उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि भारत तेजी से औपनिवेशिक मानसिकता को त्याग रहा है, हम अब पूर्व में प्रचलित औपनिवेशिक विचारों और प्रतीकों को चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय लोक प्रशासन में औपनिवेशिक मानसिकता से अलग भारतीय विशेषताएं होनी चाहिए, जो स्वतंत्रता के बाद की हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप हों।
औपनिवेशिक विचारों और प्रतीकों को त्यागने की जरूरत
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने नई दिल्ली में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) की आम सभा की 70वीं वार्षिक बैठक में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि हम अब पहले के देवता माने जाने वाले औपनिवेशिक विचारों और प्रतीकों को चुनौती दे रहे हैं। किंग्स वे अब कर्तव्य पथ बन गया है और रेसकोर्स रोड लोक कल्याण मार्ग बन गया है। नेताजी अब उस छतरी के नीचे खड़े हैं, जहां कभी किंग जॉर्ज की मूर्ति हुआ करती थी। भारतीय नौसेना के ध्वज को बदलकर हमारा तिरंगा शामिल कर दिया गया। औपनिवेशिक काल की 1500 प्रतिमाएं अब कानून की किताब में नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली को औपनिवेशिक विरासत से मुक्त कर दिया है।
भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर ध्यान देने की आवशयकता
सरकारी अधिकारियों के बीच भावनात्मक बुद्धिमत्ता और सॉफ्ट स्किल्स के महत्व पर प्रकाश डालते हुए धनखड़ ने कहा कि अपने प्रशिक्षुओं की भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर अधिक ध्यान दें। सरकारी अधिकारियों के बीच सॉफ्ट स्किल्स, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और सांस्कृतिक क्षमता विकसित करना महत्वपूर्ण है ताकि अधिकारी हाशिए पर पड़े और वंचित लोगों के संघर्षों को समझ सके, ऐसी नीतियों को डिजाइन और लागू कर सकें, जो वास्तव में उन चुनौतियों का समाधान करें।
प्रौद्योगिकी अपनाने पर दिया जोर
लोक प्रशासन में प्रौद्योगिकी अपनाने के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रम और शोध पहलों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉकचेन और डेटा एनालिटिक्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, साथ ही सार्वजनिक सेवा वितरण में उनके नैतिक और जिम्मेदार कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना चाहिए। प्रभावी लोक प्रशासन की आधारशिला निरंतर सीखना और क्षमता निर्माण है।
कल्याणकारी नीतियों के प्रभाव को समझें
कल्याणकारी उपायों के प्रभाव का आकलन करने के लिए डेटा आधारित और साक्ष्य आधारित अध्ययनों की आवश्यकता पर बल देते हुए धनखड़ ने कहा कि जैसे-जैसे हम शासन के एक नए युग में आगे बढ़ रहे हैं, डेटा को हमारी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सबसे आगे होना चाहिए। विभिन्न कल्याणकारी नीतियों के प्रभाव को समझने के लिए साक्ष्य आधारित अध्ययन आवश्यक हैं। अनुभवजन्य साक्ष्य पर आधारित आकलन न केवल हमारे संस्थानों की विश्वसनीयता बढ़ाएगी बल्कि शासन में जनता का विश्वास भी बनेगा। इस अवसर पर आईआईपीए के महानिदेशक सुरेंद्र नाथ त्रिपाठी, उपराष्ट्रपति के सचिव सुनील कुमार गुप्ता और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।