प्रतिक्रिया | Tuesday, October 08, 2024

24/09/24 | 4:58 pm

“एकात्म मानववाद” आज के दौर में ज्यादा प्रासंगिक

दीनदयाल उपाध्याय एक प्रभावशाली भारतीय राजनीतिक विचारक, नेता और दार्शनिक थे, जिन्हें मुख्य रूप से भारतीय जनसंघ (बाद में भारतीय जनता पार्टी) का अग्रदूत बन उसके निर्माण में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। आज उनकी जयंती है, जिसे “अंत्योदय दिवस” के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने जनसंघ और बाद में भाजपा की वैचारिक नींव को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, भारत के ऐसे दृष्टिकोण की वकालत की जिसमें पारंपरिक मूल्यों को आधुनिक विकास के साथ जोड़ा गया हो।

दीनदयाल उपाध्याय को “एकात्म मानववाद” की उनकी अवधारणा के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है, जो आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक आयामों को एकीकृत करने वाले मानव विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है। वहीं “अंत्योदय” की अवधारणा ने समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति का कल्याण कैसे हो इसकी चिंता इस विचार के माध्यम से करने वाले दीनदयाल उपाध्याय ही थे।

उन्होंने एक ऐसे भारत की कल्पना की, जहाँ आर्थिक नीतियाँ, सांस्कृतिक मूल्यों और नैतिक विचारों को प्रतिबिंबित करेंगी, जिसमें आत्मनिर्भरता, विकेंद्रीकरण और सामाजिक सद्भाव पर जोर दिया जाएगा। वे जनसंघ के विकास में भी एक प्रमुख व्यक्ति थे, उन्होंने पार्टी के वैचारिक और संगठनात्मक लक्ष्यों को बढ़ावा देने के लिए इसके संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर काम किया। दीनदयाल उपाध्याय के विचारों और योगदान का भारतीय राजनीति पर, विशेषकर भाजपा के भीतर, स्थायी प्रभाव पड़ा है, जहां उनकी दृष्टि पार्टी की नीतियों और दर्शन को प्रभावित करती रही है।

दीनदयाल उपाध्याय की “एकात्म मानववाद” की अवधारणा, भारत में 20वीं सदी के मध्य में विकसित एक दार्शनिक ढांचा है। इसका उद्देश्य आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक आयामों को मिलाकर मानव विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करना है।

एकात्म मानववाद का मूल विचार मानवता को एक एकीकृत रूप में देखना है, जिसमें व्यक्तियों और समाज की परस्पर संबद्धता पर जोर दिया जाता है। दीनदयाल उपाध्याय ने तर्क दिया था कि आर्थिक और सामाजिक प्रणालियों को आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के साथ संरेखित किया जाना चाहिए, जो भौतिक प्रगति और नैतिक अखंडता के बीच संतुलन को बढ़ावा देता है। यह दृष्टिकोण एक विकेन्द्रीकृत, आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की वकालत करता है जो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को बनाए रखते हुए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाता है।

एकात्म मानववाद पश्चिमी भौतिकवाद और मार्क्सवादी समाजवाद दोनों को खारिज करता है, इसके बजाय एक ऐसा मॉडल प्रस्तावित करता है जहां मानव कल्याण और विकास पारंपरिक भारतीय मूल्यों और आधुनिक ज्ञान के मिश्रण द्वारा निर्देशित होते हैं। दर्शन व्यक्तिगत आकांक्षाओं को सामाजिक कल्याण के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है, विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण पर जोर देता है जो व्यक्तियों और समुदायों की पूरी क्षमता का पोषण करता है।

दीनदयाल उपाध्याय के विचार केवल सैद्धांतिक नहीं थे, बल्कि उन्होंने इन्हें अपने जीवन और राजनीतिक गतिविधियों में क्रियान्वित करने का प्रयास भी किया। उनके द्वारा प्रस्तावित एकात्म मानववाद का लक्ष्य भारतीय समाज में समरसता, समानता और समृद्धि की स्थापना करना था। उनका यह दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है और विभिन्न क्षेत्रों में इसकी व्याख्या और पुनर्व्याख्या की जाती रही है।

दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार, भारतीय समाज को अपनी जड़ों और मूल्यों के साथ रहकर ही आगे बढ़ना चाहिए। उनके विचारों ने भारतीय राजनीति, विशेष रूप से भाजपा की नीतियों और कार्यक्रमों को गहराई से प्रभावित किया है। उनके “एकात्म मानववाद” के दर्शन को आज भी सामाजिक और आर्थिक नीतियों के निर्माण में मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में देखा जाता है।

दीनदयाल उपाध्याय के जीवन, दर्शन और योगदान को भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में माना जाता है, जिसने राष्ट्रीय और सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता की भावना को पुनः स्थापित किया।

दीनदयाल उपाध्याय का जीवन उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता और विचारधारा के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक था। भारतीय जनसंघ में उनकी भूमिका और योगदान के कारण वे एक प्रमुख राजनीतिक विचारक और नेता के रूप में उभरे। हालांकि, उनका जीवन दुर्भाग्यवश अचानक और रहस्यमयी परिस्थितियों में समाप्त हुआ।

10 फरवरी 1968 को दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु मुगलसराय रेलवे स्टेशन (अब दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन) पर हुई थी। उनकी मृत्यु के कारणों पर काफी विवाद हुआ, और इसे एक हत्या माना गया। यह घटना तब हुई जब वे ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। उनकी असामयिक मृत्यु ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था, और इसे भारतीय राजनीति में एक गंभीर क्षति के रूप में देखा गया।

उनकी मौत के पीछे के वास्तविक कारणों का स्पष्ट रूप से पता नहीं चल सका, और कई सिद्धांतों के बावजूद यह एक अनसुलझा रहस्य बना रहा। उनकी मृत्यु के बाद भी, उनके विचार और दर्शन भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव डालते रहे हैं और आज भी समसामयिक विषयों पर उनके विचारों की अमिट छाप प्रतिबिंबित होती रहती है। “एकात्म मानववाद” और “अंत्योदय” उनके द्वारा स्थापित किए गए सिद्धांतों को भाजपा ने अपनी वैचारिक नींव के रूप में अपनाया और आज भी इसे पार्टी के प्रमुख विचारधारा के रूप में माना जाता है।

दीनदयाल उपाध्याय के जीवन का यह दुखद अंत उनके अनुयायियों और समर्थकों के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन उनके विचार और दर्शन आज भी जीवित हैं और भारतीय राजनीति को प्रभावित करते रहते हैं। उनकी मृत्यु के बावजूद, उनका योगदान भारतीय समाज और राजनीति में अमर है।

उत्कर्ष उपाध्याय

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आखरी अपडेट: 8th Oct 2024