल्याण मंत्रालय को महिला एवं बाल विकास विभाग और कल्याण विभाग में विभाजित कर दिया गया, जिसमें गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के विभाग शामिल कर लिए गए। बाद में मई 1998 में इसका नाम बदलकर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय कर दिया गया।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय एक समावेशी समाज के निर्माण की कल्पना करता है
दरअसल सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय एक समावेशी समाज के निर्माण की कल्पना करता है, जहाँ हाशिए पर पड़े समूह अपने विकास और वृद्धि के लिए पर्याप्त समर्थन के साथ सार्थक, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जी सकें। यह शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक विकास कार्यक्रमों के साथ-साथ जहाँ आवश्यक हो, पुनर्वास पहलों के माध्यम से इन समूहों को सशक्त बनाने का प्रयास करता है।
शैक्षिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों का उत्थान
विभाग का कार्य अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, वरिष्ठ नागरिक, शराब और मादक द्रव्यों के सेवन के शिकार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत), भीख मांगने वाले व्यक्ति, विमुक्त और खानाबदोश जनजातियाँ (डीएनटी), आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (ईबीसी) और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) सहित सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान पर केंद्रित है । लक्षित नीतियों और हस्तक्षेपों के माध्यम से, इसका उद्देश्य समाज में समानता और समावेश को बढ़ावा देना है।
कल्याणकारी योजनाओं का पूर्ण कवरेज सुनिश्चित करने के लिए मंत्रालय को 13,611 करोड़ रुपये आवंटित किए गए
वहीं, केंद्रीय बजट 2025-26 इस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसमें कल्याणकारी योजनाओं का पूर्ण कवरेज सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को 13,611 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो 2024-25 से 6 प्रतिशत अधिक है।
सामाजिक न्याय के लिए भारत सरकार की प्रमुख पहल
प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना-पीएम-एजेएवाई 2021-22 में शुरू की गई यह योजना अनुसूचित जाति बहुल गांवों में कौशल विकास, आय सृजन और बुनियादी ढांचे के माध्यम से एससी समुदायों के उत्थान के लिए तीन योजनाओं को जोड़ती है। इसके तीन घटक हैं- आदर्श ग्राम विकास, सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं के लिए अनुदान सहायता और उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रावास निर्माण। 1 जनवरी, 2024 से अब तक 5,051 गांवों को आदर्श ग्राम घोषित किया जा चुका है, 3,05,842 लोगों को लाभ पहुँचाने वाली 1,655 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है और 38 छात्रावासों के लिए 26.31 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं ।
लक्षित क्षेत्रों में उच्च विद्यालयों के छात्रों के लिए आवासीय शिक्षा योजना-एसआरईएसएचटीए योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में अनुदान प्राप्त संस्थानों और उच्च गुणवत्ता वाले आवासीय विद्यालयों को सहायता प्रदान करके सेवा अंतराल को पाटना है । यह कक्षा 9 और 11 में अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए शीर्ष सीबीएसई/राज्य बोर्ड से संबद्ध निजी स्कूलों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिससे कक्षा 12 तक शिक्षा सुनिश्चित होती है । इसके अतिरिक्त, यह गैर सरकारी संगठनों/स्वयंसेवी संगठनों को पर्याप्त बुनियादी ढांचे और मजबूत शैक्षणिक मानकों के साथ आवासीय और गैर-आवासीय स्कूल और छात्रावास चलाने के लिए निधि प्रदान करता है, जिससे अनुसूचित जाति समुदायों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान को बढ़ावा मिलता है ।
पर्पल फेस्ट का आयोजन-सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) द्वारा 2023 से पर्पल फेस्ट (समावेश का त्योहार) का आयोजन किया जा रहा है। साल 2024 में, इस कार्यक्रम में 10,000 से अधिक दिव्यांगजन और उनके अनुरक्षकों का स्वागत किया गया, जिससे एकजुटता और आपसी सम्मान की भावना को बढ़ावा मिला।
पर्पल फेस्ट एक अधिक समतापूर्ण समाज की दिशा में एक आंदोलन है, जो सभी के लिए पहुंच, सम्मान और समान अवसर के मूल्यों की वकालत करता है।
आजीविका और उद्यम के लिए हाशिए पर पड़े व्यक्तियों के लिए सहायता-वहीं दूसरी ओर आजीविका और उद्यम के लिए हाशिए पर पड़े व्यक्तियों के लिए सहायता (एसएमआईएलई) योजना एक व्यापक पहल है जिसका उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और भीख मांगने में लगे लोगों का पुनर्वास करना है। इसका प्राथमिक उद्देश्य भिखारियों को मुख्यधारा के समाज में फिर से शामिल करके ‘भिक्षा वृत्ति मुक्त भारत’ बनाना है। यह योजना क्षेत्र-विशिष्ट सर्वेक्षण, जागरूकता अभियान, लामबंदी और बचाव कार्यों, आश्रय गृहों और बुनियादी सेवाओं तक पहुँच, कौशल प्रशिक्षण, वैकल्पिक आजीविका के विकल्प और स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के गठन पर केंद्रित है।
वर्तमान में, यह 81 शहरों और कस्बों में सक्रिय है, जिसमें प्रमुख तीर्थ, ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल शामिल हैं, अगले चरण में इसे 50 और शहरों में विस्तारित करने की योजना है। वहीं, 15 नवंबर, 2024 तक भीख मांगने में लगे 7,660 व्यक्तियों की पहचान की गई है, जिनमें से 970 का सफलतापूर्वक पुनर्वास किया जा चुका है।
पीएम-दक्ष योजना-हाशिए पर पड़े समुदायों के कौशल स्तर को बढ़ाती है
7 अगस्त, 2021 को शुरू की गई पीएम -दक्ष योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग, डीएनटी और सफाई कर्मचारियों सहित हाशिए पर पड़े समुदायों के कौशल स्तर को बढ़ाना है, ताकि उन्हें मुफ्त कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सके । 450.25 करोड़ रुपये (2021-26) के बजट वाली यह योजना कम से कम 70% प्लेसमेंट सुनिश्चित करते हुए वेतन और स्वरोजगार की सुविधा के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रशिक्षण प्रदान करती है।
नशा मुक्त भारत अभियान
15 अगस्त 2020 को शुरू किए गए नशा मुक्त भारत अभियान (एनएमबीए) का उद्देश्य राष्ट्रीय सर्वेक्षण और एनसीबी इनपुट के माध्यम से पहचाने गए 272 उच्च जोखिम वाले जिलों को लक्षित करके भारत को नशा मुक्त बनाना है। अपनी स्थापना के बाद से, एनएमबीए 3.85 लाख शैक्षणिक संस्थानों की भागीदारी के साथ 4.42 करोड़ युवाओं और 2.71 करोड़ महिलाओं सहित 13.57 करोड़ लोगों तक पहुँच चुका है।
दरअसल दुनिया आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही है, ऐसे में सामाजिक न्याय का विश्व दिवस समानता और समावेशन के प्रति प्रतिबद्धताओं को नवीनीकृत करता है, हमें याद दिलाता है कि कहीं भी हुआ अन्याय पूरी मानवता को प्रभावित करता है। हालाँकि प्रगति हुई है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। गौरतलब हो भारत ने विधायी सुधारों, जमीनी स्तर के कार्यक्रमों और लक्षित कल्याणकारी पहलों के माध्यम से इस दृष्टिकोण को अपनाया है।