प्रतिक्रिया | Sunday, July 06, 2025

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‘चरैवेति-चरैवेति’ के मंत्र पर चलने वाले देश के स्वभाव में कभी ठहरना तो रहा ही नहीं। दिल्ली सल्तनत, मुगल आक्रांताओं से लेकर ब्रिटिश बर्बरता की जंजीरों को तोड़कर भारत हमेशा उठ खड़ा हुआ। हालांकि हर दौर में हमारे अपने लोगों ने ही उसी थाली में छेद करने की कोशिश की जिसमें वे खात हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है। लेकिन इस देश ने एक बार फिर साबित कर दिया कि गौरी का साथ देने वाले जयचंद नहीं, दुश्मन की छाती पर चढ़कर न्याय करने वाले महाराणा प्रताप ही हमारे आदर्श हैं। बावजूद इसके देश के गौरव का सबूत मांगने वालों की कुंठा बार-बार निकल कर सामने आ रही है लेकिन इससे इतर सात समंदर पार भारत की लगातार विजय गाथा गाई जा रही है।

देश बड़ा या ‘कुंठा’?

देश ऑपरेशन सिंदूर के बाद और अधिक ऊर्जा से आगे बढ़ रहा है। हर रोज नई मिसाल कायम हो रही है। ग्लोबल ट्रेड मैप पर झंडा बुलंद हो रहा है, दुनिया के आर्थिक मानचित्र पर ध्रुव तारे की तरह चमक रहा है तो एक्सपोर्ट इंडेक्स में छलांग लगा दुनिया को ‘मेक इन इंडिया’ का दम दिखा रहा है। दुनिया के वे देश जो कल तक खुद को ‘सुपर पॉवर’ घोषित करने से नहीं थकते थे आज भारत के कद को सिर ऊपर उठाकर देखने को मजबूर हैं। हैरानी की बात यह है एक तरफ आतंक के चेहरे को बेनकाब करने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को विदेश में भी गंभीरता से सुना जा रहा है तो वहीं देश के कुछ राजनेताओं की कुंठा इन तमाम कोशिशों पर पलीता लगाने की नाकाम कोशिश कर रही है।

अमेरिकी भी हुए मुरीद

ऐसे में देश की सेना के और इसके गौरवशाली इतिहास पर सवाल उठाने वालों के लिए सात समंदर पार से भी एक संदेश आया है, उस पर जरूर गौर करना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर की धमक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अमेरिका की प्रतिष्ठित रक्षा क्षेत्र की एक वेबसाइट ने भारत की सैन्य कार्रवाई से सीखने की नसीहत दी है। अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवाद को दिए गए करारे जवाब के मुरीद हो गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जो लोग शशि थरूर के वक्तव्य पर छाती पीट रहे हैं वो कहां-कहां जाकर अब झूठ की बीन बजाएंगे। माना कि देश के लोगों को चुप करा भी लो तो विदेशी धरती पर जो भारत की विजय गाथा गाई जा रही है उसको कैसे झुठला पाएंगे।

‘मेक इन इंडिया’ का डंका

अमेरिकी वेबसाइट Small Wars Journal (SWJ) पर छपी दो पत्रकारों जॉन स्पेंसर और विंसेंट विओला की रिपोर्ट में ऑपरेशन सिंदूर को ‘भविष्य का मॉडल’ बताया गया है। इतना नहीं अंतरराष्ट्रीय रक्षा विशेषज्ञों ने भारत से सीख लेने व अमेरिका को सुधार की नसीहत दी है। रिपोर्ट में 2014 में शुरू हुए ‘मेक इन इंडिया’ की नजीर पेश करते हुए लिखा गया है कि कैसे भारत ने बीते एक दशक में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में काम शुरू किया। एक दशक बाद, इसका परिणाम ऑपरेशन सिंदूर में दिखा। रिपोर्ट में ऑपरेशन सिंदूर के जरिए सीमा पार बैठे आतंकवादियों को मिट्टी में मिलाने की सटीक योजना और भारतीय सेनाओं की फुर्ती की तारीफ की गई है। इसे एक रणनीतिक मोड़ बताया गया है।

‘आकाश’ और ‘ब्रह्मोस’ की गूंज दुनिया भर में

आकाश, ब्रह्मोस और स्काई स्ट्राइकर ड्रोन का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में लिखा गया है कि भारत ने किसी बैसाखी का सहारा लिए बिना पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए। भारत का उदाहरण देते हुए युद्ध में आत्मनिर्भरता का असली मतलब समझाया गया है। रिपोर्ट में लिखा गया है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जो तकनीकी रणनीति अपनाई, वह आने वाले युद्धों का खाका हो सकता है। बिना विदेशी उपकरणों पर निर्भर हुए, भारत ने स्वदेशी सिस्टम से AI-आधारित रक्षा प्रणाली, ड्रोन स्क्वाड्रन और सुपरसोनिक मिसाइलों का ऐसा ताना-बाना बुना कि दुश्मन कुछ समझ ही नहीं पाया।’

चीन की भी सिट्टी-पिट्टी गुम

दुनिया आपरेशन सिंदूर को न सिर्फ पाकिस्तान में पल रहे आतंकवाद पर करारी चोट मान रही है बल्कि चीन के लिए भी भारत के कड़े संदेश के तौर पर देख रही है। इसी रिपोर्ट में लिखा गया है, ‘महत्वपूर्ण बात यह है कि ऑपरेशन सिंदूर ने अपने रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी को एक स्पष्ट संदेश दिया। पाकिस्तान जो कि हथियार और मत के मामले में चीन का प्रॉक्सी स्टेट है वह पूरी तरह से पराजित हो गया। चाइनीज एयर डिफेंस सिस्टम भारत के सटीक हमलों को रोक नहीं सकता, उनका पता ही नहीं लगा सका। ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने सिर्फ़ जीत हासिल नहीं की बल्कि इसने चीन समर्थित विरोधी के खिलाफ़ ज़बरदस्त सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया।’ हैरत की बात ये है कि इस सबके बावजूद देश के अंदर बैठे कुछ लोग दुश्मन के सुर में सुर मिलाते नजर आ रहे हैं।

दुश्मन के घावों पर ‘मरहम’ क्यों?

सवाल ये उठता है कि ऑपरेशन सिंदूर की सफलता पर सवाल उठाना अपने ही देश की इच्छाशक्ति-जीवटता और पराक्रम पर सवाल खड़े जैसा नहीं? जहां एक तरफ दुश्मन देश खुद रो-रोकर अपना हाल बयां कर रहा है कि आतंक की फसल काटते-काटते आज उसका क्या हाल हो गया है। वहीं, जाने-अनजाने में की जा रही बयानबाजी कहीं उसके जख्मों पर मरहम का काम तो नहीं कर रही?

(लेखक के पास मीडिया जगत में लगभग डेढ़ दशक का अनुभव है, वे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में काम कर चुके हैं)

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आखरी अपडेट: 6th Jul 2025