प्रतिक्रिया | Sunday, June 15, 2025

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India Pakistan Conflict : दुनिया के लिए बड़ा खतरा पाकिस्तानी न्यूक्लियर हथियार, इस्राइल और भारत की चिंताएं समान

पहलगाम आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कर दिया था कि आतंकी आका चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहे उन्हें मिट्टी में मिला दिया जाएगा। 140 करोड़ भारतवासियों के जनादेश और प्रधानमंत्री के दृढ़ संकल्प के चलते भारतीय मिसाइलों ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर अग्निवर्षा की। जिस तरह से भारतीय फौज ने मुंहतोड़ पलटवार किया उससे साफ हो गया कि एक बड़ा संदेश अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी में गया। इस संघर्ष के दौरान मध्यस्थता, कई तरह की दखल और छिपी हुई बातें सामने आयी, जिससे साफ हो गया कि कई मुल्क नई दिल्ली और इस्लामाबाद की सीधी भिड़ंत नहीं चाहते। दोनों ही देश परमाणु शक्ति संपन्न है, ऐसे में ये हथियारबंद संघर्ष न्यूक्लियर दहलीज तक नहीं पहुंचा। भले ही अमेरिकी दखल ने युद्ध विराम की नींव रखने में मदद की, लेकिन इससे ये साफ हो गया कि कभी भी दोनों देशों के बीच खुली जंग के समीकरण पनप सकते है। वहीं नई दिल्ली के हुक्मरानों ने ये साफ कर दिया है कि वो अपना बचाव करेगें, किसी भी तरह के आंतकी हमले का पलटवार करने में वो जरा भी देर नहीं लगायेगें।

नहीं चलेगी पाकिस्तान की गीदड़ भभकी

भारतीय सेना की कार्रवाई से पाकिस्तान की कमर टूटने लगी तो सामरिक नाज़ुकता का संकट बढ़ने लगा। इस्लामाबाद ने पश्चिमी और उत्तरी सीमा पर उकसावे की कार्रवाई के बीच नेशनल कमांड अथॉरिटी की बैठक का आह्वान किया। भले ही ये कदम सांकेतिक था, लेकिन इसके मायने काफी गहरे थे। बता दे कि नेशनल कमांड अथॉरिटी पाकिस्तानी न्यूक्लियर हथियारों और परमाणु मिसाइलों को कंट्रोल करने वाली संस्था है, इसके चेयरमैन पाकिस्तानी वजीर-ए-आजम होते है। इस मीटिंग को नई दिल्ली के लिए धमकी और दबाव के तौर पर देखा जा रहा था। खास ये भी है कि इस कथित बैठक की टाइमिंग उस वक्त की है, जब अमेरिकी सदर दोनों मुल्कों को शांत रहने की नसीहत दे रहे थे। कुल मिलाकर इस बैठक के बुलाए जाने को असल जंगी चेतावनी के तौर पर देखा गया। इसके बाद वाशिंगटन ने दखल देते हुए ना सिर्फ सीजफायर करवाने की पहल की बल्कि कथित पाकिस्तानी परमाणु मनमानी को भी टाला। इस मसले पर बयान देते हुए पीएम मोदी ने साफ किया कि नई दिल्ली पाकिस्तान की न्यूक्लियर गीदड़ भभकी को नहीं सहेगा। आतंकियों की पनाहगाह को सटीक और सधे हुए हमलों का सामना करना ही पड़ेगा।

सीमित है इस्लामाबाद की परमाणु क्षमताएं

तकनीकी रूप से देखा जाए तो भारतीय सेना के पास जमीन, हवा और पानी से परमाणु हथियार लॉन्च करने की जंगी कुव्वत है, जबकि पाकिस्तान के न्यूक्लियर वॉर हैड्स सिर्फ उनकी मिसाइलों पर लगाए जा सकते है, जो कि ज्यादातर सतह से सतह पर मार करने वाली है। पाकिस्तानी JF-17 जंगी जहाज भी परमाणु हथियार दागने की काबिलियत रखता है। सीधे शब्दों में कहे तो नई दिल्ली के पास इस्लामाबाद के मुकाबले न्यूक्लियर हथियार ले जाने वाले जंगी जहाजों की तादाद कहीं ज्यादा है। न्यूक्लियर हथियारों को केंद्र में रखते हुए समुद्र में भी भारतीय नौसेना का दबदबा पाकिस्तान से काफी ज्यादा है। इस ताकत से पार पाना रावलपिंडी में बैठे जनरलों के बस की बात नहीं है। मुफलिस्सी और बेगारी से जूझ रहे पाकिस्तान के पास इतना फंड ही नहीं है कि वो भारत के सामने परमाणु ताकत से चलने वाली पनडुब्बी खड़ी कर सके। भारतीय नौसेना ने परमाणु ताकत हासिल करके अपनी क्षमताओं को कई गुना बढ़ा लिया है। न्यूक्लियर नौसैन्य क्षमताओं में दक्षिण एशिया और ग्लोबल साउथ में सिर्फ बीजिंग ही भारत से आगे है।

विश्वसनीय है भारत की परमाणु नीति

पाकिस्तान में जब न्यूक्लियर हथियार वजूद में आये, तब से लेकर आज तक कभी भी इस्लामाबाद ने अपनी अधिकारिक परमाणु नीति का खुलासा नहीं किया। यहीं वजह है कि तेल अवीव उससे हमेशा इस मामले में खार खाया बैठा है। इसके ठीक उलट जब पोखरण में बुद्ध मुस्कुराये तब से ही इस मसले पर भारत की नीति साफ रही है कि वो किसी भी सूरत में पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा। यही वजह रही कि देश में चाहे यूपीए की सरकार रही हो या एनडीए की, हमारी परमाणु नीति की वैश्विक विश्वसनीयता, वैधता और मान्यता बनी रही। इससे इतर पड़ोसी मुल्क की फौज में इस्लामी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने में वाले जनरल परवेज मुशर्रफ ने एक मर्तबा साफ किया था कि पाकिस्तानी हथियारों का निशाना हिंदुस्तान है। इसका इस्तेमाल तब किया जायेगा जब इस्लामाबाद के वजूद को खतरा होगा।

इन हालातों में पाकिस्तान चला सकता है परमाणु हथियार

कई बार कई मौकों पर पाकिस्तान ने भारत को खुलेआम और दबे छिपे परमाणु हमले की धमकी दी। इस बात की तस्दीक खुद अमेरिका (CIA) भी करता आया है। साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान जब पाकिस्तान बैकफुट पर जाने लगा तो एनसीए से मशविरा करके वो अपने परमाणु जखीरे को नई दिल्ली के खिलाफ तैयार करने लगा। उस दौरान वाजपेयी के सीधे निर्देश थे कि भारतीय सेना और वायुसेना एलओसी पार नहीं करेगी, इसलिए पाकिस्तान की ओर से न्यूक्लियर धमकी के कोई मायने नहीं रह गए थे। पुलवामा हमले के बाद भी अंदरखाने कमोबेश यही खबर सामने आयी थी। फिलहाल दोनों देशों के रिश्ते बेहद नाज़ुक दौर से गुजर रहे है। इस्लामाबाद के पास खोने और दांव पर लगाने के लिए कुछ भी नहीं है, ऐसे में वो किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। हालांकि भारतीय वायुसेना के पास पूरा ब्लूप्रिंट है कि किस तरह से सरगोधा के किराना हिल्स को निशाना बनाना है। पड़ोसी मुल्क की ओर से परमाणु खतरा इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि पाकिस्तान जानता है कि अगर नई दिल्ली की ओर से जमीनी और हवाई कार्रवाई हुई तो उनका न्यूक्लियर जखीरा तबाह हो जायेगा। इस संभावित स्थिति से पहले ही वो इसे दागना चाहेगा। यही वजह है कि दोनों ओर की त्यौरियां इस मामले पर चढ़ी रहती है। कुल मिलाकर भारत की ओर से बड़ी सैन्य (पूर्ण युद्ध) कार्रवाई होने पर ही ये जोखिम बनेगा।

साफ है पड़ोसी मुल्क की न्यूक्लियर मंशा

दुनिया हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले की गवाह है। ऐसे में नई दिल्ली या इस्लामाबाद में से कोई भी पहले न्यूक्लियर हथियार इस्तेमाल करता है तो उसे भारी नुकसान और वैश्विक बायकाट का सामना करना पड़ेगा। आगामी खतरों का भांपते हुए माना जा रहा है कि दोनों ही मुल्क अपने परमाणु जखीरे में इजाफा करेगें। जिस तरह से पाकिस्तान की बोरॉन खपत, यूरेनियम संवर्धन और प्लूटोनियम रिएक्टरों की कार्य क्षमता बढ़ी है, उससे उसकी मंशा आने वाले दिनों को लेकर काफी साफ हो जाती है। भले ही वो परमाणु हमले की पहल ना करे लेकिन न्यूक्लियर ब्लैकमेलिंग के मामले में वो आगे ही रहना चाहता है। दूसरी ओर भारत के पास करीब 700 किलोग्राम प्लूटोनियम है, इसकी मदद से 200 से कुछ ज्यादा न्यूक्लियर हथियार बनाए जा सकते है। अगर सीमा पर सामरिक हालात बिगड़ते है तो भारत वेपन ग्रेड प्लूटोनियम का भंडारण बढ़ा सकता है।

तेल अवीव भी पाकिस्तानी परमाणु हथियारों के खिलाफ

फिलहाल दोनों ओर की परमाणु निवारक क्षमताएं बनी हुई है। ऑप्रेशन सिंदूर के दौरान दोनों ही देशों ने पारंपरिक हथियारों और हमले के पैटर्न का इस्तेमाल किया। बावजूद इसके पाकिस्तान के पास परमाणु हथियारों की मौजूदगी पूरी दुनिया के लिए भारी खतरे का सबब है। इस बात से कोई भी मुंह नहीं मोड़ सकता। भले ही पड़ोसी मुल्क की सत्ता शहबाज शरीफ के हाथों से फिसलकर किसी ज्यादा काबिल हाथ में चली जाए, भले ही असीम मुनीर से ज्यादा संजीदा-समझदार जनरल वहां आ जाए लेकिन ये खतरा बदस्तूर बना रहेगा। इसका आकलन इस्राइल काफी पहले से लगाए बैठा है। पड़ोसी मुल्क में बैठे इस्लामी कट्टरपंथियों और न्यूक्लियर हथियारों का मॉकटेल उपमहाद्वीप समेत पूरी दुनिया के लिए भारी दुश्वारी का सबब है। यहीं वजह है कि तेल अवीव मानता है कि दुनिया भर में पाकिस्तानी हथियारों के “मेल्टडाउन” की संभावना सबसे ज्यादा है। साथ ही उसे लगता है कि सरगोधा के किराना हिल्स से निकले हथियार मध्यपूर्व में उसके खिलाफ भी इस्तेमाल होगें। इस्राइल की ये चिंता 1970 के दशक में पहली बार सामने आयी थी, इसी मुद्दे पर 1979 के तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री मेनकेम बेगिन ने समकक्ष ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट हिल्डा थैचर को खत भी लिखा था। ठीक अगले ही साल आईडीएफ ने पाकिस्तानी न्यूक्लियर ठिकानों ने बमबारी की योजना बनायी लेकिन जरूरी मदद ना मिल पाने के चलते उसकी ये कोशिशें परवान ना चढ़ सकी। मौजूदा हालातों में भले ही हिंदुस्तान के कई इलाके पाकिस्तानी मिसाइलों की जद में है, लेकिन इस्राइल इससे काफी बाहर है। पड़ोसी मुल्क की सबसे लंबी दूरी की मिसाइल शाहीन-2 भी इस्राइल तक नहीं पहुंच सकती। न्यूक्लियर हथियारों को लेकर तेल अवीव की ये चिंता वाजिब भी है, क्योंकि हाल में ही पाकिस्तान में हिजबुल्लाह और हमास के कई आतंकियों की मौजूदगी से जुड़ी खबरें सामने आयी थी। पाकिस्तानी न्यूक्लियर जखीरे को लेकर नई दिल्ली और तेल अवीव की आंशकाएं एक समान है, दोनों को पता है कि इस मामले में मामूली सा दिखने वाला जोखिम भी खतरनाक हो सकता है। इसलिए दोनों ही हाईटैक सर्विलांस सिस्टम के साथ समान रूप से सतर्क, सजग और मुस्तैद है।

– (लेखक राम अजोर वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक हैं।)

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आखरी अपडेट: 15th Jun 2025