बीते एक दशक में भारत ने जो विकास यात्रा तय की है उसमें आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ सांस्कृतिक चेतना का पुनर्जागरण भी समाहित है। हाईवे से लेकर हेरिटेज तक, हवाई अड्डों से लेकर आस्था-पथ तक, भारत ने एक ऐसा विकास मॉडल रचा है जिसमें आर्थिक समृद्धि और सांस्कृतिक अस्मिता एक-दूसरे के पूरक बन गए हैं। अयोध्या में राम मंदिर का पुनर्निर्माण हो या केदारनाथ व हेमकुंड जैसे तीर्थों तक पहुंच को सुगम बनाती रोपवे परियोजनाएं, अमेरिका-ब्रिटेन से वापस लौटते सैकड़ों पुरावशेष हों या यूनेस्को द्वारा भारत की विरासत को दी गई वैश्विक मान्यता ये हर पहलू न केवल राष्ट्र की आत्मा को छूते हैं बल्कि विकास के बड़े कैनवास पर भावनात्मक रंग भी भरते हैं।
नए भारत की दोहरी विकास यात्रा
नए भारत की दोहरी विकास यात्रा में जहां परंपरा का संरक्षण, आस्था-पर्यटन की सुलभता है तो समावेशी अर्थव्यवस्था के लिए एक साझा मंच भी है। यह विकास यात्रा देश को एक बार फिर उसकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ते हुए भविष्य की ओर अग्रसर कर रही है। काशी, अयोध्या और मथुरा जैसे शहरों में हर रोज उमड़ने वाली लाखों देशी-विदेशी श्रद्धालुओं की भीड़ इस बात की गवाह है कि भारत की ये दो तरफा विकास यात्रा आज न सिर्फ देश बल्कि दुनिया के लिए चर्चा का विषय बन गई है। जहां परंपरा संरक्षण, आस्था-पर्यटन और आधुनिक अर्थव्यवस्था एक दूसरे के पूरक बनते दिखाई दे रहे हैं।
‘प्राण प्रतिष्ठा’ ने टूरिज्म इकोनॉमी में फूंकी जान
22 जनवरी 2024 को रामलला की ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ ने अयोध्या को वैश्विक आध्यात्मिक मानचित्र पर दोबारा उकेरा है। अयोध्या में सिर्फ आरथा ही नहीं, 1.7 किगी का नई सरयू रिवर फ्रंट, छह लेन की लखनउ अयोध्या सड़क चौड़ीकरण और महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट परियोजना भी साथ-साथ तेजी से आगे बढ़ रही है। इसके अलावा सरकार के मास्टर प्लान और प्राइवेट प्लेयर की भागीदारी से लगभग 100-125 फाइव और सेवन स्टार होटल प्रोजेक्ट पाइपलाइन में हैं। अनुमान है कि निकट भविष्य में 8,500 से 12,500 होटेल कमरों की यहां रोजाना मांग रहेगी। कोरोना महामारी से पूर्व (2019) लगभग 2 करोड़ श्रद्धालु यहां पहुंचे तो 2023 में यह संख्या 5-6 करोड़ हो गई। वर्ष 2024 के पहले छह महीनों में ही सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए, लगभग 11 करोड़ यात्री अयोध्या धाम पहुंचे। ई-ट्रैवल एजेंसियों के अनुसार OTAS पर बुकिंग में 60-70% की वृद्धि हुई है, होटल रेट्स में 60% तक उछाल देखा गया।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से चमका ‘ब्रांड बनारस’
जब दिसंबर 2021 में काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण हुआ तब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि यह परियोजना एक पूरी सांस्कृतिक क्रांति की आधारशिला बन जाएगी। मात्र तीन वर्षों में 2021 से 2024 के अंत तक श्रद्धालुओं की संख्या 69 लाख से बढ़कर अभूतपूर्व 11 करोड़ तक पहुंच गई। यह न सिर्फ आध्यात्म की पुनःस्थापना है बल्कि बनारस की अर्थव्यवस्था में भी नया प्राण फूंकने वाली यात्रा है। काशी नगरी में पर्यटन पर आधारित आय में 65 प्रतिशत की उछाल दर्ज की गई, जिससे स्थानीय व्यवसाय, होटल उद्योग, हस्तशिल्प और परिवहन को जबरदस्त गति मिली।
घाटों की रमणीयता, रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर का सांस्कृतिक वैभव और गंगा रिवर पर शुरू हुआ Ro-Ro जल परिवहन, इन सभी ने मिलकर ‘ब्रांड बनारस’ को न केवल राष्ट्रीय बल्कि वैश्विक पहचान दी है। इस पुनरुत्थान ने काशी को पुनः धर्म, दर्शन और पर्यटन की राजधानी बना दिया है।
चारधाम की यात्रा भी हुई आसान
मार्च 2025 में 2,730 करोड़ रुपए की 12.4 किमी लंबी हेमकुंड साहिब रोपवे और 12.9 किमी केदारनाथ रोपवे को मंजूरी मिली। इस रोपवे के जरिए बुजुर्ग-दिव्यांग मुश्किल ट्रेक को महज 36 मिनट में तय कर सकेंगे, साथ ही घाटी-ऑफ फ्लॉवर्स व चारधाम की अर्थव्यवस्था को नया विस्तार मिलेगा।
सांस्कृतिक कूटनीति का नया अध्याय
2014 से पहले जहां कुल 13 कलाकृतियां ही वापस आ सकीं वहीं 2014-25 के बीच अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन आदि से 640 से अधिक मूर्तियां-प्रतिमाएं लौटाई गईं। सिर्फ 2024-25 में ही 297 अमूल्य पुरावशेष भारत पहुंचे, यह सांस्कृतिक कूटनीति का नया अध्याय है।
तीर्थ स्थलों का नियोजित कायाकल्प
2014-15 में शुरू हुई केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी ‘PRASHAD’ योजना ने भारत के तीर्थ-पर्यटन को एक नई दिशा दी। मथुरा-वृंदावन से लेकर पुरी तक, श्रीरंगम के भव्य मंदिर प्रांगण से लेकर खजुराहो की विश्वप्रसिद्ध कलात्मक संरचनाओं तक देश के 45 से अधिक पवित्र स्थलों को बीते एक दशक में नए कलेवर में संवारा गया है। ओडिशा के आदिवासी बहुल मयूरभंज जिले के खिचिंग जैसे अपेक्षाकृत अज्ञात स्थल भी इस परिवर्तनकारी योजना के अंतर्गत आधुनिक बुनियादी ढांचे और स्वच्छता सुविधाओं से सुसज्जित किए गए हैं। ‘स्प्रिचुअल इंफ्रास्ट्रक्चर’ के इस नवोदय में परंपरा और आधुनिकता का संतुलन है।
सांस्कृतिक पर्यटन की ग्लोबल ब्रांडिंग को मजबूती
धोलावीरा (गुजरात) को 2021 में और शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल) को 2023 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया वहीं ‘सेक्रेड एन्सेम्बल्स ऑफ होयसला’ को 2023 में मान्यता मिली। इससे भारत के विश्व धरोहर स्थलों की संख्या 42 पहुंच गई, जो सांस्कृतिक पर्यटन की वैश्विक ब्रांडिंग को मजबूत करती है।
टूरिज्म-बूस्टर से रोजगार के अवसर
उत्तर प्रदेश ही नहीं चारधाम यात्रा, काशी, अयोध्या, अमृतसर-करतारपुर और दक्षिण के होयसला मंदिरों में रिकॉर्ड तोड़ भीड़ से होटल, हस्तशिल्प, परिवहन, गाइड सेवाओं में 30-65% तक आय-वृद्धि दर्ज हुई। एक्सप्रेस-वे, वंदे भारत ट्रेनें और डिजिटल ‘ई-दर्शन’ ऐप्स ने इस अवसर को ग्लोबल मार्केट में बदल दिया है। अकेले बनारस के लिए ही कुल 7 वंदे भारत ट्रेनें हैं, इनमें अच्छी खासी संख्या में हर रोज विदेशी पर्यटक सफर कर रहे हैं।
विरासत और विकास का समन्वय
विरासत के साथ विकास का सिद्धांत आज केवल आदर्श नहीं बल्कि भारत के नवयुग का नीति-सिद्धांत बन चुका है। जहां एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर की आरती राष्ट्र की चेतना को जागृत करती है तो दूसरी ओर केदारनाथ और हेमकुंड जैसे तीथों तक रोपवे आधुनिक भारत की गति और दृष्टि का प्रतीक बनती हैं। निश्चित तौर पर राष्ट्र आज अपने अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य का वास्तु गढ़ रहा है। ये अपने आप में बड़ा बदलाव है जब आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और प्राचीन परंपरा विरोधाभासी नहीं बल्कि सहयोग के प्रतीक बन चुके हैं।
-(वरिष्ठ पत्रकार अमित शर्मा की राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, राजनीतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक मुद्दों पर गहरी पकड़ है।)