केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सिखों के गुरु अमरदास के प्रकाश पर्व पर आज देशवासियों को बधाई दी। उन्होंने कहा है कि गुरु अमरदास के आदर्श और सिद्धांत सदैव मानव समाज के लिए प्रेरणा स्रोत रहेंगे। आज (बुधवार) सिखों के तीसरे गुरु श्री अमरदास जी का प्रकाश पर्व (जयंती) है। सिख धर्म के तीसरे गुरु श्री गुरु अमरदास ने लोगों को समाज को विभिन्न प्रकार की सामाजिक कुरीतियों से मुक्त करने के लिए सही मार्ग दिखाया है।
केंद्रीय मंत्री शाह ने एक्स हैंडल पर लिखा है, ”सिख धर्म के तीसरे गुरु श्री गुरु अमरदास जी के प्रकाश पर्व की हार्दिक बधाई। गुरु साहिब जी का पूरा जीवन मानवता, परोपकार और सामाजिक कल्याण के लिए समर्पित था। उन्होंने बुराइयों से मुक्त समाज के निर्माण के लिए अथक परिश्रम किया और सभी को धर्म और सत्य का मार्ग दिखाया। गुरु साहिब जी के आदर्श और सिद्धांत सदैव मानव समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे। सिख धर्म के तीसरे गुरु श्री गुरु अमरदास जी के प्रकाश पर्व पर कोटि-कोटि नमन। ”
आज (22 मई) सिखों के तीसरे गुरु श्री अमरदास जी का प्रकाश पर्व (जयंती) है। तीसरे नानक श्री गुरु अमरदास जी का जन्म वैशाख सुदी 14, (8वें जेठ), संवत 1536 (5 मई 1479) को अमृतसर जिले के बसरके गिलान गांव में हुआ था। एक बार श्री गुरु अमरदास जी ने श्री गुरु अंगद देव जी की पुत्री बीबी अमरो जी से श्री गुरु नानक देव जी के कुछ भजन सुने। वह बहुत अधिक प्रभावित हुए और तुरंत खडूर साहिब में श्री गुरु अंगद देव जी से मिलने गए। श्री गुरु अंगद देव जी की शिक्षाओं के प्रभाव में, श्री गुरु अमरदास जी ने उन्हें अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक (गुरु) के रूप में अपनाया।
श्री गुरु अंगद देव जी ने मार्च 1552 में 73 वर्ष की आयु में श्री गुरु अमरदास जी को तीसरे नानक के रूप में नियुक्त किया। उन्होंने ‘गुरु का लंगर’ की परंपरा को मजबूत किया। सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी बड़े आध्यात्मिक चिंतक तो थे ही, उन्होंने लोगों को समाज को विभिन्न प्रकार की सामाजिक कुरीतियों से मुक्त करने के लिए सही मार्ग भी दिखाया। श्री गुरु अमरदास जी ने अकबर को यमुना और गंगा पार करते समय गैर-मुसलमानों के लिए टोल-टैक्स (तीर्थयात्र कर) माफ करने के लिए राजी किया। श्री गुरु अमरदास जी ने सम्राट अकबर के साथ मधुर संबंध बनाए रखे। उन्होंने सती प्रथा के ख़िलाफ़ प्रचार किया और विधवा-पुनर्विवाह की वकालत की। उन्होंने महिलाओं से पर्दा त्यागने को कहा। उन्होंने नए जन्म, विवाह और मृत्यु समारोहों की शुरुआत की। श्री गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में चौरासी सीढ़ियों वाली बावली का निर्माण कराया और इसे सिख धर्म के इतिहास में पहली बार सिख तीर्थस्थल बनाया।