मध्य प्रदेश का महाराजा यशवंतराव अस्पताल यानी एमवायएच इंदौर देश का पहला सरकारी अस्पताल बन गया है, जहां ब्लड कैंसर से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए उन्नत सीएआर-टी थेरेपी शुरू की गई है। यह सुविधा राज्य के स्वास्थ्य ढांचे को सशक्त बनाने और उच्च-स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह जानकारी बुधवार देर शाम एमवाय अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अशोक यादव ने दी।
आधुनिकतम चिकित्सा तकनीक और सेवाओं से प्रदेश बनेगा अग्रणी चिकित्सा हब
इस उपलब्धी पर उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा है कि मध्य प्रदेश सरकार राज्य में उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ कराने के लिए सतत प्रयासरत है। इम्यूनोथेरैपी जैसी उन्नत तकनीक का एमवाय अस्पताल में शुभारंभ इस दिशा में एक मील का पत्थर है। यह पहल उन मरीजों के लिए नई उम्मीद लेकर आई है, जिनके इलाज में पारंपरिक पद्धतियां कारगर नहीं रही हैं। यह कदम चिकित्सा के क्षेत्र में न केवल इंदौर बल्कि पूरे प्रदेश की पहचान को एक नई दिशा देगा। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के नेतृत्व में राज्य सरकार का यह प्रयास है कि स्वास्थ्य सेवाओं को आधुनिकतम चिकित्सकीय तकनीकों और सेवाओं से युक्त कर मध्य प्रदेश को देश का प्रमुख चिकित्सा हब बनाया जाये।
सीएआर-टी कोशिकाएं ट्यूमर कोशिकाओं को प्रभावी ढंग से करती हैं समाप्त
एमवाय अस्पताल के अधीक्षक डॉ अशोक यादव ने बताया कि काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (सीएआर) नामक तकनीक बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद भी लाभ नहीं मिलने वाले मरीजों के लिए कारगर साबित हो सकती है। सीएआर-टी थेरेपी की प्रक्रिया के लिए पहले मरीज का रक्त सैंपल ले लिया गया है। इसके तहत बी-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL) से पीड़ित मरीज की श्वेत रक्त कोशिकाओं को एफरेसिस मशीन द्वारा एकत्रित किया जाता है। इसके बाद, इन कोशिकाओं को आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाएगा ताकि ये विशेष काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (सीएआर) ला सकें, जो कैंसर कोशिकाओं की पहचान कर उन्हें नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। संशोधित सीएआर-टी कोशिकाओं को मरीज में प्रत्यारोपित करने के बाद, ये ट्यूमर कोशिकाओं को प्रभावी ढंग से समाप्त करती हैं। एमवायएच में इस सुविधा की शुरुआत के साथ ही देश में शासकीय स्तर पर यह सुविधा उपलब्ध कराने वाला एमवायएच पहला अस्पताल बन गया है। यहां पर इम्यूनोथेरैपी का खर्च लगभग 30 लाख रुपये है, जो कि अमेरिका में इसी तकनीक के लिए लगने वाले लगभग 4 करोड़ रुपये की तुलना में बेहद कम है।
इस अत्याधुनिक चिकित्सा प्रक्रिया को संयुक्त रूप से आईआईटी मुंबई और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल द्वारा विकसित किया गया है। भारत में यह तकनीक नई है। अभी तक इसके तहत लगभग 150 मरीजों का इलाज हुआ है। इंदौर के इस अस्पताल में 20 नवंबर को इस प्रक्रिया के माध्यम से पहले मरीज का इलाज किया जाएगा। इसके पहले, कैंसर से जूझ रहे मरीजों के लिए इंदौर में कीमोथेरैपी, रेडिएशन थेरैपी, सर्जरी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट जैसी सुविधाएं उपलब्ध थीं। अब इम्यूनोथेरैपी के जुड़ जाने से इन मरीजों के लिए उपचार के विकल्प और विस्तृत हो गए हैं।
इम्यूनोथेरैपी (सीएआर टी सेल) कैसे करती है कार्य
इस तकनीक में मुख्यतः टी कोशिकाओं को आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है, जिससे ये कैंसर कोशिकाओं को पहचानकर नष्ट कर सकें। सामान्यतः श्वेत रक्त कोशिकाओं के दो प्रकार होते हैं: बी और टी कोशिकाएं। इम्यूनोथेरैपी में टी कोशिकाओं को श्वेत रक्त कोशिकाओं से अलग करके, आनुवंशिक संशोधन किया जाता है। इसके लिए वायरल वैक्टर की मदद ली जाती है ताकि टी-कोशिकाएं अपनी सतह पर काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (सीएआर) स्थापित कर सकें। इन रिसेप्टर्स की विशेषता होती है कि वे कैंसर कोशिकाओं की सतह पर उपस्थित विशेष प्रोटीन को पहचान सकते हैं और उन पर हमला कर सकते हैं। थेरैपी के बाद मरीज को एक से दो सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है ताकि उसकी स्थिति पर पूरी तरह से निगरानी रखी जा सके। (इनपुट-हिंदुस्थान समाचार)