प्रतिक्रिया | Monday, March 31, 2025

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सहकारिता अब सिर्फ एक विचार नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत का माध्यम बन रही है। त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय इसी दिशा में एक सराहनीय कदम है, जो सहकारिता को शिक्षा और कौशल से जोड़कर एक नए युग की शुरुआत करेगा।

उद्देश्य

इसी क्रम में लोकसभा ने बुधवार को त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक, 2025 को ध्वनिमत से पारित किया। इस विधेयक का उद्देश्य ग्रामीण प्रबंधन संस्थान आणंद (आईआरएमए) को त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करना और इसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित करना है। विश्वविद्यालय का नाम सहकारी आंदोलन के नेता और अमूल डेयरी के संस्थापक त्रिभुवनदास किशिभाई पटेल के नाम पर रखा जाएगा।

सहकारी क्षेत्र में तकनीकी और प्रबंधन से जुड़ी शिक्षा पर केंद्रित होगा यह विश्वविद्यालय

गुजरात के आणंद में स्थापित होने वाला ‘त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय’ सहकारी क्षेत्र में तकनीकी और प्रबंधन से जुड़ी शिक्षा पर केंद्रित होगा। इसका उद्देश्य सहकारी क्षेत्र में शोध और विकास, वैश्विक उत्कृष्टता और सहकारी आंदोलन को मजबूती प्रदान करना है। यह सरकार के ‘सहकार से समृद्धि’ के विजन का हिस्सा है।

सहकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जो देश के हर परिवार को छूता है

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक, 2025 पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि सहकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जो देश के हर परिवार को छूता है। हर गांव में कोई न कोई इकाई ऐसी है जो सहकारिता के माध्यम से कृषि विकास, ग्रामीण विकास और स्वरोजगार से जुड़ी है और देश की प्रगति में योगदान दे रही है। 

इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था होगी सशक्त 

इस विधेयक के पारित होने के बाद इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था सशक्त होगी, स्वरोजगार और छोटी उद्यमिता का विकास होगा, सामाजिक समावेशन भी बढ़ेगा और नवाचार और अनुसंधान में नए मानक स्थापित करने के अवसर मिलेंगे।

उन्होंने कहा कि इस सहकारी विश्वविद्यालय का विचार आने के बाद जब इसके नामकरण का प्रश्न आया तो इसका नाम त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय रखने का निर्णय लिया गया। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि त्रिभुवनदास किशिभाई पटेल ने अमूल की नींव डालने का काम किया। त्रिभुवनदास, सरदार पटेल जैसे महान नेता के सानिध्य में रहकर भारत के अंदर सहकारिता की नींव डालने वाले व्यक्तियों में से एक हैं।

आने वाली है ओला-ऊबर जैसी एक बहुत बड़ी कोऑपरेटिव सहकार टैक्सी 

अमित शाह ने कहा कि सहकार से समृद्धि- ये सिर्फ एक नारा नहीं है, जमीन पर उतारने के लिए साढ़े तीन साल में सहकारिता मंत्रालय ने दिन-रात एक किया। आने वाले कुछ ही महीनों में कोऑपरेटिव बेसिस पर ओला-ऊबर जैसी एक बहुत बड़ी कोऑपरेटिव सहकार टैक्सी आने वाली है और इसका मुनाफा धन्ना सेठों के हाथ में नहीं, ड्राइवर के पास जाएगा।

राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड को एक राष्ट्रीय कोऑपरेटिव संस्था बनाया 

सहकारिता मंत्रालय के कार्यों का उल्लेख करते हुए शाह ने कहा कि हमने राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड को एक राष्ट्रीय कोऑपरेटिव संस्था बनाया है। इनके माध्यम से देश के किसानों का उत्पाद विदेशों में निर्यात करने का काम चल रहा है। अब तक 12 लाख टन सामग्री दुनियाभर के बाजारों में बेचकर इसका मुनाफा सीधा किसानों के पास हमने पहुंचाया है।

उन्होंने कहा कि सहकारी चीनी मिलों की बात करें तो कई सालों से बड़े-बड़े कोऑपरेटिव लीडर्स कृषि मंत्री रहे, लेकिन सहकारी चीनी मिलों को इनकम टैक्स का जो प्रॉब्लम था वो कभी समाप्त नहीं होता था। सहकारिता मंत्रालय बनने के बाद 2022 में, 2016 से चलता हुआ एक असेसमेंट के प्रॉब्लम को मोदी सरकार ने हमेशा के लिए समाप्त कर दिया।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का जिक्र करते हुए अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार के कार्यों का परिणाम है कि आज दिल्ली में भी कमल खिल गया और यहां भी आयुष्मान भारत योजना आ गई। आज देश के हर गरीब को इलाज के लिए 5 लाख तक के खर्च की चिंता नहीं करनी है। अब सिर्फ पश्चिम बंगाल बचा है, चुनाव के बाद यहां भी कमल खिलेगा और यहां पर भी आयुष्मान भारत योजना आएगी।

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आखरी अपडेट: 30th Mar 2025