राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, सांकला फाउंडेशन, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस के सहयोग से नई दिल्ली में चार दिवसीय प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। इस कला प्रदर्शनी “साइलेंट कन्वर्सेशन: फ्रॉम मार्जिन्स टू द सेंटर” के दूसरे संस्करण का उद्घाटन केंद्रीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने किया। प्रदर्शनी का उद्देश्य आदिवासी समुदायों के संरक्षण के सिद्धांतों को पहचानना और इन समुदायों और पर्यावरण के बीच सह अस्तित्व संबंधों को उजागर करना है। यह प्रदर्शनी आदिवासी कलाकारों को बाहरी समाज के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करती है। इस अवसर पर, “हिडन ट्रेजर्स: इंडियाज हेरिटेज इन टाइगर रिजर्व्स” नामक पुस्तक और “बिग कैट्स” नामक पत्रिका का भी विमोचन किया गया।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने आज (शुक्रवार) एक प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि एस. जयशंकर ने 17 अक्टूबर को कला प्रदर्शनी “साइलेंट कन्वर्सेशन: फ्रॉम मार्जिन्स टू द सेंटर” के दूसरे संस्करण का उद्घाटन किया। विदेश मंत्री जयशंकर ने प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए इस बात पर जोर दिया कि भारत की विकास यात्रा पर्यावरण संरक्षण से गहराई से जुड़ी हुई है। उन्होंने विभिन्न पहलों के माध्यम से अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए कहा कि अंत्योदय योजना का मूल उद्देश्य हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान से है और यह सुनिश्चित करती है कि विकास यात्रा में कोई भी समुदाय पीछे न छूटे।
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में 2022 में किए गए संशोधनों का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को विकास आवश्यकताओं के साथ संतुलित करना है। उन्होंने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की सफलता का श्रेय आदिवासी समुदायों और वनवासियों को दिया, जिनकी संरक्षकता ने जंगलों को पनपने में मदद की है क्योंकि ये समुदाय सक्रिय रूप से अवैध शिकार का मुकाबला करते हैं।
एस जयशंकर ने जनभागीदारी की अवधारणा का जिक्र करते हुए इस बात पर जोर दिया कि जब सभी नागरिक नीतियों को अपनाते हैं तभी वे सबसे प्रभावी होती है। इस दौरान केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने एक वीडियो संदेश में इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता क्षति से निपटने में सह-अस्तित्व महत्वपूर्ण है।
आपको बता दें कि प्रदर्शनी में देश भर के 22 बाघ अभयारण्यों से संबद्ध 200 से अधिक पेंटिंग और 100 कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं। इसमें गोंड, वारली, पाटा चित्रा, भील और सोहराई जैसे आदिवासी कला रूपों को प्रदर्शित किया गया है और बिक्री के लिए उपलब्ध कराया गया है, जिससे होने वाली आय सीधे आदिवासी कारीगरों को लाभान्वित करेगी। सभी कलाकृतियां बेहतर सामग्रियों का उपयोग करके तैयार की गई हैं, जो स्वदेशी समुदायों की पर्यावरण-अनुकूल जीवन शैली को दर्शाती हैं।
इस प्रदर्शनी में भाग लेने वाले 49 कलाकारों में से 10 मध्य प्रदेश के बाघ अभयारण्यों से हैं, जबकि अन्य महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, झारखंड और मिजोरम से हैं।