नीति आयोग ने सोमवार को “मध्यम उद्यमों के लिए नीति की रूपरेखा तैयार करने” पर रिपोर्ट जारी की है। जिसके अनुसार एमएसएमई सेक्टर भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 29 प्रतिशत का योगदान देता है और 60 प्रतिशत से अधिक कार्यबल को रोजगार देता है। वहीं, मध्यम उद्यम, यद्यपि एमएसएमई का केवल 0.3 प्रतिशत हैं, एमएसएमई निर्यात में 40 प्रतिशत का योगदान देते हैं, जो प्रचुर अप्रयुक्त क्षमता प्रदर्शित करता है।
यह रिपोर्ट नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी, नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. सारस्वत और नीति आयोग के सदस्य डॉ. अरविंद विरमानी की उपस्थिति में जारी की गई।
इस रिपोर्ट में मध्यम उद्यमों को भारत की अर्थव्यवस्था के भविष्य के विकास इंजन में बदलने के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। रिपोर्ट सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र,एमएसएमई सेक्टर, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 29 प्रतिशत का योगदान देता है, निर्यात में 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है और 60 प्रतिशत से अधिक कार्यबल को रोजगार देता है, उसकी संरचनात्मक विषमता पर गहन चर्चा करती है। अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, इस क्षेत्र की संरचना असंगत रूप से विषम है: पंजीकृत एमएसएमई में से 97 प्रतिशत सूक्ष्म उद्यम हैं, 2.7 प्रतिशत लघु उद्यम हैं और केवल 0.3 प्रतिशत मध्यम उद्यम हैं।
तथापि, हालांकि, मध्यम उद्यमों का यह 0.3 प्रतिशत एमएसएमई निर्यात में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान देता है, जो परिणाम योग्य, नवोन्मेषण आधारित इकाइयों के रूप में उनकी अप्रयुक्त क्षमता को रेखांकित करता है। रिपोर्ट में मध्यम उद्यमों की पहचान विकसित भारत@2047 के तहत आत्मनिर्भरता और वैश्विक औद्योगिक प्रतिस्पर्धा की दिशा में भारत के रूपांतरण में रणनीतिक कारकों के रूप में की गई है।
इसके अलावा रिपोेर्ट में मध्यम उद्यमों के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित किया गया है, जिसमें अनुकूलित वित्तीय उत्पादों तक सीमित पहुंच, उन्नत तकनीकों को सीमित रूप से अपनाना, अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास सहायता, क्षेत्रीय परीक्षण बुनियादी ढांचे की कमी और प्रशिक्षण कार्यक्रमों और उद्यम की आवश्यकताओं के बीच विषमता शामिल हैं। ये सीमाएं उनके परिमाण और नवोन्मेषण की क्षमता में बाधा डालती हैं।
इन मुद्दों पर ध्यान देने के लिए रिपोर्ट में 6 प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में लक्षित युक्तियों के साथ एक व्यापक नीति ढांचे की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है, जो इस प्रकार है।
अनुकूलित वित्तीय समाधान
उद्यम टर्नओवर से जुड़ी कार्यशील पूंजी वित्तपोषण योजना की शुरुआत; बाजार दरों पर 5 करोड़ रुपये की क्रेडिट कार्ड सुविधा; और एमएसएमई मंत्रालय की देखरेख में खुदरा बैंकों के माध्यम से त्वरित निधि संवितरण तंत्र।
प्रौद्योगिकी एकीकरण और उद्योग 4.0
उद्योग 4.0 समाधानों के अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिए विद्यमान प्रौद्योगिकी केंद्रों को क्षेत्र-विशिष्ट और क्षेत्रीय रूप से अनुकूलित भारत एसएमई 4.0 सक्षमता केंद्रों में उन्नत करना।
अनुसंधान एवं विकास संवर्धन तंत्र
एमएसएमई मंत्रालय के भीतर एक समर्पित अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ की स्थापना, राष्ट्रीय महत्व की क्लस्टर आधारित परियोजनाओं के लिए आत्मनिर्भर भारत कोष का लाभ उठाना।
क्लस्टर-आधारित परीक्षण अवसंरचना
अनुपालन को सुगम बनाने और उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सेक्टर-केंद्रित परीक्षण और प्रमाणन सुविधाओं का विकास।
कस्टम कौशल विकास
क्षेत्र और सेक्टर के अनुसार उद्यम-विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ कौशल कार्यक्रमों का संयोजन और विद्यमान उद्यमिता तथा कौशल विकास कार्यक्रमों (ईएसडीपी) में मध्यम उद्यम-केंद्रित मॉड्यूल का एकीकरण।
केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल
उद्यम प्लेटफॉर्म के भीतर एक समर्पित उप-पोर्टल का निर्माण, जिसमें स्कीम डिस्कवरी टूल्स, अनुपालन सहायता और एआई-आधारित सहायता शामिल होगी, ताकि संसाधनों को प्रभावी ढंग से उपयोग करने में उद्यमों को सहायता प्राप्त हो सके।
इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि मध्यम उद्यमों की क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए समावेशी नीति डिजाइन और सहयोगात्मक शासन की दिशा में बदलाव करने की आवश्यकता है। वित्त, प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचे, कौशल निर्माण और सूचना पहुंच में रणनीतिक सहायता के साथ, मध्यम उद्यम नवोन्मेषण, रोजगार और निर्यात वृद्धि के वाहक के रूप में उभर सकते हैं। यह रूपांतरण विकसित भारत @2047 के विजन को साकार करने के लिए महत्वपूर्ण है।